ब्लॉग – India Times https://indiatimes24x7.com National News Portal Sat, 27 Apr 2024 04:15:58 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://indiatimes24x7.com/wp-content/uploads/2021/12/cropped-india-times-24x7-1-32x32.png ब्लॉग – India Times https://indiatimes24x7.com 32 32 विकास के दावों के बीच भूख की त्रासदी झेलने के लिए लोग मजबूर https://indiatimes24x7.com/amidst-claims-of-development-people-are-forced-to-face-the-tragedy-of-hunger/ https://indiatimes24x7.com/amidst-claims-of-development-people-are-forced-to-face-the-tragedy-of-hunger/#respond Sat, 27 Apr 2024 04:15:58 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36352

 विश्‍वनाथ झा
यह अपने आप में एक बड़ा विरोधाभास है कि जिस दौर में दुनिया भर में अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों के जरिए लगातार विकास का हवाला दिया जाता है, उसमें करोड़ों लोगों को पेट भरने के लिए खाना तक नहीं मिलता है। यह अफसोसनाक हकीकत एक तरह से विकास के दावों के सामने आईना है, जो इस बात पर विचार करने जरूरत को रेखांकित करता है कि इसकी दिशा क्या है और आखिर यह किसके लिए है।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को ‘ग्लोबल रिपोर्ट आन फूड क्राइसिस’ यानी खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि विश्व के उनसठ देशों के लगभग 28.2 करोड़ लोग सन 2023 में भूख से तड़पने को लाचार हुए। भूख का सामना करने वाले लोगों की तादाद 2022 के मुकाबले 2.4 करोड़ ज्यादा रही।रिपोर्ट के मुताबिक, भूखे रहने वालों में बच्चे और महिलाएं सबसे ज्यादा हैं। इसके अलावा, बत्तीस देशों में पांच वर्ष से कम उम्र के 3.6 करोड़ अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। साथ ही युद्ध और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की वजह से बढ़ते विस्थापन के बीच पिछले वर्ष कुपोषण की समस्या और ज्यादा गहरी हो गई।

सवाल है कि दुनिया भर में और खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों में अगर भूख सहित कई बड़ी समस्याओं से लड़ने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी की बात की जाती है तो इस त्रासदी के लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि बीस देशों में भूख की मुख्य वजह वहां चल रहे हिंसक संघर्ष थे।

दूसरा बड़ा कारण यह था कि बढ़ते तापमान या मौसम से संबंधित आपदाओं, कीटों के हमले और महामारी के बीच करीब सात करोड़ सत्तर लाख से ज्यादा लोगों को उच्च स्तर की गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। इसी तरह, खाने-पीने की चीजों की महंगाई, आयातित खाद्य वस्तुओं पर निर्भरता, उच्च ऋण स्तर आदि वजहों से भी लोगों को भूख की समस्या से रूबरू होना पड़ा। सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से या वैश्विक स्तर पर भुखमरी के लिए जिन कारणों को चिह्नित किया गया है, उसका हल निकालने की कोशिश किसे करनी है और वह कब होगा।

यह एक जगजाहिर तथ्य है कि संयुक्त राष्ट्र या फिर अन्य संस्थाओं की ओर से विश्व भर में भूख के संकट पर अक्सर अध्ययन रपटें जारी की जाती हैं। उसमें कारण भी बताए जाते हैं। मगर उन्हें दूर करने को लेकर बात औपचारिकताओं से आगे नहीं बढ़ पाती। अन्यथा क्या वजह है कि वर्षों से भुखमरी के हालात कायम रहने के बावजूद इस दिशा में अब तक कोई ठोस हल सामने नहीं आ सका है। उल्टे आर्थिक और सामरिक स्तर पर दुनिया के ताकतवर देश भुखमरी की त्रासदी की ओर ध्यान दिलाए जाने पर भी उसके समाधान को लेकर शायद ही कोई रुचि दिखाते हैं। गरीबी, जलवायु परिवर्तन आदि से उपजी समस्याओं से अगर कोई देश ज्यादा प्रभावित होता है तो सक्षम देश उनकी मदद के लिए क्या करते हैं? संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि युद्धग्रस्त गाजा में सबसे ज्यादा लोगों ने अकाल की गंभीर स्थिति का सामना किया। सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था के होते हुए भी युद्धग्रस्त इलाकों में ऐसे हालात कैसे लंबे समय तक बने रहते हैं और युद्ध को खत्म कराने के प्रयास महज दिखावे के क्यों साबित होते हैं कि लोगों के सामने भूख से तड़पने की नौबत आती है।

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सेहत में बड़ा सहारा, पैंसठ वर्ष से अधिक आयु के लोगों को भी स्वास्थ्य बीमा https://indiatimes24x7.com/big-help-in-health-health-insurance-for-people-above-sixty-five-years-of-age/ https://indiatimes24x7.com/big-help-in-health-health-insurance-for-people-above-sixty-five-years-of-age/#respond Fri, 26 Apr 2024 04:57:50 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36319

मनोज भूटानी
गंभीर और ऐसी बीमारियों, जिनके इलाज में भारी रकम खर्च करनी पड़ती है, स्वास्थ्य बीमा लोगों के लिए बहुत बड़ा सहारा साबित होता है। स्वास्थ्य बीमा शुरू करने का मकसद भी यही था कि लोगों को स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च की चिंता से मुक्त रखा जा सके। मगर इसमें एक बड़ी अड़चन थी कि पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र के लोग स्वास्थ्य बीमा नहीं खरीद सकते थे। आमतौर पर ज्यादातर लोगों को इसी उम्र के बाद स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां घेरती हैं।

मगर स्वास्थ्य बीमा न खरीद पाने के चलते वे निराश हो जाते थे। फिर, कैंसर, हृदय रोग या एड्स जैसी कुछ गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इसकी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इसके अलावा, स्वास्थ्य बीमा खरीदने के बाद अड़तालीस महीने तक उसका लाभ नहीं उठाया जा सकता था। अब भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण ने इन अड़चनों को दूर करते हुए नियम जारी किया है कि पैंसठ वर्ष से अधिक आयु के लोग भी स्वास्थ्य बीमा खरीद सकेंगे। यानी अब किसी भी उम्र में स्वास्थ्य बीमा खरीदा जा सकता है। बीमा कंपनियां अब कैंसर, एड्स और हृदय रोग जैसी बीमारियों की वजह से किसी को बीमा देने से इनकार नहीं कर सकतीं। बीमा खरीदने के छत्तीस महीने बाद उसका लाभ उठाया जा सकेगा।

