पिथौरागढ़ न्यूज – India Times https://indiatimes24x7.com National News Portal Thu, 04 Nov 2021 09:52:52 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://indiatimes24x7.com/wp-content/uploads/2021/12/cropped-india-times-24x7-1-32x32.png पिथौरागढ़ न्यूज – India Times https://indiatimes24x7.com 32 32 पहाड़ी वनस्पति घी च्यूरा और प्लास्टिक की बोतलों से युवाओं ने बनाए ईको फ्रेंडली दिए https://indiatimes24x7.com/the-youth-made-eco-friendly-given-from-pahari-vanaspati-ghee-cheura-and-plastic-bottles/ https://indiatimes24x7.com/the-youth-made-eco-friendly-given-from-pahari-vanaspati-ghee-cheura-and-plastic-bottles/#respond Thu, 04 Nov 2021 08:54:37 +0000 https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%98%e0%a5%80-%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a4%be/

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पिथौरागढ़. जिले की हरेला सोसायटी (Harela Society) ने बेकार पड़ी प्लास्टिक की बोतलों से अनोखा प्रयोग किया है. पिथौरागढ़ (Pithoragarh) की हरेला सोसायटी से जुड़े युवाओं ने पर्यावरण के लिए खतरनाक हो चुकी बोतलों में एक से बढ़ कर एक वनस्पति घी के दीए बनाएं हैं. ये दीए पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद (Eco Friendly Diya) हैं. पहाड़ की लोककला ऐपण से सजे दिए भले ही आम लग रहे हों, लेकिन ये कई मायनों में खास हैं. असल में हरेला सोसायटी से जुड़े युवाओं ने इन्हें पर्यावरण के लिए खतरनाक हो चुकी प्लास्टिक की बोतलों में बनाया है. युवाओं ने जगह-जगह बिखरी प्लास्टिक की बोतलों को सजा कर इन्हें सुंदर दीयों में बदल दिया है. यही नहीं दीयों में वैक्स की जगह च्यूरे का इस्तेमाल किया गया है.

च्यूरा पहाड़ में होने वाला वनस्पति घी है. सोसायटी के सदस्य संजू शर्मा ने बताया उनकी टीम अक्सर जंगलों में सफाई अभियान चलाती है. इस दौरान उन्हें प्लास्टिक की कई खाली बोतलें मिलती थीं, जिन्हें जलाना पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक हो सकता था. ऐसे में उनकी टीम ने इनकी मदद से ईको फ्रेंडली दीए बनाने की योजना बनाई, जो सफल हो रही है.

8 से 10 घंटे तक लगातार जलते हैं च्यूरे के बने दीए
च्यूरे से बने होने के कारण ये दीए पूरी तरह ईको फ्रेंडली हैं. इनके जलने पर किसी तरह का कार्बन नहीं निकलता है. च्यूरे से बना दीया 8 से 10 घंटों तक लगातार जल सकता है. यह बात और है कि इसकी कीमत आम दीयों के मुकाबले कुछ ज्यादा है. यही वजह है कि मीडिल क्लास में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. पूरी तरह स्थानीय उत्पादों से बने होने के कारण लोगों को भी इसका फायदा मिल रहा है.

खदीददार नीलाम्बर पुनेड़ा का मानना है कि इन दीयों का इस्तेमाल करने से, जहां पर्यावरण संरक्षित रहेगा, वहीं स्थानीय उत्पादों को भी बाजार मिल सकेगा. ईको फ्रेंडली दीयों को बनाने से युवाओं के एक वर्ग को सीजनल रोजगार भी मिल रहा है. युवा ऐसे दीए बनाकर समाज को यह संदेश दे रहे हैं कि बेकार पड़ी चीजों का सही इस्तेमाल कैसे हो सकता है. यही नहीं पर्यावरण को बचाने में भी इनकी गंभीरता दिख रही है, जिसकी दरकार आज के दौर में सबसे अधिक है.

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पिथौरागढ़ में पर्यटकों का रेस्क्यू ऑपरेशन जारी, कारोबार पर भी आपदा का असर https://indiatimes24x7.com/the-impact-of-the-disaster-on-the-ongoing-business-of-tourists-rescue-operation-in-pithoragarh/ https://indiatimes24x7.com/the-impact-of-the-disaster-on-the-ongoing-business-of-tourists-rescue-operation-in-pithoragarh/#respond Sat, 23 Oct 2021 13:57:46 +0000 https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%9f%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95/

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रेस्क्यू

रेस्क्यू किए गए पर्यटक सेना के जवानों के साथ.

