हरिद्वार कुंभ: मेला समाप्त करने पर अखाड़ों में फूट, बैरागी संत बोले माफी मांगे निरंजनी अखाड़ा
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सांकेतिक फोटो.
उत्तराखंड (Uttarakhand) के हरिद्वार कुंभ (Haridwar Kumbh) को 30 अप्रैल से पहले ही समाप्त करने पर साधु-संत एक मत नहीं हैं. इस मामले में सन्यासी और बैरागी अखाड़े आमने-सामने आ चुके हैं.
बैरागी अखाड़ो से जुड़े निर्मोही अणि, निर्वाणी अणि और दिगंबर अणि के संतों ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेस कर इस निरंजनी और आनंद अखाड़े के फैसले पर नाराजगी जाहिर की. दोनों अखाड़ों के संतों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की मांग की. निर्वाणी अनी अखाड़ा के अध्यक्ष महंत धर्मदास ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है कि कुंभ मेला समाप्ति की घोषणा करने का अधिकार या तो अखाड़ा परिषद को है या मुख्यमंत्री या मेला अधिकारी को. कोई भी अखाड़ा अकेले ये फैसला नहीं ले सकता है. इसलिए निरंजनी और आनंद अखाड़े द्वारा 17 अप्रैल को मेला समाप्ति की जो घोषणा की गई है वो पूरी तरह से गलत है. यही नहीं महंत धर्मदास ने कहा कि दोनों अखाड़े अन्य अखाड़ों से माफी मांगे अन्यथा उनके अखाड़े अखाड़ा परिषद के साथ नहीं रह सकते.
कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए निरंजनी अखाड़े ने की थी घोषणा
गुरुवार को निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत रविंद्रपुरी ने कहा था कि कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए उनका अखाड़ा 17 अप्रैल को अपनी तरफ से मेला समाप्ति की घोषणा करता है. हालांकि उन्होंने साफ किया था कि ये केवल उनके अखाड़े का फैसला है. क्योंकि कई साधु और संतों के साथ ही उनके भक्त और श्रद्धालु भी कोरोना पॉजीटिव आए हैं. इसलिए वो समय से पहले ही कुंभ मेला समाप्ति का फैसला लेने को मजबूर हैं. इस अखाड़े के सहयोगी आनंद अखाड़े ने भी इस फैसले से सहमति जाहिर की थी. हालांकि दोनों अखाड़ों ने कहा था कि 27 अप्रैल को होने वाला शाही स्नान सांकेतिक रूप से जरूर होगा। जिसमें कुछ गिने-चुने संत स्नान करेंगे.
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