उत्तराखंड

Uttarakhand : ब्लैक फंगस में मामलों पर एम्स ने बनाई 15 सदस्यीय टीम, 25 मरीजों का चल रहा इलाज

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(प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

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ऋषिकेश एम्स में black fungus के चलते एक मरीज की मौत हो गई है, जबकि 13 मरीजों का वर्तमान में इलाज चल रहा है.  लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए एम्स के निदेशक ने 15 सदस्य टीम का गठन किया है जो इस नई बीमारी के उपचार पर नजर बनाए हुए हैं.   

देहरादून. उत्तराखंड ( Uttarakhand ) में ब्लैक फंगस ( Black Fungus ) के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं. ऋषिकेश AIIMS में उत्तराखंड सहित उत्तर प्रदेश के मरीजों का इलाज चल रहा है. ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों को लेकर  AIIMS ने 15 सदस्य टीम का गठन किया है. एम्स में सोमवार को ब्लैक फंगस के आठ और मरीज भर्ती हुए. सोमवार को यूपी के छह, उत्तराखंड के दो मरीज भर्ती हुए. इसी के साथ एम्स में ब्लैक संक्रमित मरीजों की संख्या 25 पहुंच गई है. 13 मरीजों को ऑपरेट गया किया है. बाकी का उपचार जारी है. उत्तराखंड में कोराना संक्रमण के बाद मरीजों में तेजी से बढ़ते ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या पर सरकार चिंतित दिखने लगी है.  ऋषिकेश एम्स में black fungus के चलते एक मरीज की मौत हो गई है, जबकि 13 मरीजों का वर्तमान में इलाज चल रहा है.  लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए एम्स के निदेशक ने 15 सदस्य टीम का गठन किया है जो इस नई बीमारी के उपचार पर नजर बनाए हुए हैं. ब्लैक फंगस से हुई पहली मौत कोविड-19  के बाद मरीजों पर ब्लैक फंगस कहर बनकर टूट रहा है. उत्तराखंड में पहली मौत एम्स ऋषिकेश अस्पताल में दर्ज की गई है. यहां कोविड संक्रमण का इलाज करा रहे 19 अन्य मरीजों में भी इस बीमारी की पुष्टि हुई है. एम्स ऋषिकेश के निदेशक रविकांत ने बताया कि बृहस्पतिवार 13 मई को देहरादून से रेफर हुए कोरोना संक्रमित 36 वर्षीय व्यक्ति की, ब्लैक फंगस की सर्जरी संभव नहीं हो पाने के कारण मृत्यु हो गई.कई मामलों में ऑपरेशन करना भी मुमकिन नहीं होता निदेशक ने बताया कि ब्लैक फंगस के मामलों पर एम्स संस्थान के चिकित्सकों का एक दल लगातार निगरानी रखे हुए है. एम्स ऋषिकेश के निदेशक रविकांत ने बताया कि ब्लैक फंगस मुखयतः सड़ी-गली वनस्पति सहित प्रदूषित जगह की धूल व सड़े भोजन से फैलता है. और नाक के जरिये मनुष्यों में पहुंचता है. यह शरीर में गर्दन से ऊपर के जिस भी हिस्से को संक्रमित करता है उसे काला कर खराब कर देता है. अक्सर मरीज ऑपरेशन से ठीक हो जाता है लेकिन कई मामलों में ऑपरेशन करना भी मुमकिन नहीं होता है.





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