अभी तक 70 से ज्यादा पर्यटकों को रेस्क्यू कर जिला मुख्यालय पहुंचाया जा चुका है.

पिथौरागढ़ (Pithoragarh Rain) में कुदरत के बरसाए कहर के बाद जिले में पर्यटन कारोबार एक बार फिर से चौपट हो गया है. कई पर्यटक अभी भी पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में फंसे हुए हैं. उनके रेस्क्यू के लिए अभियान जारी है. आदि कैलाश गए महाराष्ट्र के एक पर्यटक की गुंजी में मौत हो गई. पिथौरागढ़ से लगे बागेश्वर जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सुंदरढूंगा ग्लेशियर ट्रैक पर गए 5 पर्यटकों की भी मौत हो चुकी है. एक लापता है. अभी तक 70 से ज्यादा पर्यटकों को रेस्क्यू कर जिला मुख्यालय पहुंचाया जा चुका है.

उत्तराखंड में तीन दिन की बारिश के बाद पर्यटन कारोबार काफी प्रभावित हुआ है, जिसका असर पिथौरागढ़ में भी देखने को मिला है. जिले से लगे उच्च हिमालयी क्षेत्रों का दीदार करने लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं, लेकिन अचानक बदले मौसम से आदि कैलाश और ओम पर्वत गए तमाम पर्यटक भारी बर्फबारी और बारिश से मार्ग बंद होने के कारण वहीं फंसकर रह गए, जिसका असर यह हुआ कि मुनस्यारी पहुंचे तमाम पर्यटक वापस लौट चुके हैं और एडवांस हुई बुकिंग भी कैंसिल हो चुकी है.

सैलानियों के वापस लौटने से पर्यटन कारोबारियों को लाखों का नुकसान हुआ है. कोरोना के बाद आर्थिक तंगी से उबरते कारोबारियों के सामने एक बार फिर मुश्किलें आ गई हैं. उत्तराखंड में बारिश का सिलसिला तो थम चुका है, लेकिन उसके नुकसान से निपटने के लिए प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती है.

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Pithoragarh News: धार्मिक कार्यक्रम से लौटते वक्त खाई में गिरी कार, रिटायर्ड ब्रिगेडियर समेत 5 की मौत https://indiatimes24x7.com/pithoragarh-news-5-including-retired-brigadier-died-when-car-fell-into-ditch-while-returning-from-religious-program/ https://indiatimes24x7.com/pithoragarh-news-5-including-retired-brigadier-died-when-car-fell-into-ditch-while-returning-from-religious-program/#respond Fri, 22 Oct 2021 04:09:45 +0000 https://indiatimes24x7.com/pithoragarh-news-%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b2/

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इस

इस हादसे में 5 लोगों की मौत हो गई.

मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा से पहले वह गांव के लोगों के साथ एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कर्णप्रयाग गए थे.

पिथौरागढ़ की थल-मुवानी रोड पर एक फॉर्च्यूनर कार अनियंत्रित होकर गहरी खाई में जा गिरी. इस हादसे में एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर समेत 5 लोगों की मौत हो गई. ब्रिगेडियर विनोद चंद अपने गांव के लोगों के साथ एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने कर्णप्रयाग गए थे. वापस लौटते समय उनकी गाड़ी थल-मुवानी रोड पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई. हादसे की सूचना मिलते ही पुलिस ने स्थानीय लोगों की मदद से मृतकों के शवों और घायलों को बाहर निकाला. घायलों का जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है. फिलहाल दोनों लोग खतरे से बाहर हैं.

बताया जा रहा है कि रिटायर्ड ब्रिगेडियर विनोद चंद ने अपने गांव बुंगा में मंदिर की स्थापना की थी. मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा से पहले वह गांव के लोगों के साथ एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कर्णप्रयाग गए थे. वहां से लौटते समय थल-मुवानी रोड पर यह हादसा हो गया. खबर मिलते ही पूरे गांव में मातम छा गया. मृतकों में दो लोग नेपाल के रहने वाले हैं. लगातार बारिश और संचार सेवा प्रभावित होने से काफी देर बाद दुर्घटना का पता चला.

