चीन बॉर्डर – India Times https://indiatimes24x7.com National News Portal Thu, 28 Oct 2021 00:39:34 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://indiatimes24x7.com/wp-content/uploads/2021/12/cropped-india-times-24x7-1-32x32.png चीन बॉर्डर – India Times https://indiatimes24x7.com 32 32 India-China Border : 1962 से बेदखल ग्रामीण जाना चाहते हैं अपने गांव, उत्तराखंड पुलिस बना रही विकास मेलों की रिपोर्ट https://indiatimes24x7.com/india-china-border-since-1962-the-evicted-villagers-want-to-go-to-their-village-uttarakhand-police-is-preparing-the-report-of-development-fairs/ https://indiatimes24x7.com/india-china-border-since-1962-the-evicted-villagers-want-to-go-to-their-village-uttarakhand-police-is-preparing-the-report-of-development-fairs/#respond Wed, 27 Oct 2021 07:55:15 +0000 https://indiatimes24x7.com/india-china-border-1962-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%a6%e0%a4%96%e0%a4%b2-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%80%e0%a4%a3-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%be/

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देहरादून. 1962 में हुए भारत चीन युद्ध के बाद उत्तरकाशी के दो गांवों नीलांग और जादू के ग्रामीणों को पैतृक गांवों से दूर रखा गया था. तबसे आलम यह है कि आज तक इन लोगों को उनके गांव जाने की इजाज़त नहीं है. केवल पूजा के लिए इन ग्रामीणों को जाने की अनुमति दी जाती है, लेकिन उसके लिए भी इन्हें पहले से आवेदन देकर परमिशन लेनी पड़ती है. अब उम्मीद जगी है कि ये ग्रामीण अपने बंजर पड़े पैतृक गांवों में जाएंगे और किसी तरह ये गांव आबाद हो सकेंगे. जानिए कैसे.

दरअसल, बीते साल हुई देश की डीजीपी मीट में एक योजना तैयार हुई थी, जिसमें पीएम ने देश के इंडो-चाइना से जुड़े इलाकों के गांवों में विकास मेले लगाने के निर्देश पुलिस को दिए थे. इन मेलों का मकसद बॉर्डर इलाकों के गांवों का विकास करना और इनकी समस्याओं को हर स्तर पर दूर करना रखा गया था ताकि आने वाले समय में ये ग्रामीण एक प्रहरी के रूप में भी काम करें. अब उत्तराखंड में बरसों बाद अपने पैतृक गांव पहुंचकर ये लोग आईटीबीपी के बाद सेकंड प्रहरी की तरह काम करते हुए आबाद हो सकते हैं.

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भारत चीन बॉर्डर से जुड़े गांवों में उत्तराखंड पुलिस विकास मेलों का आयोजन कर रिपोर्ट तैयार कर रही है.

क्यों हुए विकास मेले और कैसे?
डीजीपी मीट के निर्देशों के अनुसार इन ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर सभी राज्यों को एक रिपोर्ट तैयार कर केंद्र को सौंपनी थी, जिससे राज्य और केंद्र मिलकर काम कर सकें. अब राज्य के इंडो-चाइना बॉर्डर से जुड़े तीन ज़िलों में उत्तराखंड पुलिस ने विकास मेलों का आयोजन किया, जिसमें पिथौरागढ़ के गुंजी, चमोली के मलारी और उत्तरकाशी के हर्षिल में मेले लगाए गए.

इन मेलों में उत्तरकाशी बॉर्डर से जुड़े नीलांग और जादू के ग्रामीणों समेत स्थानीय लोगों की पहली मांग यही रही कि उनको अपने पैतृक गांव तक जाने की परमिशन मिले, जिससे वो बॉर्डर इलाकों में सेकंड प्रहरियों की तरह काम कर सकें. गढ़वाल के डीआईजी केएस नगन्याल का कहना है कि सभी ज़िलों में विकास मेले लगवाए गए. इनसे स्थानीय लोगों में उत्साह भी दिखा और उन्होंने अपनी कुछ समस्याएं भी पुलिस के सामने रखीं. नगन्याल के मुताबिक डिटेल रिपोर्ट बना कर आने वाली डीजीपी मीट में रखी जाएगी.