बीमा क्षेत्र को विस्तार देने और प्रतिस्पर्धी बनाने के मकसद से इस क्षेत्र में निजी बैंकों और विदेशी कंपनियों के लिए सौ फीसद निवेश का रास्ता खोला गया था। फिर बीमा कंपनी बदलने की भी छूट दे दी गई थी। निस्संदेह इससे बीमा कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और लोगों को इसका लाभ मिलना भी शुरू हो गया। मगर स्वास्थ्य बीमा के मामले में कई तरह की अड़चनें बनी हुई थीं। उम्र और कुछ गंभीर बीमारियां इस रास्ते में बड़ी बाधा थीं। अब उनके हट जाने से निस्संदेह बहुत सारे लोगों के लिए आसानी हो जाएगी।

अब जिस तरह जलवायु परिवर्तन और बदलती स्थितियों के चलते अनेक प्रकार की नई-नई बीमारियां पैदा हो रही हैं और बहुत सारे लोगों के लिए इलाज कराना मुश्किल होता जा रहा है, उसमें बीमा कंपनियों का वृद्धावस्था की ओर बढ़ती आबादी को इस सुविधा से वंचित रखना उचित नहीं था। दुनिया के अनेक देशों में वृद्धों की सेहत पर विशेष ध्यान दिया जाता है, मगर जिस तरह हमारे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ और उनमें सुविधाओं का अभाव बढ़ता गया है, उसमें बुजुर्ग आबादी की सेहत का ध्यान रखना चुनौती बनता गया है।

ऐसे में स्वास्थ्य बीमा की शर्तों को लचीला बनाने से कुछ बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। मगर अब भी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को पुख्ता, पारदर्शी और प्रभावशाली बनाने की जरूरत रेखांकित की जाती रहती है। केंद्र सरकार ने आयुष्मान योजना के तहत करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा उपलब्ध करा रखी है। कुछ लोग कंपनियों आदि की सामूहिक बीमा के अंतर्गत आते हैं। कुछ लोगों ने निजी स्तर पर स्वास्थ्य बीमा ले रखा है। मगर चूंकि स्वास्थ्य बीमा की सुविधा का लाभ निजी अस्पतालों में ही लिया जाता है, वहां इनके दावे आदि को लेकर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें मिलती रहती हैं। कोरोना काल के बाद स्वास्थ्य बीमा की वार्षिक किस्तें पचास फीसद से अधिक बढ़ चुकी हैं। इसलिए स्वास्थ्य बीमा नियमों को लचीला बनाने के साथ-साथ इन्हें व्यावहारिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में भी भरोसेमंद कदम उठाने की जरूरत है।

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युवाओं में हार्ट अटैक- सिर्फ एक नहीं, कारण अनेक https://indiatimes24x7.com/heart-attack-in-youth-not-just-one-many-reasons/ https://indiatimes24x7.com/heart-attack-in-youth-not-just-one-many-reasons/#respond Thu, 25 Apr 2024 04:43:45 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36280

 -अतुल मलिकराम
यार उसे हार्ट अटैक कैसे आ सकता है? वह तो हट्टाकट्टा जवान और एकदम फिट था! पिछले दो-चार सालों में हार्ट अटैक के कुछ आश्चर्यजनक मामले देखने के बाद आपके भी जहन में यह सवाल जरूर उठा होगा। जहां हार्ट अटैक को कभी बुजुर्गों को होने वाली बीमारी समझा जाता था, वह आज 25 से 40 आयु वर्ग के युवाओं के दिलों को भी अपनी चपेट में लेने लगा है। कोई क्रिकेट खेलते हुए अचानक हार्ट अटैक का शिकार हो जाता है, तो कोई डांस करते-करते दिल पकड़कर भगवान को प्यारा हो रहा है, कोई जिम में एक्सरसाइज करते हुए तो कोई योग-ध्यान में बैठे-बैठे ही अपने दिल की धड़कनों को थमते हुए देख रहा है। ऐसे मामले सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज में काफी देखने को मिल रहे हैं। लेकिन हार्ट अटैक के मामले में कुछ ऐसे नाम भी सामने आए हैं, जिनकी लाइफस्टाइल देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि उन्हें दिल का दौरा पड़ सकता है, जैसे बिग बॉस विनर और यूथ आइकॉन सिद्धार्थ शुक्ला, मशहूर प्लेबैक सिंगर केके और महज 25 साल के तमिल व हिन्दी टीवी एक्टर पवन सिंह…।

जब अपनी हेल्थ और फिटनेस को लेकर बेहद एलर्ट रहने वाले ये सेलिब्रिटीज भी हार्ट अटैक का शिकार हो सकते हैं, तो जाहिर तौर पर मामला गंभीर और डराने वाला है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 40-69 साल के आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 45 प्रतिशत मामले दिल की बीमारियों के होते हैं। तो अब सवाल यह है कि भारत में खासकर युवाओं में दिल की बीमारियां आखिर इतनी तेजी से घर क्यों कर रही हैं? क्या स्ट्रेस इसका प्रमुख कारण है? जवाब हां या न जो भी हो, लेकिन इससे निजात पाने के लिए हम सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से क्या प्रयास कर रहे हैं, यह गौर करने वाली बात है।

मेडिकल एक्सपर्ट्स की मानें, तो भारतीय युवाओं की लाइफस्टाइल में हो रहे अंधाधुंध बदलाव, इसका एक प्रमुख कारण हो सकते हैं, जो उनके शरीर में डायबिटीज, मोटापा, बीपी या बैड कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों को बढ़ावा दे रहे हैं और ये बीमारियां सीधे तौर पर हार्ट अटैक के खतरे को दिन-प्रतिदिन बढ़ावा दे रही हैं। हालांकि लाइफस्टाइल के साथ-साथ रिलेशनशिप से जुड़े भावुक मामले, घर से अधिक बाहरी खाने पर निर्भरता, ऑफिस के काम का जरुरत से अधिक प्रेशर व स्ट्रेस, डेली रूटीन पर न के बराबर ध्यान, सोने का लगातार कम होता समय और शौक के चक्कर में अत्यधिक शराब व सिगरेट का सेवन, जैसी आदतें भी युवा दिलों को बीमार करने का कारण बन रही हैं।
ऐसे में हम सीधे तौर पर स्ट्रेस को युवाओं में हार्ट अटैक से जोड़कर नहीं देख सकते, बल्कि उपरोक्त कारणों के आधार पर खुद की दिनचर्या में झांकने और उसे सुधारने की जरुरत के हिसाब से भी समझ सकते हैं। स्ट्रेस एक कारण जरूर हो सकता है, लेकिन वह है क्यों, उसे समझने की क्षमता विकसित करना बहुत जरुरी है। डॉक्टर्स या हेल्थ एक्सपर्ट्स आपको आपका दिल तंदरुस्त रखने के कई उपायए जैसे आपकी डाइट में ओमेगा फैटी एसिड से भरपूर चीजें और हरी सब्जियां शामिल करने का सुझाव दे सकते हैं, लेकिन आप खुद को और अपने दिल को कितना समझते हैं, इसका रास्ता आपको खुद ही निकालना होता है।