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देवताओं को धरती पर बुलाने के लिए लगती है जागर, जानिए इसके बारे में सब कुछ https://indiatimes24x7.com/it-takes-a-wake-to-call-the-gods-on-earth-know-everything-about-it/ https://indiatimes24x7.com/it-takes-a-wake-to-call-the-gods-on-earth-know-everything-about-it/#respond Thu, 14 Oct 2021 04:45:40 +0000 https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%93%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%a7%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%87/

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देवभूमि उत्तराखंड को 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर मानव रूप लेकर धरती को पापों से मुक्त कराया है. ज्यादातर यह कथन फिल्मों या धारावाहिक में सुना जाता है लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में यह हमेशा से होता आया है, जहां पर ”जागर” में देवता इंसानों में अवतरित होकर जनता के दुख दर्द को दूर करने के लिए साक्षात दर्शन देते हैं.

आपको यह जानकर हैरानी हो रही होगी लेकिन पहाड़ों में हर वर्ग, हर भाषा, हर क्षेत्र में अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जिन्हें स्थानीय भाषा में ईष्ट देव कहा जाता है. पहाड़ों में अलग-अलग गांवों के ईष्ट भी अलग-अलग होते हैं, जिनका उस क्षेत्र और उस क्षेत्र की जनता पर अधिकार होता है और पहाड़ों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

चाहें किसी को न्याय दिलाने की बात हो या किसी के कष्ट हरने की, गांव पर आई विपदा से बचने के लिए गांव वाले अपने ईष्ट देव का आह्वान करते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में जागर कहा जाता है. जागर का अर्थ है, देवता को जगाना. देवताओं की शक्ति का उल्लेख गीतों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों से देवताओं को जगाया जाता है और फिर भगवान अवतरित होकर लोगों की समस्या का समाधान करते हैं.

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आजादी के बाद से गांव के लोगों को सड़क का इंतजार, ग्रामीण बोले- रोड नहीं तो इस बार वोट नहीं https://indiatimes24x7.com/after-independence-the-people-of-the-village-were-waiting-for-the-road/ https://indiatimes24x7.com/after-independence-the-people-of-the-village-were-waiting-for-the-road/#respond Sat, 02 Oct 2021 02:29:15 +0000 https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%86%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a6-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%97/

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पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर नेपाल सीमा से लगे हुए 6 गांव के लोगों ने सड़क की मांग को लेकर आगामी विधानसभा चुनाव के बहिष्कार का ऐलान करते हुए अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया है. इस धरने में बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी शामिल हैं. आजादी के बाद से ही इस क्षेत्र के लोग सड़क का इंतजार कर रहे हैं. लंबे समय के इंतजार के बाद साल 2005 में इस क्षेत्र के लिए सड़क स्वीकृत हुई थी, जो 17 साल बीत जाने के बाद भी पूरी नहीं हो सकी है.

सड़क न होने से लगभग 10 हजार की आबादी प्रभावित हो रही है और ग्रामीणों ने नाराजगी जताते हुए चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है. देश की सेवा करते हुए 1965 की लड़ाई में शहीद हुए नंद किशोर भट्ट का गांव है बेलतड़ी, जहां के कई युवा भारतीय सेनाओं में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, तो वहीं गांव में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं. यहां बीमार व्यक्ति को डोली के सहारे इलाज के लिए ले जाया जाता है. कई बार गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में ही प्रसव भी हुआ है. सुविधाओं के अभाव में ये गांव अब धीरे-धीरे खाली हो रहे हैं.

इन गांवों में संतरा, केला, सब्जियां, दालें आदि पर्याप्त मात्रा में होती हैं लेकिन सड़क न होने की वजह से ग्रामीणों को इनके उत्पादों का सही मूल्य नहीं मिल पाता है. कई बार किसानों की फसलें खेतों में ही खराब हो जाती हैं, जिससे गांव वालों की आजीविका पर भी संकट मंडरा रहा है.
गांव के बच्चे लंबा कच्चा रास्ता तय करके स्कूल तक पहुंचते हैं, जिससे कठिन रास्ता होने से हादसों का डर भी बना रहता है. जिले में ऐसे कई गांव हैं, जो अभी तक सड़क से वंचित हैं और कई गांव तो मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लगभग खाली हो चुके हैं.