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भारत-चीन सीमा के पास अब एक्टिव रहेगी बॉर्डर गार्ड फोर्स, गांव वालों को ट्रेनिंग देगी पुलिस https://indiatimes24x7.com/the-border-guard-force-will-now-be-active-near-the-indo-china-border-the-police-will-train-the-villagers/ https://indiatimes24x7.com/the-border-guard-force-will-now-be-active-near-the-indo-china-border-the-police-will-train-the-villagers/#respond Tue, 28 Sep 2021 07:26:29 +0000 https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%80%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%85%e0%a4%ac-%e0%a4%8f%e0%a4%95%e0%a5%8d/

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देहरादून. उत्तराखंड के सीमांत इलाकों में पुलिस मेलों का आयोजन करने जा रही है. दो से तीन दिन तक चलने वाले इन मेलों के ज़रिए पुलिस सीमांत गांवों में अपना दखल बढ़ाएगी ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा में लिहाज़ से यहां के स्थानीय लोगों को बॉर्डर गार्ड फ़ोर्स के रूप में सक्रिय किया जा सके. इसी योजना के तहत अब अब उत्तराखंड पुलिस अक्टूबर में राज्य के सीमांत इलाकों में दो से तीन दिन के मेलों का आयोजन करने वाली है. पुलिस इन मेलों में सांस्कृतिक प्रोगाम के साथ ही लोकल खेलों को भी प्रमोट करेगी.

पिछले साल पुलिस महानिदेशकों के वार्षिक सम्मेलन में सीमांत गावों में भी पुलिस की सक्रियता बढ़ाने के दिशा निर्देश दिए गए थे. पुलिस को आईटीबीपी, बीएसएफ और आर्मी के साथ मिलकर सीमांत इलाकों में खासकर इंडो-तिब्बत बॉर्डर से लगे क्षेत्रों में ग्रामीणों से भी मेल-जोल बढ़ाने के लिए निर्देश थे ताकि स्थानीय लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से फ़ोर्स का रूप दिया जा सके.

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भारत चीन बार्डर पर स्थित उत्तराखंड के गांव विकास की धारा से अलग पड़े हुए हैं.

विकास कार्य भी होगा

इंडो-तिब्बती बॉर्डर से लगे क्षेत्रों हर्षिल, नीति और व्यास वैली में करीब 18 से 20 गांव हैं, जो आज भी विकास की मुख्य धारा से अलग-थलग पड़े हैं. पुलिस अब बड़ी कम्पनियों से संपर्क कर उनके सीएसआर फण्ड से इन क्षेत्रों में मेलों के आयोजन करेगी और विकास कार्यों को प्रमोट करेगी. बॉर्डर से लगे गांव एक तरह से देश के लिए प्रहरी का भी काम करते हैं लेकिन पिछले कुछ साल से रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य के नाम पर सीमांत क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है. लिहाज़ा सैन्य बलों के साथ ही अब लोकल पुलिस भी इन क्षेत्रों में दखल बढ़ाने जा रही है.

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इस बारे में पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार का कहना है कि हर साल DGP की कॉन्फ्रेंस होती है, उसमें पीएम मोदी ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को निर्देश दिया था कि पुलिस राज्य के सीमांत इलाकों में विकास मेला महोत्सव का आयोजन करे, शुरुआत में तीन मेलों का आयोजन उत्तराखण्ड में किया जा रहा है. इन मेलों को आंतरिक सुरक्षा के लिहाज़ से बड़ा कदम बताया जा रहा है.

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पिथौरागढ़: चीन बॉर्डर को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण सड़क 2 महीने से बंद, दर्जनों गांव के लोग कैद https://indiatimes24x7.com/people-of-dozens-of-villages-imprisoned-for-2-months-important-road-connecting-pithoragarh-china-border/ https://indiatimes24x7.com/people-of-dozens-of-villages-imprisoned-for-2-months-important-road-connecting-pithoragarh-china-border/#respond Mon, 16 Aug 2021 11:32:45 +0000 https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%ac%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c/

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पिथौरागढ़. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले के धारचूला तहसील में चीन बॉर्डर (China Border) को जोड़ने वाली सड़क बीते दो महीने से बंद है. इससे इलाके के दर्जनों गांवों का बाहरी दुनिया से संपर्क कट सा गया है. सोबला-ढाकर रोड के बंद होने से दारमा और चौंदास घटियों के इन गांवों के लोग कैद होकर रह गए हैं. अब हालात यह है कि इन गांवों में रोजमर्रा की चीजें खत्म होने लगी हैं.