कॉम्पिटिशन के इस दौर में चीजें तेजी से भाग रही हैं, लेकिन युवा ठहरे हुए हैं। घंटों कुर्सी पर बैठे काम करना हो या मार्केटिंग के लिए दिनरात भटकना हो, लग्जरी लाइफस्टाइल के चक्कर में लाखों रुपए के लोन का बोझ सिर पर ढोना हो या फिर दुनिया क्या कहेगी के फेर में फंसना हो, इन सब के बीच यदि युवा पीढ़ी खुद से खुद को डिसिप्लिन रखने का फैसला करती है तो निश्चित ही तमाम उलझनों और तनाव के बाद भी दिल को मजबूत रख सकता है। डिसिप्लिन से अर्थ खुद से किए गए कुछ नेक वादे हैं, जो आपको सूरज के उगने से पहले उठने और सूरज की तरह चमकने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। जाहिर तौर पर खान-पान और व्यायाम में अनुशासन आपको मानसिक रूप से विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति देगा। अंत में बस इतना ही कह सकता हूं कि जिसे तूफान से उलझने की हो आदत मोहसिन, ऐसी कश्ती को समंदर भी दुआ देता है।

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गरीब और पिछड़े वर्गों के हितों का ध्यान रखें https://indiatimes24x7.com/take-care-of-the-interests-of-the-poor-and-backward-classes/ https://indiatimes24x7.com/take-care-of-the-interests-of-the-poor-and-backward-classes/#respond Wed, 24 Apr 2024 04:33:59 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36238

कार्यस्थल पर कोई भी निर्णय लेते समय देश के गरीब और पिछड़े वर्गों के हितों का ध्यान रखें। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय आर्थिक सेवा (आईईएस) के अधिकारियों के समूह से मुलाकात के दौरान कहा। आर्थिक संकेतक प्रगति के उपयोगी मापदंड माने जाते हैं, इसलिए सरकारी नीतियों को प्रभावी और उपयोगी बनाने में अर्थशास्त्रियों की भूमिका को उन्होंने बहुत उपयोगी बताया।

राष्ट्रपति ने अधिकारियों से कहा, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, ऐसे में उन्हें आने वाले समय में अपनी क्षमताओं को पूरी तरह विकसित कर उनका उपयोग करने के असंख्य अवसर मिलेंगे। कार्यस्थल पर नीतिगत सुझाव देते समय या निर्णय लेते हुए देश के गरीब और पिछड़े वर्गों के हितों का ध्यान रखें। आर्थिक विश्लेषण और विकास कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने के साथ ही संसाधन वितरण प्रणाली और योजनाओं के मूल्यांकन के लिए उचित सलाह प्रदान करने की बात भी उन्होंने की।

2022-2023 के बैच के आईईएस अधिकारियों में 60त्न महिलाओं के होने की बात की और इससे महिलाओं के सर्वागीण विकास के लिए काम करने का आग्रह भी किया। ऐसे दौर में जब आर्थिक विसंगतियां बढ़ती जा रही हैं, राष्ट्रपति द्वारा अधिकारियों को यह सलाह देना देशवासियों के प्रति उनके मानवतावादी रवैये का द्योतक है। गरीबों और जरूरतमंदों के लिए बनाई गई सरकारी नीतियां जब तक प्रभावी नहीं होंगी, तब तक उनका लाभ लक्षित वर्ग तक पहुंचना मुश्किल है।

देखने में आता है कि सरकारें योजनाएं बना कर उन्हें बिसरा देती हैं। उच्चाधिकारियों के हाथ में है कि वे इनका क्रियान्वयन सुबीते से करें। नि:संदेह इस तरह की नौकरियों में देश के हर वर्ग और हर प्रांत के अधिकारियों का चयन होता है, इसलिए उन्हें बुनियादी समस्याओं और संकटों का भान होता है। स्वयं राष्ट्रपति ऐसे समुदाय और वर्ग से निकल कर सबसे बड़े पद तक पहुंची हैं कि उन्हें देशवासियों की समस्याओं का न केवल अहसास है, बल्कि गरीबों और  महिलाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों को भी उन्होंने करीब से देखा है।
किसी भी समाज की प्रगति तभी नजर आती है, जब उसका सर्वागीण विकास हो रहा हो। कहना न होगा कि आर्थिक असंतुलन ने हमारे संकटों को बढ़ाया है। यह चुनौती है, जिससे निपटना बेहद जरूरी है।

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पर्यावरण संरक्षण आज के समय की बड़ी जरुरत https://indiatimes24x7.com/environmental-protection-is-a-great-need-of-todays-time/ https://indiatimes24x7.com/environmental-protection-is-a-great-need-of-todays-time/#respond Tue, 23 Apr 2024 04:34:06 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36205

सुनील कुमार महला
पर्यावरण संरक्षण आज के समय की एक बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि पर्यावरण है तो हम हैं। आज भारत विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन चुका है और जनसंख्या वृद्धि के साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी इसलिए हो जाता है, क्योंकि आज के समय में दुनियाभर में प्लास्टिक का उपयोग लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में हमें वापस हमारे देश की समृद्ध संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों की ओर लौटने की जरूरत आन पड़ी है, क्योंकि हमारे देश की सनातन संस्कृति में बहुत सी चीजें, बातें ऐसी हैं जो हमारी धरती की पारिस्थितिकी, यहां के पर्यावरण का ख्याल रखने में महत्वपूर्ण और अति अहम् भूमिका का निर्वहन वर्तमान में कर सकती है।