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पिथौरागढ़: चीन बॉर्डर को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण सड़क 2 महीने से बंद, दर्जनों गांव के लोग कैद https://indiatimes24x7.com/people-of-dozens-of-villages-imprisoned-for-2-months-important-road-connecting-pithoragarh-china-border/ https://indiatimes24x7.com/people-of-dozens-of-villages-imprisoned-for-2-months-important-road-connecting-pithoragarh-china-border/#respond Mon, 16 Aug 2021 11:32:45 +0000 https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%ac%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c/

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पिथौरागढ़. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले के धारचूला तहसील में चीन बॉर्डर (China Border) को जोड़ने वाली सड़क बीते दो महीने से बंद है. इससे इलाके के दर्जनों गांवों का बाहरी दुनिया से संपर्क कट सा गया है. सोबला-ढाकर रोड के बंद होने से दारमा और चौंदास घटियों के इन गांवों के लोग कैद होकर रह गए हैं. अब हालात यह है कि इन गांवों में रोजमर्रा की चीजें खत्म होने लगी हैं.

बीते 16 जून को आई आसमानी आफत से दारमा और चौंदास घाटी को जोड़ने वाली सड़क तबाह और बर्बाद हो गई थी. हालात यह है कि बॉर्डर को जोड़ती यह महत्वपूर्ण सड़क दर्जनों जगह बंद पड़ी है. कई पुल भी जमींदोज हुए हैं. लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी सीपीडब्ल्यूडी सड़क नहीं खोल पाई है. यह सड़क बंद होने से भारत-चीन सीमा पर तैनात सुरक्षाबलों को दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं, साथ ही दर्जनों गांव के लोग भी कैद हो गए हैं. क्षेत्र के विधायक हरीश धामी का कहना है कि वो इस मुद्दे को विधानसभा के मॉनसून सत्र में उठाएंगे. अगर सरकार ने लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की तो वो विधानसभा में ही धरना शुरू कर देंगे.

हजारों लोगों की लाइफलाइन है बॉर्डर की यह रोड
सड़क बंद होने से दोनों घाटियों के 50 गांवों का बाकी देश-दुनिया से संपर्क कट गया है. कई गांवों के हालात इस कदर खराब हैं कि यहां रोजमर्रा की चीजें खत्म हो गईं हैं. गांव की छोटी दुकानों में जो भी बचा-खुचा सामान है उसकी कीमत कई गुना बढ़ गई है. कहने को तो सरकार ने यहां एक हेलीकॉप्टर तैनात किया है. लेकिन खराब मौसम ने हेलीकॉप्टर को सफेद हाथी बना दिया है. ऐसे में सबसे अधिक संकट बीमार लोगों पर मंडरा रहा है. इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवा के नाम पर एक पीएससी भी नहीं है.

जिलाधिकारी (डीएम) आशीष चौहान ने सीपीडब्ल्यूडी को मलबा हटाकर सड़क को जल्द खोलने के निर्देश दिए हैं. साथ ही पूरे मामले से शासन को भी अवगत करा दिया गया है. उन्होंने कहा कि शासन से जो भी निर्देश मिलेंगे उन पर गंभीरता से अमल किया जाएगा.

दो महीने गुजरने पर भी आसान नही रोड का खुल पाना
सीमा को जोड़ने वाली इस सड़क के जो हालात हैं, उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि निकट भविष्य में भी इसके खुलने के आसार नहीं है. ऐसे में तय है कि सीमांत क्षेत्र में रहने वालों को जल्द राहत नहीं मिलने वाली है. बेहतर होता कि किसी अन्य प्लान पर गंभीरता से अमल किया जाए, ताकि हजारों लोगों की बेपटरी हो चुकी जिंदगी दोबारा पटरी पर आ सके.

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पिथौरागढ़: 1200 करोड़ की लागत वाला ऑल वेदर रोड फ्लॉप, पहली बरसात में नहीं रहा चलने लायक https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-1200-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%a1%e0%a4%bc-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a4-%e0%a4%b5/ https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-1200-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%a1%e0%a4%bc-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a4-%e0%a4%b5/#respond Wed, 04 Aug 2021 13:10:35 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=3165

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पिथौरागढ़. पिथौरागढ़-टनकपुर ऑल वेदर रोड (All Weather Road) प्रोजेक्ट पूरी तरह फेल साबित हो रहा है. हालत यह है कि सामरिक नजरिए से अहम यह नेशनल हाईवे (National Highway) पहली बरसात में ही जगह-जगह जमींदोज हो चुका है. सड़क की खस्ता हालत को लेकर अब इस पर सियासत शुरू हो गई है.