बीते 16 जून को आई आसमानी आफत से दारमा और चौंदास घाटी को जोड़ने वाली सड़क तबाह और बर्बाद हो गई थी. हालात यह है कि बॉर्डर को जोड़ती यह महत्वपूर्ण सड़क दर्जनों जगह बंद पड़ी है. कई पुल भी जमींदोज हुए हैं. लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी सीपीडब्ल्यूडी सड़क नहीं खोल पाई है. यह सड़क बंद होने से भारत-चीन सीमा पर तैनात सुरक्षाबलों को दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं, साथ ही दर्जनों गांव के लोग भी कैद हो गए हैं. क्षेत्र के विधायक हरीश धामी का कहना है कि वो इस मुद्दे को विधानसभा के मॉनसून सत्र में उठाएंगे. अगर सरकार ने लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की तो वो विधानसभा में ही धरना शुरू कर देंगे.

हजारों लोगों की लाइफलाइन है बॉर्डर की यह रोड
सड़क बंद होने से दोनों घाटियों के 50 गांवों का बाकी देश-दुनिया से संपर्क कट गया है. कई गांवों के हालात इस कदर खराब हैं कि यहां रोजमर्रा की चीजें खत्म हो गईं हैं. गांव की छोटी दुकानों में जो भी बचा-खुचा सामान है उसकी कीमत कई गुना बढ़ गई है. कहने को तो सरकार ने यहां एक हेलीकॉप्टर तैनात किया है. लेकिन खराब मौसम ने हेलीकॉप्टर को सफेद हाथी बना दिया है. ऐसे में सबसे अधिक संकट बीमार लोगों पर मंडरा रहा है. इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवा के नाम पर एक पीएससी भी नहीं है.

जिलाधिकारी (डीएम) आशीष चौहान ने सीपीडब्ल्यूडी को मलबा हटाकर सड़क को जल्द खोलने के निर्देश दिए हैं. साथ ही पूरे मामले से शासन को भी अवगत करा दिया गया है. उन्होंने कहा कि शासन से जो भी निर्देश मिलेंगे उन पर गंभीरता से अमल किया जाएगा.

दो महीने गुजरने पर भी आसान नही रोड का खुल पाना
सीमा को जोड़ने वाली इस सड़क के जो हालात हैं, उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि निकट भविष्य में भी इसके खुलने के आसार नहीं है. ऐसे में तय है कि सीमांत क्षेत्र में रहने वालों को जल्द राहत नहीं मिलने वाली है. बेहतर होता कि किसी अन्य प्लान पर गंभीरता से अमल किया जाए, ताकि हजारों लोगों की बेपटरी हो चुकी जिंदगी दोबारा पटरी पर आ सके.

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पिथौरागढ़: 12 दिन के बाद शेष दुनिया से जुड़े 60 गांव, BRO ने कुलागाड़ में बनाया बैली ब्रिज https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-12-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a6-%e0%a4%b6%e0%a5%87%e0%a4%b7-%e0%a4%a6/ https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-12-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a6-%e0%a4%b6%e0%a5%87%e0%a4%b7-%e0%a4%a6/#respond Tue, 20 Jul 2021 12:17:48 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=2893

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पिथौरागढ़. चीन और नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले के कुलागाड़ में बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) ने बैली ब्रिज बनाया है. इस ब्रिज के बनने से दारमा, ब्यास और चौदास घाटियां बाकी दुनिया से जुड़ गई है. बीते आठ जुलाई की रात भारी बारिश के चलते कुलागाड़ नाले (Kulagad Canal) पर बना आरसीसी पुल बह गया था. जिसके बाद यह इलाका पूरी तरह से कट गया था.

बीआरओ ने कुलागाड़ में 24 टन क्षमता का 170 मीटर लंबा बैली ब्रिज बनाया है. ब्रिज का सामान जुटाने के बाद कार्यदासी संस्था ने युद्धस्तर पर काम करते हुए सामरिक नजरिए अहम पुल को सिर्फ पांच दिन में बना दिया. एसडीएम धारचूला अनिल कुमार शुक्ला ने बताया कि ब्रिज स्थापित करना किसी चुनौती से कम नही था. लगातार हो रही बारिश के कारण काफी दिक्कतें उठानी पड़ीं. यही नही अन्य स्थानों पर पुल टूटने के कारण ब्रिज के लिए जरूरी सामान की भी कमी पड़ गई थी. कई जगहों से सामान जुटाकर ब्रिज को बनाया गया.

