उत्तराखंड

हरिद्वार में मांस प्रतिबंध मामले में हाई कोर्ट ने पूछा, ‘क्या राज्य तय करेगा लोगों की पसंद?’

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नैनीताल. उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘लोकतंत्र का अर्थ केवल बहुसंख्यकों का शासन ही नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना’ होता है. हरिद्वार को मांस मुक्त शहर बनाने संबंधी मामले पर दो याचिकाओं की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी सभ्यता की महानता का पैमाना यही होता है कि वह कैसे अल्पसंख्यक आबादी के साथ बर्ताव करती है. हरिद्वार में जिस तरह के प्रतिबंध की बात की गई है, उससे यही सवाल खड़ा होता है कि क्या नागरिकों की पसंद राज्य तय करेगा!

चीफ जस्टिस आरएस चौहान ने कहा, ‘मुद्दा यही है कि अपना भोजन चुनने का अधिकार नागरिक को है या फिर यह राज्य तय करेगा… अगर हम कहते हैं कि यह राज्य तय करेगा क्योंकि राज्य एक खास किस्म के मांस पर प्रतिबंध लगाने को मंज़ूरी दे चुका है, तो सवाल यह है कि क्या अन्य तरह के मांस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है?’

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क्या है पूरा मामला?

वास्तव में यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने उस मामले में की, जो हरिद्वार को ‘कसाईखाना मुक्त’ शहर बनाने से जुड़ा है. इस साल मार्च के महीने में उत्तराखंड ने हरिद्वार के कसाईखानों को जारी किए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र रद्द कर दिए थे. इस बैन के खिलाफ दो याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इन पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में धार्मिक पहलू के बजाय इस बात पर फोकस करना चाहिए कि एक नागरिक की निजता की सुरक्षा को लेकर संविधान क्या कहता है.

इस सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह भी माना कि इन याचिकाओं में ‘गंभीर बुनियाद मुद्दों’ को उठाया गया है. हालांकि 21 जुलाई को बकरीद से पहले कोई भी आदेश देने के बजाय इस मामले में हाई कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 23 जुलाई तय की.

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