आज प्लास्टिक और धातु का युग है। प्लास्टिक का उपयोग तो इस धरती पर बेतहाशा रूप से बढ़ गया है और इसके दुष्परिणाम हमें लगातार देखने को मिल भी रहे हैं। आज हम घरों में भोजन करते हैं। विभिन्न कार्यक्रम यथा शादी-ब्याह में दावतों, धार्मिक उद्देश्यों के लिए सवामणी का आयोजन, पार्टी, रिसेप्शन यहां तक कि अंत्येष्टि आदि में भी मेहमानों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, गांव वालों के लिए भोजन करने करवाने आदि के कार्यक्रम आयोजित करते हैं और अधिकतर इनमें डिस्पोजेबल गिलास, कप्स, फ्लेट्स, थाली, कटोरी आदि का उपयोग करते हैं। प्राचीनकाल में उपयोग में लाने वाले पत्तल और दोना के उपयोग को हमने लगभग भुला सा दिया है। कचौरी, समोसे, पकौड़े, चाट, प्रसादी आदि के लिए आज दोना का प्रयोग विरले ही किया जाता है। पत्तल और दोना पर्यावरण के साथी हैं। जहां प्लास्टिक प्लेट, कटोरी नष्ट नहीं होते, ये आसानी से नष्ट हो मिट्टी या खाद बन जाते हैं। कटाई के बाद बचे पत्तों का उपयोग कुम्हार बर्तन पकाने में करते हैं तो जाड़ों में अलाव के लिए यह काम आ जाते हैं।

सच तो यह है कि पत्ते के पत्तल का प्रयोग बड़े पैमाने पर धन व वातावरण की बचत करता है। पत्तल का प्रयोग साथ ही साथ वैदिक काल से चली आ रही हमारी संस्कृति को भी प्रदर्शित करता है। पत्तल और दोना के पत्ते प्रकृति में पर्यावरण के अनुकूल हैं जो साल के पत्तों से बने होते हैं। केला और साल ही नहीं अपितु सागौन, कमल व कटहल के पत्ते भी भोजन परोसने के काम में लाए जाते हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि सागौन के पत्तों का उपयोग आमतौर पर पानी पूरी के स्टॉल्स पर लोकप्रिय स्रैक परोसने के लिए पाए जाते हैं, ये पत्ते प्राकृतिक फाइबर से भरपूर होते हैं और उनके कसैले गुण उन्हें स्वस्थ और चमकती त्वचा के लिए आदर्श बनाते हैं।

जानकारों के मुताबिक, इन पत्तियों में ग्लूकोज का प्राकृतिक रूप भी होता है, जिसे खाने से भोजन का स्वाद बढ़ जाता है। जहां तक कमल के पत्तों की बात है तो इसके पत्ते दस्त के लिए एक प्राकृतिक इलाज हैं और हृदय स्वास्थ्य और शरीर में समग्र रक्त परिसंचरण में भी सुधार करते हैं। यदि हम यहां कटहल के पत्तों की बात करें तो कटहल के अंडाकार पत्ते भारत के दक्षिणी हिस्सों में सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं। इनका उपयोग न केवल परोसने के लिए किया जाता है, बल्कि खाना पकाने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि भोजन को उनके अंदर लपेटा जा सकता है और स्टीम किया जा सकता है। स्टीमिंग प्रक्रिया फाइटोन्यूट्रिएंट को बाहर निकालती है और कैंसर सहित अन्य हृदय रोगों के जोखिम को कम करती है।

इसके पत्ते विषहरण का भी समर्थन करते हैं और मधुमेह को नियंत्रित करते हैं और ये एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होते हैं। प्राचीनकाल में पत्तल व दोना का उपयोग मुख्य रूप से मंदिरों में भगवान को प्रसाद चढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। आज भी कहीं-कहीं इनका उपयोग देखने को मिल जाता है। पत्तल और दोना पत्तों का उपयोग प्राचीन काल से ही इसकी पवित्रता के लिए किया जाता रहा है। प्राचीनकाल में तो हलवाइयों की दुकानों पर चाट एवं मिठाइयां पत्तों से बने दोनो में ही ग्राहकों को बेची जाती रही हैं। गांवों में विवाह एवं सामूहिक भोज, मृत्यु भोज, नवरात्रि व किसी अन्य कार्यक्रम के दौरान भोजन दोना-पत्तलों में ही परोसे जाते रहे हैं। दोना पत्तल कागज के भी बनाए जाते हैं।

कागज के दोना पत्तल में भोजन की गुणवत्ता बरकरार रहती है। प्राचीनकाल में पारिवारिक समारोहों में पत्तल या पत्रावली पर खाना परोसने की परंपरा अक्सर देखने को मिलती थी। पहले साल या बरगद के पेड़ की सूखी चौड़ी पत्तियों पर भोजन परोसा जाता था। जानकारी देना चाहूंगा कि पत्तल व दोना को लकड़ी के छोटे-छोटे डंडों से सिला जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी प्लेटें आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। अनुष्ठानों में पत्तल और दोना के प्रयोग को आज भी पवित्र व बेहतर माना जाता है। वर्तमान में हम कीमती धातुओं व डिस्पोजेबल प्लास्टिक से बनी थाली और कटोरियों का उपयोग करते हैं, लेकिन पुराने दिनों में सूखे पत्तों से बने क्रॉकरी को पवित्र माना जाता था और त्योहारों पर, उनका उपयोग देवी-देवताओं को भोजन कराने के लिए किया जाता था। पत्तों से बने पत्तल और दोना प्लास्टिक का एक आदर्श विकल्प है।

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राजमार्गों का विस्तार https://indiatimes24x7.com/expansion-of-highways/ https://indiatimes24x7.com/expansion-of-highways/#respond Mon, 22 Apr 2024 04:36:54 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36169

वर्तमान वित्त वर्ष 2024-25 में बीते वित्त वर्ष की तुलना में पांच से आठ प्रतिशत अधिक राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार की संभावना है। पिछले वित्त वर्ष (2023-24) में इन सड़कों के विस्तार की दर लगभग 20 प्रतिशत रही थी। यह बढ़ोतरी इसलिए भी उल्लेखनीय है कि पिछले साल की पहली छमाही में देश के अनेक क्षेत्रों में मानसून की अवधि अपेक्षाकृत अधिक रही थी, जिसके कारण निर्माण कार्यों में अवरोध उत्पन्न हुआ था। निर्माण कार्य में तेजी सितंबर 2023 के बाद ही आ सकी थी। इस तेजी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में 2022-23 की दूसरी छमाही की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक सड़क निर्माण हुआ था।