पुल के बनने के बाद चीन और नेपाल सीमा पर बसे करीब 60 गांव के लोगों को राहत मिली है. यही नहीं, बॉर्डर की सुरक्षा में तैनात सेना, आईटीबीपी और एसएसबी के जवानों को भी फायदा मिला है. पुल टूटने के बाद सुरक्षाबलों के लिए जरूरी सामान भी बॉर्डर पर नहीं पहुंच पा रहा था. आरसीसी पुल के बहने के बाद उत्तराखंड सरकार ने इस इलाके में फंसे लोगों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर भेजा था. लेकिन हेलीकॉप्टर से सिर्फ बीमार लोगों को ही निकाला गया.

दो पड़ोसी देशों की सीमा से सटे इस इलाके में कुलागाड़ का पुल सबसे अहम है. इस पुल की मदद से दारमा, ब्यास और चौदास घाटियां जुड़ती हैं. चीन को जोड़ने वाले लिपुलेख दर्रे को जाने के लिए भी इसी पुल से होकर गुजरना पड़ता है. साथ ही कैलाश-मानसरोवर के दर्शन के लिए जाने वाली तीर्थ यात्रियों का सफर भी इसी पुल के जरिए होता है.

बैली ब्रिज बनने के बाद स्थानीय निवासी नरेन्द्र धामी ने बीआरओ का आभार जताया और बताया कि 12 दिन तक इस सीमावर्ती इलाके में रहने वाले लोगों को काफी दिक्कतें पेश आई.

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पिथौरागढ़: चीन सीमा को जोड़ने वाले कुलागाड़ पुल बहने से दर्जनों गांव का शेष दुनिया से कटा संपर्क https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%80%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a5%8b%e0%a4%a1/ https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a5%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%a2%e0%a4%bc-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%80%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a5%8b%e0%a4%a1/#respond Mon, 12 Jul 2021 13:47:37 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=2741

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पिथौरागढ़. चीन सीमा को जोड़ने वाले उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले के कुलागाड़ पुल (Kulagad Bridge) बहने से हजारों की आबादी कैद हो गई है. हालात यह हो गये हैं कि ब्यास, दारमा और चौदांस घाटी के छह दर्जन से अधिक गांव बाकी दुनिया से पूरी तरह कट गए हैं. ऐसे में जिन लोगों को मजबूरी में आवाजाही करनी पड़ रही है उनके लिए कुलागाड़ को पार करना मौत को मात देने से कम नहीं है.

नीचे उफनती नदी और नदी के ऊपर रस्सियों के सहारे आवाजाही. जरा सी चूक होने पर इंसान सीधा मौत के मुंह में समा जाएगा. कुलागाड़ में पुल बहने के बाद हर दन लोग ऐसे ही आर-पार आने-जाने को मजबूर हैं. कुछ को रस्सियों के सहारे उनकी मंजिल तक पहुंचाया जा रहा है तो वहीं, कुछ तेज बहाव की नदी में बिजली के पोल के सहारे आर-पार आ-जा रहे हैं.

कुलागाड़ में बीआरओ ने 45 करोड़ की लागत से आरसीसी पुल बनाया था. लेकिन बीते आठ जुलाई की रात आई आसमानी आफत ने पुल को ध्वस्त कर दिया. ब्यास घाटी के निवासी अश्विन नपलच्याल कहते हैं कि लोगों को अपनी जिंदगी खतरे में डालनी पड़ रही है. यह पुल बॉर्डर की तीनों घाटियों की लाइफलाइन था. उन्होंने प्रशासन ने जल्द ही इस पुल के निर्माण की गुजारिश की है.

दरअसल कुलागाड़ के पुल के जरिए चीन और नेपाल सीमा से सटी दारमा, ब्यास और चौदांस घाटियां शेष दुनिया से जुड़ती थी. यही नहीं, बॉर्डर की सुरक्षा में तैनात आईटीबीपी, एसएसबी और सेना के जवानों की आवाजाही भी इस पुल से होती थी. जवानों के लिए जरूरी साजो-सामान भी कूलागाड़ के अहम पुल के जरिए बीओपी तक पहुंचता था. लेकिन पुल बह जाने से सबकुछ जहां था वहीं थम गया है. प्रशासन अब कुलागाड़ में वैली ब्रिज बनाने की योजना बना रहा है. एडीएम फिंचाराम चौहान ने बताया कि पांच से छह दिन के भीतर बैली ब्रिज का निर्माण कर दिया जाएगा.. तब तक वैकल्पिक रास्तों की तलाश की जा रही है.