ऑलवेदर रोड पर सफर करना कितना खतरनाक है यह वो ही जान सकता है, जिसने इस पर सफर किया हो. उम्मीद थी कि बारह सौ करोड़ रुपये की लागत से बनी ऑल वेदर रोड पिथौरागढ़ (Pithoragarh) के साथ चंपावत के लोगों के लिए भी वरदान साबित होगी. लेकिन पहली बरसात में इस राष्ट्रीय राजमार्ग का जो हाल है, उससे लगता है कि वरदान अभिशाप में तब्दील हो गया है. हालात यह है कि बरसात शुरू होने के बाद चीन और नेपाल को जोड़ने वाला यह एनएच खुला कम है, बंद ज्यादा रहा है. ऑल वेदर रोड निर्माण के दौरान ही इसकी कटिंग पर सवाल उठ रहे थे, जो अब सही साबित हो रहे हैं.

सत्ताधारी बीजेपी इस ऑल वेदर रोड को आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताने वाली थी. लेकिन घटिया काम ने उसे कठधरे में खड़ा कर दिया है. प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष मयूख महर का कहना है कि गुणवत्ता को दरकिनार कर ऑल वेदर रोड का निर्माण हुआ है. जिसका नतीजा है कि लोगों के लिए इस पर सफर करना आसान नहीं रहा.

आम जनता के साथ-साथ जवान भी हो रहे परेशान
डेढ़ सौ किलोमीटर के इस एनएच पर एक नहीं बल्कि दर्जनों डेंजर जोन बन गए हैं जो आए दिन दरक रहे हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि सफर के दौरान यात्री जगह-जगह फंस जा रहे हैं. यही नहीं, डेंजर जोन को पार करना यात्रियों के लिए मौत को मात देने से कम नहीं है. इस एनएच पर आठ लाख की आबादी के साथ-साथ चीन और नेपाल बॉर्डर पर तैनात होने वाले सुरक्षाबल भी निर्भर हैं. बावजूद इसके निर्माणदायी संस्थाओं ने ऑल वेदर रोड के सपने को तार-तार कर डाला.

एनएच के एई पी.एल वर्मा का कहना है कि डेंजर जोन का टीएचडीसी ने सर्वे कर लिया है. सर्वे के बाद रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी, शासन से धनराशि मिलने के बाद डेंजर जोन का ट्रीटमेंट किया जाएगा.

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पिथौरागढ़: 12 दिन के बाद शेष दुनिया से जुड़े 60 गांव, BRO ने कुलागाड़ में बनाया बैली ब्रिज https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-12-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a6-%e0%a4%b6%e0%a5%87%e0%a4%b7-%e0%a4%a6/ https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-12-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a6-%e0%a4%b6%e0%a5%87%e0%a4%b7-%e0%a4%a6/#respond Tue, 20 Jul 2021 12:17:48 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=2893

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पिथौरागढ़. चीन और नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले के कुलागाड़ में बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) ने बैली ब्रिज बनाया है. इस ब्रिज के बनने से दारमा, ब्यास और चौदास घाटियां बाकी दुनिया से जुड़ गई है. बीते आठ जुलाई की रात भारी बारिश के चलते कुलागाड़ नाले (Kulagad Canal) पर बना आरसीसी पुल बह गया था. जिसके बाद यह इलाका पूरी तरह से कट गया था.

बीआरओ ने कुलागाड़ में 24 टन क्षमता का 170 मीटर लंबा बैली ब्रिज बनाया है. ब्रिज का सामान जुटाने के बाद कार्यदासी संस्था ने युद्धस्तर पर काम करते हुए सामरिक नजरिए अहम पुल को सिर्फ पांच दिन में बना दिया. एसडीएम धारचूला अनिल कुमार शुक्ला ने बताया कि ब्रिज स्थापित करना किसी चुनौती से कम नही था. लगातार हो रही बारिश के कारण काफी दिक्कतें उठानी पड़ीं. यही नही अन्य स्थानों पर पुल टूटने के कारण ब्रिज के लिए जरूरी सामान की भी कमी पड़ गई थी. कई जगहों से सामान जुटाकर ब्रिज को बनाया गया.