इसकी एक वजह पहली छमाही की कमी को पूरा करना था और दूसरा कारण यह रहा कि आम चुनाव को देखते हुए परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने पर ध्यान दिया गया। क्रेडिट एजेंसी आइसीआरए की ताजा रिपोर्ट में आकलन किया है कि इस वित्त वर्ष में 12,500 से 13,000 किलोमीटर लंबे नये राष्ट्रीय राजमार्ग बनाये जायेंगे। इस विस्तार को परियोजनाओं पर ध्यान, अधिक आवंटन और सरकार की प्राथमिकता से आधार मिल रहा है। मार्च 2024 तक 45 हजार किलोमीटर से अधिक राजमार्गों के निर्माण की परियोजनाओं को स्वीकृत किया जा चुका है।

यदि भारतमाला परियोजना के पहले चरण के खर्च के संशोधित आकलनों को स्वीकृति देने में केंद्रीय कैबिनेट की ओर से कुछ देरी नहीं हुई होती, तो मंजूर परियोजनाओं का आकार और बड़ा हो सकता था। बीते वित्त वर्ष में 2022-23 की तुलना में आवंटित परियोजनाओं की सड़क लंबाई में 31 प्रतिशत की कमी आयी थी, जिसकी इस वर्ष भरपाई भी हो सकती है और अधिक निर्माण भी संभावित है। राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी इन मार्गों से बेहतर जुड़ाव के लिए अपने सड़कों के निर्माण पर ध्यान दे रही हैं। इससे न केवल आवागमन बढ़ाने में मदद मिली है, बल्कि विभिन्न प्रकार के वस्तुओं की ढुलाई की मात्रा एवं गति भी बढ़ी है। केंद्र सरकार के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की कई योजनाओं को राजमार्गों के निर्माण से जोड़ा गया है।

सड़कों के किनारे भंडारण की सुविधा बढ़ाने के लिए कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस, गोदाम आदि का बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ है। साथ ही, बाजार, होटल, रेस्तरां, मैकेनिक एवं रिपेयर सेंटर आदि भी बढ़े हैं। सड़कों के निर्माण और विस्तार से घरेलू बाजार में आपूर्ति बेहतर हुई है। इससे निर्यात को भी बड़ी मदद मिली है, जिसमें हर साल कीर्तिमान बन रहा है। सड़कों की लंबाई ही नहीं बढ़ रही है, बल्कि उनकी गुणवत्ता में भी निरंतर सुधार हो रहा है। इससे घरेलू पर्यटन को भी प्रोत्साहन मिला है। राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार से विकास की नयी गाथा लिखी जा रही है।

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हमारे रिश्तों के दुश्मन बनते मोबाइल फोन https://indiatimes24x7.com/mobile-phones-becoming-enemies-of-our-relationships/ https://indiatimes24x7.com/mobile-phones-becoming-enemies-of-our-relationships/#respond Sun, 21 Apr 2024 04:39:41 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36139

-प्रियंका सौरभ
फोन लोगों को आपस में जोड़े रखते हैं और संबंध बनाए रखने में मदद करते हैं। लेकिन कुछ मामलों में वे अवरोध भी बन जाते हैं। किसी के सामने उसके फोन की तारीफ  करना और किसी को नीचा दिखाना आजकल की एक बड़ी समस्या बन गया है। सोचिए आज क्यों मोबाइल बन रहे रिश्तों में दरार की वजह? कोई माने या न माने, वास्तविकता में मोबाइल के हद से ज्यादा उपयोग से सामाजिक रिश्तों में हम सब की दिक्कतें बढ़ी हैं। पहले के दौर में जब मोबाइल नहीं था, तो लोगों का आपस में काफी मिलना-जुलना होता था। संवाद का सिलसिला चलता रहता था। लोग एक-दूसरे के दर्द और भावना को समझते थे। साथ ही समस्याओं के निपटारे के लिए प्रयास करते थे। अब मोबाइल के आगमन के बाद बातें तो काफी हो रही हैं, लेकिन दिलों के बीच की दूरियां काफी बढ़ गई हैं। लोगों के बीच उचित संवाद नहीं हो पा रहा है। व्यक्तिगत समस्याओं का जाल बढ़ रहा है और रिश्तों की बुनियाद कमजोर पड़ती जा रही है। आज के समय में एक ही घर में रह रहे लोग एक-दूसरे से बातचीत करने के लिए भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने लग गए हैं।

यही नहीं रोजाना एक साथ बैठकर होने वाली बातचीत और सोशल मीडिया ग्र्रुप्स पर होने लग गई है। ऐसे में इन आदतों का सीधा असर आपके रिश्तों पर पड़ रहा है। मोबाइल फोन के अनुचित उपयोग के कारण आपसी रिश्तों को नुकसान पहुंचाने वाली जो नई आदतें बन रही हैं, उनमें फबिंग भी शामिल है। स्मार्ट फोन पर चिपके रहने के कारण जब आप अपने करीबी रिश्ते को इग्नोर करते हैं, तो उसे फबिंग कहा जाता है। फबिंग एक ऐसा शब्द है जो स्मार्टफोन की लत से जुड़ा है। यह शब्द फोन और स्रबिंग से मिलकर बना है। स्रबिंग का मतलब होता है अनादर करना या फिर अनदेखी करना। स्मार्टफोन के इस्तेमाल से दूसरों की भावनाओं को समझना और भी मुश्किल हो जाता है। जब किसी का पूरा ध्यान स्मार्टफोन पर हो तो उसके चेहरे को पढ़ना मुश्किल है। इसका मतलब है कि इस प्रकार की स्थितियां आमने-सामने की बातचीत से कमजोर होती हैं। सार्थक बातचीत के बिना रिश्ते उतने विकसित नहीं होते। आज के दौर में मोबाइल से बढ़ता लगाव पारिवारिक रिश्तों में दरार पैदा कर रहा है।

