उत्तराखंड

Haridwar Kumbha: हरिद्वार पर चढ़ने लगा कुंभ का रंग, पेशवाई के लिए आ गए हाथी-घोड़े, ऊंट और सिंहासन

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Haridwwar Kumbha 2021: कुंभ मेले की पहली पेशवाई झांकी 3 मार्च को निकलेगी.

Haridwwar Kumbha 2021: कुंभ मेले की पहली पेशवाई झांकी 3 मार्च को निकलेगी.

Kumbha Mela 2021: हरिद्वार में 11 वर्षों के बाद आयोजित होने वाले कुंभ मेले की पहली पेशवाई 3 मार्च को निकलेगी. इसके लिए विभिन्न अखाड़ों के महंत और महामंडलेश्वर समेत सैकड़ों की तादाद में साधु-संत हरिद्वार पहुंच चुके हैं.

रिपोर्ट – पुलकित शुक्ला

हरिद्वार. 11 वर्षों पर आयोजित हो रहे कुंभ मेला 2021 को लेकर हरिद्वार शहर के ऊपर धार्मिक रंग चढ़ना शुरू हो गया है. 3 मार्च को कुंभ मेले की सबसे पहली पेशवाई निकलेगी. पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी की भव्य पेशवाई के लिए अखाड़े की छावनी में जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं. छावनी में अखाड़े के महंत, महामंडलेश्वर समेत हजारों की तादाद में रमता पंच पेशवाई की तैयारियों में जुटे हुए हैं. पेशवाई के लिए दूर-दूर से खास रथ, सिंहासन, हाथी ऊंट, घोड़े आदि मंगाए गए हैं. कुंभ मेले में अखाड़े की पेशवाई आकर्षण का प्रमुख केंद्र होता है. लोग 12 साल तक अखाड़ों की पेशवाई का इंतजार करते हैं.

3 मार्च को निकलने वाली निरंजनी अखाड़े की पेशवाई के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां की जा रही हैं. निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि पेशवाई को भव्य और आकर्षक बनाने के लिए प्रयागराज से चांदी के सिंहासन, भव्य रथ और कई साजों सामान मंगाए गए हैं. अखाड़े की पेशवाई में उत्तराखंड की संस्कृति की झलक भी देखने को मिलेगी. इसके लिए कई गढ़वाली और कुमाऊंनी कलाकारों की प्रस्तुति को भी पेशवाई में शामिल किया जाएगा. संगीत की धुनों से पेशवाई को सजाने के लिए नासिक से खास बैंड मंगाया गया है यह बैंड पहली बार हरिद्वार में पहुंचा है. हजारों की संख्या में साधु संत हरिद्वार के एसएमजेएन पीजी कॉलेज में बनी छावनी से निकलकर अखाड़े में प्रवेश करेंगे. कई किलोमीटर लंबी यह यात्रा देखने के लिए लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ेगी.

क्या होती है पेशवाईभारत में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक चार शहरों में हर 12 साल के बाद कुंभ मेले का आयोजन होता है. कुंभ मेले से पहले अखाड़ों के साधु संत दूरदराज से आकर कुंभ नगरियों में अपना डेरा जमा लेते हैं. सभी अखाड़ों की ओर से दूर-दूर से आए साधु संतों के लिए छावनियां बनाई जाती हैं. जब ये साधु संत छावनी से निकलकर अखाड़े में प्रवेश करते हैं तो उस यात्रा को पेशवाई कहा जाता है. अखाड़े की पेशवाई एक तरह से धर्म और भारतीय संस्कृति के इतिहास का शक्ति प्रदर्शन होता है. अखाड़ों की स्थापना भारतीय धर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए की गई थी. इसलिए अखाड़ों के साधु संत पेशवाई में तलवार, भाले, गदा, धनुष जैसे अस्त्र शस्त्र लेकर पेशवाईयों में शामिल होते हैं.

क्या है पेशवाई का इतिहास
जानकार बताते हैं कि कुंभ मेले में अखाड़ों की पेशवाई का इतिहास बहुत पुराना है. कुंभ काल में दूरदराज और सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले साधु संत कुंभ नगरीयों का रुख करते हैं. सबसे पहले वे अखाड़ा की छावनी में डेरा जमाते हैं उसके बाद अखाड़ों की ओर बढ़ते हैं. इसी परंपरा को अखाड़ों की पेशवाई कहा जाता है. समय के साथ पेशवाई का स्वरूप भी परिवर्तित हो रहा है.






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