बता दें कि आसमानी आफत ने इस बार सरहदी इलाकों में ज्यादा तबाही मचाई है. इन इलाकों में अन्य पुल और सड़क भी जमींदोज हुए हैं. लेकिन बॉर्डर में रहने वालों को कुलागाड़ में मची तबाही ने सबसे अधिक संकट में डाला है. ऐसे में जब तक बैली ब्रिज नहीं लगता, लोग अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर आर-पार जाने को मजबूर रहेंगे.

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चीन बॉर्डर के करीब बसा यह गांव कभी भी इतिहास के पन्नों में हो सकता है दर्ज, जानें वजह… https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%ac%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%ac-%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%af%e0%a4%b9-%e0%a4%97/ https://indiatimes24x7.com/%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%ac%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%ac-%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%af%e0%a4%b9-%e0%a4%97/#respond Mon, 21 Jun 2021 12:30:05 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=2359

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नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं

नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं

कभी जो गांव नदी और नाले से 80 फीट ऊंचा हुआ करता था, आज धौली नदी उसके बराबर जा पहुंची है. तिदांग गांव (Tidang Village) को नीचे से धौली नदी काट रही है. तो दाएं और बाएं तरफ से ग्लेशियर इसको अपनी चपेट में ले रहा है. हर साल नदी और ग्लेशियर के साथ बह कर आने वाले भारी मलबे से गांव नदी के करीब पहुंच गया है

पिथौरागढ़. चीन सीमा (China Border) के करीब बसा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले का तिदांग गांव (Tidang Village) कभी भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो सकता है. पलायन के लिए जाने जाने वाले इस गांव में सौ से अधिक परिवारों पर हर वक्त मौत के बादल मंडराते हैं. गांव को बचाने का वादा तो कइयों ने किया, लेकिन इनका हकीकत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है.

बारह हजार फीट की ऊंचाई पर दारमा घाटी में बसा तिदांग गांव प्रकृति के सौंदर्य से लबरेज है. नदी, ग्लेशियर, हरे-भरे पेड़ इसकी सुंदरता को चार-चांद लगाते हैं. लेकिन यही प्राकृतिक खूबसूरती इस गांव की सबसे बड़ी दुश्मन बन गई है. हालात यह है कि कभी जो गांव नदी और नाले से 80 फीट ऊंचा हुआ करता था, आज धौली नदी उसके बराबर जा पहुंची है. तिदांग गांव को नीचे से धौली नदी काट रही है. तो दाएं और बाएं तरफ से ग्लेशियर इसको अपनी चपेट में ले रहा है. हर साल नदी और ग्लेशियर के साथ बह कर आने वाले भारी मलबे से गांव नदी के करीब पहुंच गया है. तिदांग के पूर्व प्रधान रमेश तितयाल बताते हैं कि उन्होंने कई बार नेताओं और अधिकारियों से गांव को बचाने की गुहार लगाई है. लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता आया है.

तिदांग के निवासी बताते हैं कि गांव को बचाने के लिए केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार भी भरोसा दिला चुके हैं. लेकिन बरसों बीत जाने के बाद भी कुछ हुआ नहीं. इस गांव की पहचान इसलिए भी है कि यहीं से निकलकर डॉ. जीवन सिंह तितयाल ने नेत्र सर्जन के रूप में राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाई थी. डॉ. जीवन सिंह तितयाल को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है. इतनी बड़ी हस्ती से जुड़ा होने के बाद भी तिदांग गांव साल दर साल प्रकृति के जलजले में सिमटता जा रहा है. स्थानीय मामलों के जानकार शालू दताल कहते हैं कि तिदांग गांव तीन तरफ से कट रहा है. अगर यह जारी रहा तो तय है कि जल्द ही गांव का वजूद समाप्त हो जाएगा.

नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं. आपदा प्रबंधन के नाम पर सरकारें हर वर्ष करोड़ों रूपये बहाती हैं, लेकिन लगता है सरकार के नक्शे से तिदांग गांव पहले ही गायब है. यह कहानी सिर्फ तिदांग की नहीं है, बल्कि चीन सीमा से लगे कई गांवों के हालात कुछ ऐसे ही हैं जिनके लिए बरसात मौत से कम नहीं है.





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