पति-पत्नी के रिश्तों में मोबाइल प्यार नहीं बल्कि कलह पैदा करने लगा है। महिला आयोग के अनुसार पारिवारिक कलह के करीब 75 परसेंट केसेज का कारण मोबाइल रहा है। मोबाइल के कारण पति-पत्नी के बीच गलतफहमी, मनमुटाव, लड़ाई-झगड़ा हुआ और मामला तलाक तक जा पहुंचता है। टेक्नोलॉजी हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। लेकिन इसका लगातार इस्तेमाल ना सिर्फ  आपकी मेंटल हेल्थ को बिगाड़ रहा है, बल्कि आपके पार्टनर और रिश्तेदारों को भी आप से दूर कर रहा है। आज के युग डिजिटल युग में टेक्नोलॉजी हमारी रोजमर्रा की लाइफ  का एक अहम हिस्सा बन चुका है। यहां तक कि हम हमारे स्मार्टफोन से लेकर सोशल मीडिया और वीडियो कॉल तक अपने करीबियों से जुड़े रहने पर काफी भरोसा करने लगे हैं। एडवांस टेक्नोलॉजी ने हमारे करीबियों के साथ जुड़ना पहले से कहीं ज्यादा आसान बना दिया है। मोबाइल फोन के आने से जहां जिंदगी आसान हुई है वहीं कुछ मामलों में इसने नुकसान पहुंचाने का भी काम किया है।
दरअसल पहले जहां यह एक जरूरत थी वहीं अब ये जरूरत के साथ लत बन चुकी है।

ऐसी लत जिसके बिना लोगों का एक पल गुजारना भी मुश्किल हो गया है। ये लत अब रिलेशनशिप में भी दरार की वजह बन रही है। अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर लोग अपनी डिवाइस में इस कदर उलझे रहते हैं कि वो दूसरों के साथ बेहतरीन पलों को एंजॉय तक नहीं कर पाते। ऐसे में स्थिति कभी न कभी इतनी बिगड़ जाती है कि रिश्ते में एक दूसरे के बीच गलतफहमियां पनपने लगती हैं। वहीं लगातार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल आपकी मेंटल हेल्थ को भी नुकसान पहुंचा सकता है। आज के समय में जब सोशल मीडिया और फोन ही सब कुछ है लोग एक मिनट भी उससे दूर नहीं रह सकते हैं। लोग किसी से मिलते समय भी फोन पर देखते रहते हैं या सोशल मीडिया पर स्क्रोल करते रहते हैं। उन्हें सामने वाले से ज्यादा जरूरी फोन पर बात करना लगता है। इस व्यवहार को अपमानजनक के रूप में देखा जा सकता है। इससे आप अपने पार्टनर से दूर हो सकते हैं और रिश्ता टूटने की कगार पर आ सकता है। इस बात को सुनश्चित करने के लिए कि आपका रिश्ता पहले की तरह बरकरार रहे, आपको अपने इलेक्ट्रानिक डिवाइसेस से जब भी जरूरत हो तब छोटे-छोटे ब्रेक यानी डिजिटल डिटॉक्स जरूर करने चाहिए। एक्सपर्ट्स के मुताबिक एक डिजिटल डिटॉक्स से आपके रिश्ते और सेहत दोनों सुधर सकते हैं।

]]> https://indiatimes24x7.com/mobile-phones-becoming-enemies-of-our-relationships/feed/ 0 उम्मीदों का संकल्प पत्र https://indiatimes24x7.com/resolution-letter-of-expectations/ https://indiatimes24x7.com/resolution-letter-of-expectations/#respond Sat, 20 Apr 2024 04:29:22 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36102

लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनात पार्टी (भाजपा) ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया, जिसे वे ‘संकल्प पत्र’ कहते हैं। यह युवाओं, महिलाओं, किसानों व गरीबों पर केंद्रित है। संकल्प पत्र जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि हम परिणाम लाने के लिए काम करते हैं। हमारा फोकस निवेश से लेकर नौकरी तक का है। मुफ्त राशन योजना जारी रहेगी। पांच लाख तक मुप्त इलाज जारी के रहने के साथ ही इसके दायरे में अब ट्रांसजेंडर भी आएंगे। पाइप के जरिए घर-घर गैस पहुंचाई जाएगी। तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने व महिलाओं को लखपति बनाने की भी बात दोहराई। उन्होंने कहा जिन्हें कोई नहीं पूछता, उन्हें मोदी पूजता है।

गरीबों को लूटने वाले जेल जा रहे हैं, भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई चालू रहने की बात भी उन्होंने की। विपक्ष ने इसे भाजपा का केंद्र से विदाई का घोषणापत्र बताया। एक राष्ट्र-एक चुनाव समान नागरिक संहिता लाने जैसे मुद्दों को दोहराने के साथ ही भाजपा ने तीन तलाक, अनुच्छेद 370 हटाने व राम मंदिर बना मर अपना वायदा निभाने की गारंटी देने का प्रयास भी किया है। घोषणा पत्र की अमूमन बातें प्रधानमंत्री अपने भाषणों में पहले ही करते रहे हैं। इसलिए इसमें कुछ नया तो नहीं कहा जा सकता। मुफ्त योजनाओं के जारी रखने की बात से जनता को यह आासन जरूर मिल जाता है कि सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में भी इन्हें बंद नहीं कर देगी।

कांग्रेस अपने घोषणा को न्याय पत्र का नाम देकर इसी रास्ते पर नजर आ रही है। पार्टी ने महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण, गरीब लड़कियों को आर्थिक मदद, मुफ्त स्वास्थ्य बीमा, युवा-नारी-किसान-श्रमिक-आर्थिक व पर्यावरणीय न्याय के बूते सभी को समेटने के प्रयास किया है। यह सच है कि मतदाता को लुभाने वाले ये घोषणा पत्र कुछ तक प्रभावी होते हैं। मगर देश में इस वक्त युवा मतदाताओं की बढती दर ने राजनीतिक दलों को संकट में ला खड़ा किया है।

इस नए मतदाता को प्रभावित करना उतना आसान भी नहीं है। जिन्हें शिक्षा, रोजगार व बेहतर भविष्य की आशाएं हैं। काफी हद तक वे मुफ्त योजनाओं व बड़े-बड़े वायदों से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकते। मगर उनके भीतर अपने बेहतर भविष्य व सुकून भरे जीवन को लेकर आस्त रहने के सवाल भी हैं। राजनीतिक पार्टियां घोषणाएं कितनी भी कर लें मगर सच तो यह है कि मतदाता को प्रभावित कर पाना आसान भी नहीं है। इनका भरोसा जीतना वाकई दुष्कर कार्य है।