पुल के बनने के बाद चीन और नेपाल सीमा पर बसे करीब 60 गांव के लोगों को राहत मिली है. यही नहीं, बॉर्डर की सुरक्षा में तैनात सेना, आईटीबीपी और एसएसबी के जवानों को भी फायदा मिला है. पुल टूटने के बाद सुरक्षाबलों के लिए जरूरी सामान भी बॉर्डर पर नहीं पहुंच पा रहा था. आरसीसी पुल के बहने के बाद उत्तराखंड सरकार ने इस इलाके में फंसे लोगों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर भेजा था. लेकिन हेलीकॉप्टर से सिर्फ बीमार लोगों को ही निकाला गया.

दो पड़ोसी देशों की सीमा से सटे इस इलाके में कुलागाड़ का पुल सबसे अहम है. इस पुल की मदद से दारमा, ब्यास और चौदास घाटियां जुड़ती हैं. चीन को जोड़ने वाले लिपुलेख दर्रे को जाने के लिए भी इसी पुल से होकर गुजरना पड़ता है. साथ ही कैलाश-मानसरोवर के दर्शन के लिए जाने वाली तीर्थ यात्रियों का सफर भी इसी पुल के जरिए होता है.

बैली ब्रिज बनने के बाद स्थानीय निवासी नरेन्द्र धामी ने बीआरओ का आभार जताया और बताया कि 12 दिन तक इस सीमावर्ती इलाके में रहने वाले लोगों को काफी दिक्कतें पेश आई.

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पिथौरागढ़: चीन सीमा को जोड़ने वाले कुलागाड़ पुल बहने से दर्जनों गांव का शेष दुनिया से कटा संपर्क https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%80%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a5%8b%e0%a4%a1/ https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%80%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a5%8b%e0%a4%a1/#respond Mon, 12 Jul 2021 13:47:37 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=2741

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पिथौरागढ़. चीन सीमा को जोड़ने वाले उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले के कुलागाड़ पुल (Kulagad Bridge) बहने से हजारों की आबादी कैद हो गई है. हालात यह हो गये हैं कि ब्यास, दारमा और चौदांस घाटी के छह दर्जन से अधिक गांव बाकी दुनिया से पूरी तरह कट गए हैं. ऐसे में जिन लोगों को मजबूरी में आवाजाही करनी पड़ रही है उनके लिए कुलागाड़ को पार करना मौत को मात देने से कम नहीं है.

नीचे उफनती नदी और नदी के ऊपर रस्सियों के सहारे आवाजाही. जरा सी चूक होने पर इंसान सीधा मौत के मुंह में समा जाएगा. कुलागाड़ में पुल बहने के बाद हर दन लोग ऐसे ही आर-पार आने-जाने को मजबूर हैं. कुछ को रस्सियों के सहारे उनकी मंजिल तक पहुंचाया जा रहा है तो वहीं, कुछ तेज बहाव की नदी में बिजली के पोल के सहारे आर-पार आ-जा रहे हैं.

कुलागाड़ में बीआरओ ने 45 करोड़ की लागत से आरसीसी पुल बनाया था. लेकिन बीते आठ जुलाई की रात आई आसमानी आफत ने पुल को ध्वस्त कर दिया. ब्यास घाटी के निवासी अश्विन नपलच्याल कहते हैं कि लोगों को अपनी जिंदगी खतरे में डालनी पड़ रही है. यह पुल बॉर्डर की तीनों घाटियों की लाइफलाइन था. उन्होंने प्रशासन ने जल्द ही इस पुल के निर्माण की गुजारिश की है.

दरअसल कुलागाड़ के पुल के जरिए चीन और नेपाल सीमा से सटी दारमा, ब्यास और चौदांस घाटियां शेष दुनिया से जुड़ती थी. यही नहीं, बॉर्डर की सुरक्षा में तैनात आईटीबीपी, एसएसबी और सेना के जवानों की आवाजाही भी इस पुल से होती थी. जवानों के लिए जरूरी साजो-सामान भी कूलागाड़ के अहम पुल के जरिए बीओपी तक पहुंचता था. लेकिन पुल बह जाने से सबकुछ जहां था वहीं थम गया है. प्रशासन अब कुलागाड़ में वैली ब्रिज बनाने की योजना बना रहा है. एडीएम फिंचाराम चौहान ने बताया कि पांच से छह दिन के भीतर बैली ब्रिज का निर्माण कर दिया जाएगा.. तब तक वैकल्पिक रास्तों की तलाश की जा रही है.

