Holi 2021: कुमाऊं की खड़ी होली का है खास रंग, नैनीताल में हिंदू-मुस्लिम करते हैं आयोजन
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खड़ी होली का आयोजन 25 सालों से हिंदू और मुस्लिम मिलकर करते हैं.
कुमाऊं की खड़ी होली (Kumaon Holi) का आयोजन हिंदू और मुस्लिम मिलकर करते हैं. जबकि यह परंपरा पिछले 25 सालों से अनवरत जारी है.
दरअसल पहाड़ में होली की तीन रुप हैं मसलन बैठकी होली, महिला होली और खड़ी होली. बैठकी होली पौष के पहले हफ्ते से शुरू हो जाती है, जो भक्ति रस से शुरू होकर समय के साथ बदलती रहती है. बसंत पंचमी से बैठकी होली अपने श्रंगार रस में तब्दील होती है तो शिवरात्रि के बाद ये रंगों में रंग जाती है. वहीं, महिलाएं भी घरों में होलियों का आयोजन करती हैं. इससे बिल्कुल अलग है खड़ी होली. चीर बंधन के साथ खड़ी होली शुरू होती है और कुमाऊं में काली कुमाऊं, चम्पावत, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और नैनीताल में इसका खूब आयोजन होता है. ग्रामीण इलाकों में खेली जाने वाली इस होली की शुरुआत गांव के मन्दिर से होती है जिसके बाद हर घर में जाकर होली गायन होता है और परिवार के लोगों को आशीष दिया जाता है जो छलड़ी यानी होली के दिन तक चलता रहता है जो काफी मनमोहक भी हैं. नैनीताल पहुंची पर्यटक अनू सिंघल कहती हैं कि इस तरह से देखना बिल्कुल अलग है और बिना किसी हुड़दंग के होली का आयोजन होना कल्पना से परे था और ऐसा रंगीन माहौल रोमांस देता है.
इतिहास को समेटे हैं पहाड़ की होलियां…
कुमाऊं की वादियां होलियों के जरिए इतिहास को भी समेटे हैं. कहा जाता है कि होली का इतिहास 400 साल से भी ज्यादा पुराना है जिसमें ढोल की थाप पर पांव व हाथों की चहल कदमी होती है. खड़ी होली का गायन पक्ष भी काफी मजबूत है. इसमें राग दादरा और राग कहरवा में गायन होता है तो इस दौरान राधा कृष्ण, राजा हरिशचन्द्र और श्रृवण कुमार के साथ महाभारत और रामायण काल की गाथाओं का वर्णन होता है. खड़ी होली के होल्यार देवेन्द्र ओली कहते हैं कि ये लोक नृत्य के साथ मस्ती और धूम के साथ सामाजिक संदेश भी है. होल्यार कहते हैं कि इसमें ऋतु वर्णन के साथ वीर रस से योद्धाओं का भी वर्णन किया जाता है.यह भी पढ़ें- हर किसी की चाह ऋषिकेश में गंगा तट पर बने सपनों का आशियाना, जानें जमीन और फ्लैट्स के रेट
हिंदू मुस्लिम कौमी एकता की मिशाल है नैनीताल की होली
नैनीताल की होली कौमी एकता और भाईचारे की भी मिशाल देश और दुनिया को देती है. नैनीताल में होली महोत्सव का आयोजन 25 सालों से हिंदू और मुस्लिम मिलकर करते हैं और आपसी भाईचारे का संदेश समाज को देते हैं. होली के आयोजन कर रहे जहूर आलम कहते हैं कि नैनीताल से हमेशा संदेश दिया जाता रहा है और ऐसे आयोजनों संदेश देने का सही माध्यम होता है. जहूर आलम कहते हैं कि टूरिस्ट भी इसको देखते हैं और जब से इस आयोजन को किया गया है तब से संस्कृति संवर्धन में भी बड़ा फायदा हुआ है. वहीं, होल्यार राजा साह कहते हैं कि भाईचारे के साथ होली मनाने का संदेश इस होली से बेहतर और क्या हो सकता है. आज युवा वर्ग भी अपनी परम्परा से जुड़ रहा है और समाज को भी एक मैसेज दे रहे हैं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना.
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