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रोजगार सृजन की गति भी बढ़नी चाहिए https://indiatimes24x7.com/the-pace-of-employment-creation-should-also-increase/ https://indiatimes24x7.com/the-pace-of-employment-creation-should-also-increase/#respond Fri, 19 Apr 2024 04:37:31 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36065

अजीत रानाडे
कुछ दिन पहले जेनेवा स्थित अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट ने संयुक्त रूप से ‘इंडिया एमंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024’ प्रकाशित किया है। तीन सौ पन्नों की यह सारगर्भित रिपोर्ट भारत में श्रम एवं रोजगार के संबंध में इन दोनों संस्थानों द्वारा प्रकाशित तीसरी बड़ी रिपोर्ट है। इन संस्थाओं ने 2014 में श्रम एवं वैश्वीकरण तथा 2016 में विनिर्माण में रोजगार नीत वृद्धि पर रिपोर्ट का प्रकाशन किया था। हालिया रिपोर्ट में 2000 के बाद की दो दशक से अधिक की अवधि के आंकड़ों को प्रस्तुत किया गया है, जिनमें से अधिकांश सरकारी स्रोतों से लिए गये हैं। साल 2018 से पहले आंकड़ों का मुख्य स्रोत रोजगार की स्थिति पर होने वाला पंचवर्षीय सर्वेक्षण था। उसके बाद तीन माह पर आने वाला श्रम बल सर्वेक्षण स्रोत बन गया। ये आंकड़े सभी शोध करने वालों को उपलब्ध हैं और वर्तमान रिपोर्ट में इनका गहन विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों पर चर्चा से पहले परिभाषाओं को याद रखना महत्वपूर्ण है। श्रम बल भागीदारी दर का अर्थ कामकाजी आबादी (15 साल से अधिक आयु के लोग) के वे लोग हैं, जो कार्यरत हैं या काम की तलाश में हैं। उल्लेखनीय है कि भारत की आबादी की वृद्धि दर घटकर हर साल 0।8 प्रतिशत हो गयी है, पर श्रम बल अभी भी सालाना दो प्रतिशत से अधिक दर से बढ़ रहा है। पहले इस वृद्धि से हम देखते हैं कि बीते दो दशकों में श्रम बल भागीदारी दर की स्थिति क्या रही है। कामगार भागीदारी अनुपात कामकाजी आयु के उन लोगों का अनुपात है, जो कार्यरत हैं। शेष बेरोजगार हैं और इसलिए बेरोजगारी दर श्रम बल का वह हिस्सा है, जिसके पास काम नहीं है और वह काम की तलाश में है।

निष्कर्षों में इस दीर्घकालिक रुझान को रेखांकित किया गया है कि 2019 तक भागीदारी दर, भागीदारी अनुपात और बेरोजगारी दर उलटी दिशा में अग्रसर थे। भागीदारी दर गिर रही थी और बेरोजगारी दर बढ़ रही थी। यह निराशाजनक है क्योंकि इसका मतलब है कि बढ़ती अर्थव्यवस्था रोजगार सृजन नहीं कर रही है। साल 2000-12 के बीच अर्थव्यवस्था हर साल 6।2 प्रतिशत की दर से बढ़ी, पर नौकरियां मात्र 1।6 प्रतिशत की दर से ही बढ़ीं। साल 2012-19 के बीच तो स्थिति और खराब हो गयी, जब औसत आर्थिक वृद्धि दर 6।7 प्रतिशत थी, पर रोजगार वृद्धि दर केवल 0।1 प्रतिशत रही। यह ‘जॉबलेस ग्रोथ’ का ठोस मामला है। इसका अर्थ यह है कि प्रति कामगार आर्थिक उत्पादकता बढ़ रही है, जिससे अतिरिक्त कामगार की जरूरत नहीं रह जाती। इसका यह भी मतलब है कि आर्थिक वृद्धि का मुख्य आधार पूंजी है और प्रति कामगार अधिक मशीनों का उपयोग हो रहा है। यह सबसे अधिक विनिर्माण क्षेत्र में है। इस क्षेत्र में 2000-19 की अवधि में रोजगार वृद्धि मात्र 1।7 प्रतिशत सालाना रही, जबकि उत्पादन में 7।5 फीसदी बढ़ोतरी हुई। सेवा क्षेत्र में रोजगार वृद्धि लगभग तीन प्रतिशत रही। इस अवधि में कंस्ट्रक्शन के काम में अच्छी बढ़त हुई।

वृद्धि प्रक्रिया से अपेक्षा रहती है कि वह कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त श्रम को विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र में लाये। इसे अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन कहा जाता है। इसमें बढ़ता निर्यात भी सहयोगी हो सकता है। जीडीपी में 1984 में वस्तुओं और सेवा के निर्यात का हिस्सा केवल 6।3 प्रतिशत था, जो 2022 में 22 प्रतिशत हो गया। वैश्विक बाजार में अवसर बढ़ने से भारत में रोजगार बढ़ना चाहिए था, अगर श्रम आधारित निर्यात पर ध्यान दिया जाता। निर्यात आधारित वृद्धि को पूर्वी एशिया के अधिकांश देशों में देख सकते हैं, जहां पांच दशक पहले यह जापान में शुरू हुई और वियतनाम जैसे देशों में अभी भी चल रही है। भारत ने वह अवसर खो दिया, पहले निर्यात को लेकर निराशावाद रहा और बाद में वैश्विक मूल्य शृंखला में शामिल होने से हिचक रही। यह स्थिति बदल सकती है। लेकिन अब नयी चुनौतियां हैं, जैसे भू-राजनीतिक कारणों से व्यापार बाधाओं का बढ़ना तथा ऑटोमेशन के चलते नौकरियों पर संकट।

विनिर्माण में दो दशकों से रोजगार कुल श्रम बल के 12-14 प्रतिशत पर अटका हुआ है। इसके कई कारण हैं, जिनमें एक यह है कि इस क्षेत्र में पूंजी की सघनता को लेकर झुकाव है। लेकिन एक बड़ी समस्या है कौशल का अभाव। शिक्षा क्षेत्र उम्मीद पर खरा नहीं उतर रहा है क्योंकि जो छात्र स्कूल-कॉलेज से निकल रहे हैं, वे रोजगार योग्य नहीं हैं। इसलिए अचरज की बात नहीं है कि बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार हैं। युवाओं में, 34 साल से कम आयु के, बेरोजगारी 83 प्रतिशत के स्तर पर है। इस आयु के बाद नौकरी पाने की संभावना नाटकीय ढंग से बढ़ जाती है, भले ही वेतन अच्छा न हो। आबादी में युवाओं का हिस्सा 27 प्रतिशत है और आयु बढ़ने के साथ यह संख्या 2036 तक 23 प्रतिशत रह जायेगी। चूंकि कॉलेजों में नामांकन दर बढ़ रही है, तो वे युवा श्रम बल का हिस्सा नहीं होंगे, जिसके कारण श्रम बल में भागीदारी दर कम हो सकती है।

