उत्तराखंड

Mahant Narendra Giri Suicide: ‌आनंद गिरी का दावा- लिखना-पढ़ना नहीं जानते थे गुरुजी, तो कैसे लिखा सुसाइड नोट

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प्रयागराज. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के प्रमुख आचार्य नरेंद्र गिरी के निधन से देश के साधु-संत समाज में शोक की लहर व्याप्त है. यह लाजिमी भी है, क्योंकि वैष्णवी अखाड़ों समेत नागा-साधु संन्यासियों की प्रमुखता वाले सभी 13 अखाड़ों के सर्वमान्य प्रमुख का संदिग्ध परिस्थितियों में चले जाना, सामान्य बात है भी नहीं. अखाड़ा परिषद के प्रमुख के पद पर रहने का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि इनके बीच समन्वय का काम अत्यंत मुश्किल भरा है, जिसे महंत नरेंद्र गिरी बड़ी आसानी से लंबे समय से संभालते आ रहे थे. इसके अलावा वे प्रयागराज की प्रसिद्ध बाघम्बरी गद्दी और संगम-तट पर स्थित लेटे हनुमानजी के भी महंत थे.

आमतौर पर आपने रामभक्त हनुमान की प्रतिमा देश में कहीं भी खड़ी अवस्था में ही देखी होगी, लेकिन तीर्थराज प्रयाग के हनुमानजी सर्वथा अलग हैं. अकबर के बनाए इलाहाबाद के किले के ठीक नीचे लेटे हनुमान जी का मंदिर है. समस्त हिंदू समुदाय में इसकी बड़ी मान्यता है. कहा जाता है कि लेटे हनुमानजी के दर्शन मात्र से कार्य सिद्ध हो जाते हैं. रामभक्त हनुमान की खड़ी मूर्तियां तो हर जगह है, लेकिन ये चुनिंदा मूर्तियों में से है जो लेटे हुए हैं. प्रति वर्ष गंगा नदी का जलस्तर जब बढ़ता है, तो पुण्य-सलिला इन्हें स्नान कराती हैं. कहा जाता है कि उन्हें स्नान करवा कर ही वे घटती हैं. आचार्य नरेंद्र गिरी इन लेटे हनुमानजी के भी महंत थे. यह बात जानने योग्य है कि प्रयागराज की सम्मानित बाघम्बरी गद्दी के महंत भी लेटे हुनुमान जी के आचार्य ही होते हैं. लिहाजा ये पद भी महंत नरेंद्र गिरी के पास ही था.

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13 अखाड़ों के अध्यक्ष की जिम्मेदारी

महाकुंभ या गंगा स्नान से जुड़े कार्यक्रमों के दौरान नागा साधुओं के अखाड़ा स्नान के बारे में तो आपने सुना ही होगा. अखाड़ों का अर्थ है नागा साधुओं का समूह. मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय को मानने वाले ये अखाड़े ही दरअसल सनातन धर्म के रक्षक हैं. गौर करने वाली बात यह है कि जूना अखाड़ा हो या निरंजनी या फिर कोई और, इन सभी अखाड़ों की सोच अलग-अलग है. लिहाजा कुंभ के समय गंगा स्नान के लिए अक्सर इन अखाड़ों के बीच पहले स्नान को लेकर विवाद होता रहा है. इसी विवाद को खत्म करने और अखाड़ों के बीच आपसी समन्वय बनाए रखने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया गया.

चूंकि इन अखाड़ों के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर अक्सर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है, जिस परेशानी को समाप्त करने के लिए ही अखाड़ा परिषद बना. विभिन्न अर्द्धकुंभ या महाकुंभ के दौरान इनका नेतृत्व करने का जिम्मा यह अखाड़ा परिषद ही संभालती है. इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण कार्य साधु-संतों को मान्यता देने का काम भी परिषद के पास ही है. किसी व्यक्ति को अगर साधु बनना है या कोई अखाड़ा किसी को संत की उपाधि देना चाहता है, तो इसका निर्णय भी परिषद ही करती है. दरअसल, साधु बनने के लिए आपको किसी न किसी अखाड़े से जुड़ना होता है, जिसके बाद अखाड़ा परिषद उसे मान्यता देती है.

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साधु की मान्यता का फैसला परिषद के हाथ

परिषद के पास यह अधिकार भी है कि वह किसी साधु की मान्यता समाप्त कर सकती है. इसका आशय यह कि अगर किसी अखाड़े के प्रमुख संत ने किसी व्यक्ति को लोभवश या अन्य कारणों से साधु का पद दे दिया, तो उसे मान्यता देने या न देने का निर्णय परिषद के पास होता है. राधे मां के महामंडलेश्वर मामले से जुड़े विवाद को याद करें, तो कुछ ऐसी ही कहानी सामने आई थी. अखाड़ों की इसी समग्र संस्था के अध्यक्ष पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आचार्य नरेंद्र गिरी के पास थी. उनके निधन के बाद इस पद पर किसे लाया जाए, यह भी एक बड़ा सवाल अब सामने होगा.

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