उत्तराखंड

1927 जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा ने पत्नी के कहने पर छोड़ दी थी कांग्रेस, फिर कूद गए थे समाज सेव में

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कश्मीर और कोहिमा की यात्रा के बाद वे टिहरी बांध के विरोध में कूद गए.

कश्मीर और कोहिमा की यात्रा के बाद वे टिहरी बांध के विरोध में कूद गए.

14 साल की उम्र में सुदंर लाल बहुगुणा (Sundar Lal Bahuguna) टिहरी रियासत के खिलाफ प्रजा मंडल के आंदोलन में कूद गए थे.

देहरादून. विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता सुदंर लाल बहुगुणा (Sundar Lal Bahuguna) का जन्म टिहरी के डोबरा के मरोड़ा गांव (Marora village) में 9 जनवरी 1927 को हुआ था. पिता का नाम अम्बादत्त बहुगुणा और माता का नाम पूर्णा देवी था. बचपन से ही महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले सुंदर लाल बहुगुणा ने गांधी के आदर्शों पर चलने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम और लोगों को उनका हक दिलाने के लिए उन्होंने उपवास को अपना हथियार बनाया. शुरूआती दौर में उन्होंने छूआछूत, दलितों के मंदिर में प्रवेश को लेकर आंदोलन के साथ ही पहला उपवास किया था. 14 साल की उम्र में सुदंर लाल बहुगुणा टिहरी रियासत के खिलाफ प्रजा मंडल के आंदोलन में कूद गए. गांधी और श्रीदेव सुमन को अपना गुरू मानने वाले बहुगुणा ने रियासत की. आजादी के लिए नरेद्रनगर जेल में भी रहे. 24 साल की उम्र में बहुगुणा ने कांग्रेस की सदस्यता भी ली. लेकिन उसके बाद उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया और शादी के समय उनकी पत्नी बिमला बहुगुणा ने एक शर्त रखी. पत्नी ने कहा कि अगर वो राजनीति में रहेंगे तो वो उनसे शादी नहीं करेंगी. जिसके बाद बहुगुणा ने राजनीति छोड़ दी. और उसके बाद उन्होंने दलीय राजनीति भी छोड़ दी. इसके बाद वे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में छूआछूत विरोधी, दलितों के मंदिर प्रवेश, ग्राम स्वराज, स्वरोजगार, नशा विरोधी और जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन किए. चिपको आंदोलन को नई दिशा दी इसके बाद वनों को लेकर चल रहे आंदोलन में बहुगुणाजी ने भागीदारी दी और चिपको आंदोलन के दौरान उत्तरकाशी और टिहरी के बडियारगढ़ में दो उपवास किए. करीब एक दशक तक बहुगुणा जी चिपको आंदोलन में सक्रिय रहे. इसी दौरान पूरे हिमालय को जानने के लिए बहुगुणा ने पैदल नापा और कश्मीर से कोहिमा तक की पैदल यात्रा की. उसके परिवर्तन और व्यवस्था को चिपको आंदोलन को नई दिशा दी.टिहरी बांध विरोध में बहुगुणाजी कूद गए थे कश्मीर और कोहिमा की यात्रा के बाद वे टिहरी बांध विरोध में कूद गए और अपनी हिमालय यात्रा के एक्सपीरियेंस को लोगों से साझा किया. इसके बाद उन्हें पर्यावरणविद कहा जाने लगा. बहुगुणा जी ने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए कई किताबें, कई संस्कर भी लिखें. 1992-93 में हिमालय बचाओं आंदोलन को बहुगुणाजी ने पुर्नगठित किया और नई दिशा दी. टिहरी बांध विरोधी में भी बहुगुणा जी ने चार बाड़े उपवास किए.







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