लेकिन युवा बेरोजगारी एक कठिन चुनौती बनी हुई है। यह दो दशकों में 5।7 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 17।5 प्रतिशत हो गयी और 2022 में घटकर 12।1 प्रतिशत हो गयी। इस समस्या का सीधा संबंध शिक्षा से है। साल 2022 में लिख या पढ़ नहीं पाने वाले युवाओं में बेरोजगारी दर 3।4, माध्यमिक या उससे अधिक शिक्षा पाये युवाओं में 18।4 और स्नातकों में 29।1 प्रतिशत थी। यह देश में अब तक की सबसे अधिक शिक्षित युवा बेरोजगारी है। विभिन्न कारकों में मुख्य कारक है कि कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण का अभाव। यह हमारे शिक्षण एवं कौशल प्रशिक्षण के संस्थानों की असफलता है। यह समय है कि अप्रेंटिसशिप कार्यक्रमों को तीव्रता से आगे बढ़ाया जाए, जो देश में कहीं भी उपलब्ध कराये जा सकते हैं।  इस कार्यक्रम में ऐसे प्रशिक्षण का अवसर देने वालों पर कामगार को स्थायी काम देने के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए। इस रिपोर्ट में उपयोगी विश्लेषण के साथ-साथ नीति-निर्धारकों के लिए सुझाव भी दिये गये हैं। नीति को लेकर मुख्य सुझाव है कि न केवल निर्यात या उत्पादन के मूल्य के आधार पर, बल्कि अधिक रोजगार पैदा करने वाले निवेशों को भी प्रोत्साहन दिया जाए। साथ ही, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत रोजगार क्षमता, कौशल विकास, रोजगारदाताओं के साथ सहभागिता तथा अनुभवजन्य शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अगला दशक भारत के मानवीय पूंजी को बढ़ाने में निवेश करने का दशक होना चाहिए।
( कुलपति केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश)

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बढ़ता डिजिटल सेवा निर्यात https://indiatimes24x7.com/growing-digital-services-exports/ https://indiatimes24x7.com/growing-digital-services-exports/#respond Thu, 18 Apr 2024 04:38:12 +0000 https://indiatimes24x7.com/?p=36023

अशोक शर्मा
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक से संबंधित वस्तुओं के बढ़ते निर्यात के साथ-साथ भारत डिजिटल माध्यम से मुहैया करायी गयीं सेवाओं के निर्यात में भी वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। विश्व व्यापार संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2023 में भारत ने 257 अरब डॉलर मूल्य के ऐसी सेवाओं का निर्यात किया है, जो 2022 की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक है। इस क्षेत्र में भारत जर्मनी और चीन को पीछे छोड़ते हुए चौथे स्थान पर आ गया है। अब भारत से आगे केवल अमेरिका, ब्रिटेन और आयरलैंड हैं। डिजिटल माध्यम से सेवा मुहैया कराने का अर्थ यह है कि कंप्यूटर नेटवर्क का इस्तेमाल कर शिक्षा, गेमिंग, मनोरंजन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि के लिए दक्ष ऑपरेटर, कुशल प्रोग्रामर और कोडिंग विशेषज्ञ अपनी सेवाएं देते हैं। वैश्विक सेवा व्यापार में डिजिटल माध्यम से मुहैया करायी जाने वाले सेवाओं का हिस्सा अब 20 फीसदी से भी ज्यादा हो गया है। यह आंकड़ा 2005 में 14 प्रतिशत था। वस्तुओं के निर्यात में कई कारणों- भू-राजनीतिक तनाव, हिंसक संघर्ष, आपूर्ति शृंखला में अवरोध, मुद्रास्फीति में वृद्धि, मांग में कमी आदि- से बीते वर्षों में उतार-चढ़ाव होता रहा है। हालांकि इस वर्ष बेहतरीन की उम्मीद जतायी जा रही है, लेकिन आशंकाएं भी बनी हुई हैं।

इस रुझान के उलट कोरोना महामारी के दौर से पहले के तुलना में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल सेवाओं का निर्यात अभी 50 प्रतिशत से अधिक के स्तर पर है। इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा भी बहुत है क्योंकि कई देश सॉफ्टवेयर, प्रोग्रामिंग, कोडिंग आदि डिजिटल क्षमताओं को बढ़ाने में जुटे हैं। अनेक देश ऐसी सेवाओं के आयात करने के बजाय अपने देश में इन्हें विकसित कर रहे हैं, भले ही उनकी गुणवत्ता कमतर हो। फिर इन सेवाओं से डाटा सुरक्षा और संग्रहण के मुद्दे भी जुड़े होते हैं। ऐसी स्थिति में भारत से डिजिटल सेवा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि से यह इंगित होता है कि इन सेवाओं की गुणवत्ता और दक्षता उत्कृष्ट है तथा सुरक्षा को लेकर भी भारतीय सेवा प्रदाताओं पर भरोसा बढ़ा है। बीते वित्त वर्ष में अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 के बीच भारत से वस्तुओं और सेवाओं का कुल निर्यात 709 अरब डॉलर से अधिक रहा है तथा इस अवधि में हमारा कुल आयात 782 अरब डॉलर से ज्यादा हुआ है। हाल के वर्षों में भारत सरकार ने आर्थिक सुधारों, नीतिगत पहलों तथा प्रोत्साहन कार्यक्रमों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उत्पादन तथा निर्यात बढ़ाने को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया है। घरेलू बाजार में भी देशी उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। विदेशी निवेश, तकनीक और साझेदारी बढ़ाने के लिए भी सरल नियमों को लागू किया जा रहा है। इन प्रयासों के उत्साहजनक नतीजे हमारे सामने हैं। डिजिटल सेवा जैसे क्षेत्र में वृद्धि से नया बाजार भी हासिल हो रहा है।

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