उत्तराखंड

उत्तराखंड: पिथौरागढ़ में 17 साल के बाद भी नहीं बन पाया बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट का बेस हॉस्पिटल

[ad_1]

 बावजूद इसके हेल्थ सर्विस के लिए अहम ये अस्पताल अभी भी वजूद में नहीं आ पाया है.

बावजूद इसके हेल्थ सर्विस के लिए अहम ये अस्पताल अभी भी वजूद में नहीं आ पाया है.

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में ही पिथौरागढ़ में बेस हॉस्पिटल के निर्माण की आधारशिला रखी गई, मगर 17 साल में 60 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने के बाद भी आज तक नहीं हो पाई है शुरुआत.

पिथौरागढ़. कोरोना वायरस के इस दौर में हेल्थ सिस्टम (Health system) का मजबूत होना निहायती जरूरी है. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट पिथौरागढ़ में 17 साल बाद भी बेस हॉस्पिटल पूरी तरह नहीं बन पाया है. ये बात अलग है कि इसका ढांचा खड़ा करने में अब तक 60 करोड़ रुपये बहा दिए गए हैं. एनडी तिवारी सरकार में स्वीकृत बेस हॉस्पिटल राजनेताओं के लिए फुटबॉल ही साबित हुआ है. 2005 में जिला और महिला अस्पताल को मिलाकर बेस चिकित्सालय का बीजेपी ने खुलकर विरोध किया तो, 2012 में कांग्रेस की सरकार आते ही इसे चंडाक से पुनेड़ी शिफ्ट कर दिया गया. बावजूद इसके हेल्थ सर्विस के लिए अहम ये अस्पताल अभी भी वजूद में नहीं आ पाया है.

बीते 9 सालों में हॉस्पिटल का ढांचा जरूर खड़ा किया गया, लेकिन ये नियमित तौर पर कब शुरू होगा कोई नहीं जानता. सामाजिक कार्यकर्ता कुंडल चौहान का कहना है कि इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता कि एक अदद हॉस्पिटल 17 साल बाद भी शुरू नहीं हो पाया है. सरकार ने बेस हॉस्पिटल बनाने के लिए अब तक 60 करोड़ की धनराशि खर्च कर दी है. बावजूद इसके ये 80 फीसदी ही तैयार हो पाया है. इससे बनने से जहां 200 मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकता था, वहीं सीटी स्कैन का लाभ भी सीमांत के लोगों को आसानी से मिलता. कोरोना के दौर में आधा-अधूरा बेस हॉस्पिटल कई दफा कोविड केयर सेंटर के रूप में जरूर तब्दील हुआ, लेकिन इसका वो लाभ लोगों को नहीं मिला जिसकी दरकार दशकों से थी.

हेल्थ सिस्टम पहले ही पटरी से उतरा है
सीएमओ डा. हरीश चंद्र पंत का कहना है कि जल्द ही बेस चिकित्सालय का काम पूरा करने की कोशिश की जा रही है. कार्यदायी संस्था को काम में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं. उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में हेल्थ सिस्टम पहले ही पटरी से उतरा है. ऐसे में कोरोना का बढ़ता संक्रमण नए संकट को न्यौता दे सकता है. बावजूद इसके हमारे हुक्मरानों को स्वास्थ्य सेवाओं की कोई सुध नहीं है. अगर सरकारें वाकई चितिंत होतीं तो 17 साल का सफर तय करने के बाद भी ये बेस हॉस्पिटल यूं नहींं पड़ा होता.





[ad_2]

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *