उत्तराखंड में डॉक्टरों का टोटा! चाइल्ड स्पेशलिस्ट 60% कम, 11 ज़िलों में कोई मनोचिकित्सक नहीं
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देहरादून. उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों का कितना भारी अभाव है, इसका खुलासा एक आरटीआई आवेदन के जवाब से हुआ है. चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य के 13 में से 11 ज़िलों में कोई मनोचिकित्सक नहीं है. 13 ज़िला अस्पतालों में कुल 28 स्वीकृत पद हैं और 1 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले पूरे राज्य में सिर्फ 4 मनोचिकित्सक हैं. वहीं, अन्य विशेषज्ञों की भारी कमी चिंता का विषय है क्योंकि इस समय कोरोना की तीसरी लहर की तैयारी के चलते स्वास्थ्य सुविधाओं और ढांचे को बेहतर करने का दबाव सरकार पर बना हुआ है.
वास्तव में, जून 2018 में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को साफ निर्देश दिए थे कि बगैर भेदभाव के, अच्छी गुणवत्ता के साथ, कम शुल्क में और पर्याप्त संख्या में मेंटल हेल्थकेयर की सुविधा सभी के लिए सुलभ करवाई जानी चाहिए. मानसिक रोगियों की बढ़ती संख्या पर हाई कोर्ट ने ये भी निर्देश दिए थे कि राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं को और बढ़ाया जाना चाहिए. इसके बाद अब विशेषज्ञ डॉक्टरों का ब्योरा मांगने वाली एक आरटीआई के जवाब में जो आंकड़े मिले हैं, वो राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं की खस्ताहाली को बयान करते हैं.
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क्या है मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत?
आरटीआई आवेदन करने वाले और एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने कहा कि कोविड काल में मानसिक समस्याएं बढ़ी हैं, लेकिन मेंटल हेल्थकेयर का ढांचा निराशाजनक दिखा है. जो आंकड़े मिले हैं, उनके मुताबिक राज्य में जो चार मनोचिकित्सक तैनात हैं, उनमें से तीन केवल देहरादून और एक नैनीताल में हैं. बाकी 11 ज़िला अस्पतालों में कोई मनोचिकित्सक नहीं है. इस पर उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग की निदेशक तृप्ति बहुगुणा का कहना है कि सेवाओं में सुधार की लगातार कोशिश जारी है. अनुबंध पर भी डॉक्टरों की नियुक्ति पर विचार चल रहा है.
डॉक्टरों की उपलब्धता के आंकड़े पहले भी गंभीर रहे हैं.
विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता 50% से भी कम
आरटीआई के जवाब से यह भी खुलासा हुआ कि 13 में से 9 ज़िलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता 50% से भी कम है. एक उदाहरण यह है कि हरिद्वार में 105 स्वीकृत पदों के मुकाबले सिर्फ 40 ही विशेषज्ञ डॉक्टर हैं. इस बारे में मीडिया में आई एक रिपोर्ट में एसडीसी फाउंडेशन के हवाले से लिखा गया, ‘राज्य भर में बाल और स्त्री रोग विशेषज्ञों की उपलब्धता में 60% अभाव है. खास तौर से पहाड़ी इलाकों में महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बहुत ज़्यादा उठानी पड़ती हैं.’
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इस बारे में फाउंडेशन ने यह भी बताया कि कई स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को प्रशासनिक ड्यूटी पर तैनात किया गया है जबकि कोरोना काल में उनकी सेवाओं की ज़रूरत अस्पतालों में ज़्यादा है. वहीं, मनोरोग विशेषज्ञों की कमी पर बहुगुणा ने यह भी बताया कि इस कमी को पूरा करने के लिए एमबीबीएस कर रहे छात्रों को बेसिक मनोचिकित्सा की ट्रेनिंग दी जाएगी.
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