उत्तराखंड सरकार के बड़े फैसले: डॉक्टरों को तोहफा, 3 लाख कर्मचारियों को DA में बढ़ोत्तरी की सौगात
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देहरादून. उत्तराखंड में सबसे लंबे समय तक भाजपा के मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत इन दिनों अपना समय राज्य का दौरा करने, रक्तदान शिविरों में भाग लेने और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ तस्वीरें क्लिक करने में बिता रहे हैं. देहरादून के डोईवाला से विधायक त्रिवेंद रावत और उनके समर्थक अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं कि त्रिवेंद्र आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं. ‘मुझे नहीं पता कि मुझे क्यों सीएम पद से हटाया गया था’, यह बात पहले कह चुके रावत से जब उनके चुनाव लड़ने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ एक कार्यकर्ता हूं. पार्टी जो कहेगी, वैसा करेंगे.” दो सवाल और हैं, आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के और भी पूर्व सीएम किस भूमिका में हैं? और, इन नेताओं से भाजपा को क्यों चिंता हो सकती है?
अन्य पूर्व मुख्यमंत्री क्या कर रहे हैं?
संयोग से, नवम्बर में अपने गठन के 21 साल पूरे करने वाले राज्य उत्तराखंड में सबसे अधिक मुख्यमंत्री भाजपा ने दिए हैं. भाजपा के मौजूदा आठवें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हैं, जबकि नवंबर 2000 में नित्यानंद स्वामी कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करने वाले पहले नेता थे. स्वामी की 2012 में मृत्यु हो गई, जबकि 2001 में स्वामी की जगह लेने वाले मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी फिलवक्त महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. दो बार सीएम रह चुके बीसी खंडूरी अस्वस्थ हैं और मुख्यधारा की राजनीति से दूर हैं.
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2012 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा अब भाजपा में हैं. उनके बेटे उत्तराखंड विधानसभा में पार्टी विधायक हैं. छह साल पहले हरीश रावत सरकार के खिलाफ बगावत करने में बहुगुणा की अहम भूमिका थी. बहुगुणा के अलावा, पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक, जो हाल तक केंद्रीय मंत्री थे, अपने राजनीतिक ‘संन्यास’ के अंत का इंतजार कर रहे हैं.
आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों की भूमिका भाजपा अब तक तय नहीं कर पाई है.
दूसरी ओर, राज्य के इतिहास में सबसे कम समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले तीरथ सिंह रावत के करीबी सहयोगियों का कहना है कि तीरथ सिंह प्रदेश की राजनीति में एक भूमिका की उम्मीद कर रहे हैं. निशंक और तीरथ क्रमश: हरिद्वार और पौड़ी गढ़वाल से सांसद हैं.
नए पावर सेंटर का डर
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों की राजनीति में सक्रियता हमेशा “जोखिम वाला फैक्टर” बनती है, खासकर जब पार्टी के भीतर तकरार स्पष्ट हो. राज्य भाजपा के महासचिव कुलदीप कुमार ने न्यूज़18 को बताया, “केंद्रीय संसदीय बोर्ड ही उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का फैसला करता है, चाहे पूर्व मंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री. सभी पूर्व सीएम हमारी कोर टीम का हिस्सा हैं. हम उन्हें पार्टी के घोषणापत्र, अभियान दल में शामिल करेंगे.”
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इधर, राज्य में कांग्रेस के नाम तीन पूर्व सीएम हैं. उनमें से, विजय बहुगुणा 2016 में भाजपा में शामिल हो गए, जबकि उत्तराखंड में पद पर पांच साल पूरे करने वाले एनडी तिवारी का 2018 में निधन हो गया. हरीश रावत पंजाब मामलों के प्रभारी के रूप में व्यस्त हैं, जहां हाल में कैप्टन अमरिंदर सिंह से चरणजीत सिंह चन्नी को सत्ता हस्तांतरित हुई है.
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