बता दें कि आसमानी आफत ने इस बार सरहदी इलाकों में ज्यादा तबाही मचाई है. इन इलाकों में अन्य पुल और सड़क भी जमींदोज हुए हैं. लेकिन बॉर्डर में रहने वालों को कुलागाड़ में मची तबाही ने सबसे अधिक संकट में डाला है. ऐसे में जब तक बैली ब्रिज नहीं लगता, लोग अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर आर-पार जाने को मजबूर रहेंगे.

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चीन बॉर्डर के करीब बसा यह गांव कभी भी इतिहास के पन्नों में हो सकता है दर्ज, जानें वजह… https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%ac%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%ac-%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%af%e0%a4%b9-%e0%a4%97/ https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%ac%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%ac-%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%af%e0%a4%b9-%e0%a4%97/#respond Mon, 21 Jun 2021 12:30:05 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=2359

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नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं

नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं

कभी जो गांव नदी और नाले से 80 फीट ऊंचा हुआ करता था, आज धौली नदी उसके बराबर जा पहुंची है. तिदांग गांव (Tidang Village) को नीचे से धौली नदी काट रही है. तो दाएं और बाएं तरफ से ग्लेशियर इसको अपनी चपेट में ले रहा है. हर साल नदी और ग्लेशियर के साथ बह कर आने वाले भारी मलबे से गांव नदी के करीब पहुंच गया है

पिथौरागढ़. चीन सीमा (China Border) के करीब बसा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले का तिदांग गांव (Tidang Village) कभी भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो सकता है. पलायन के लिए जाने जाने वाले इस गांव में सौ से अधिक परिवारों पर हर वक्त मौत के बादल मंडराते हैं. गांव को बचाने का वादा तो कइयों ने किया, लेकिन इनका हकीकत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है.

बारह हजार फीट की ऊंचाई पर दारमा घाटी में बसा तिदांग गांव प्रकृति के सौंदर्य से लबरेज है. नदी, ग्लेशियर, हरे-भरे पेड़ इसकी सुंदरता को चार-चांद लगाते हैं. लेकिन यही प्राकृतिक खूबसूरती इस गांव की सबसे बड़ी दुश्मन बन गई है. हालात यह है कि कभी जो गांव नदी और नाले से 80 फीट ऊंचा हुआ करता था, आज धौली नदी उसके बराबर जा पहुंची है. तिदांग गांव को नीचे से धौली नदी काट रही है. तो दाएं और बाएं तरफ से ग्लेशियर इसको अपनी चपेट में ले रहा है. हर साल नदी और ग्लेशियर के साथ बह कर आने वाले भारी मलबे से गांव नदी के करीब पहुंच गया है. तिदांग के पूर्व प्रधान रमेश तितयाल बताते हैं कि उन्होंने कई बार नेताओं और अधिकारियों से गांव को बचाने की गुहार लगाई है. लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता आया है.

तिदांग के निवासी बताते हैं कि गांव को बचाने के लिए केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार भी भरोसा दिला चुके हैं. लेकिन बरसों बीत जाने के बाद भी कुछ हुआ नहीं. इस गांव की पहचान इसलिए भी है कि यहीं से निकलकर डॉ. जीवन सिंह तितयाल ने नेत्र सर्जन के रूप में राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाई थी. डॉ. जीवन सिंह तितयाल को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है. इतनी बड़ी हस्ती से जुड़ा होने के बाद भी तिदांग गांव साल दर साल प्रकृति के जलजले में सिमटता जा रहा है. स्थानीय मामलों के जानकार शालू दताल कहते हैं कि तिदांग गांव तीन तरफ से कट रहा है. अगर यह जारी रहा तो तय है कि जल्द ही गांव का वजूद समाप्त हो जाएगा.

नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं. आपदा प्रबंधन के नाम पर सरकारें हर वर्ष करोड़ों रूपये बहाती हैं, लेकिन लगता है सरकार के नक्शे से तिदांग गांव पहले ही गायब है. यह कहानी सिर्फ तिदांग की नहीं है, बल्कि चीन सीमा से लगे कई गांवों के हालात कुछ ऐसे ही हैं जिनके लिए बरसात मौत से कम नहीं है.





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