उत्तराखंड

हरिद्वार की 180 साल पुरानी डैम कोठी का बदलेगा स्वरूप, 1.8 करोड़ की लागत से हो रहा है जीर्णोद्धार

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हरिद्वार की डैम कोठी प्रदेश के सबसे पुराने गेस्ट हाउसेस में से एक है.

हरिद्वार की डैम कोठी प्रदेश के सबसे पुराने गेस्ट हाउसेस में से एक है.

Dam Kothi Haridwar: हरिद्वार में गंग नहर की दो धाराओं के बीच खड़ी डैम कोठी आज भी हरिद्वार पहुंचने वाले वीआइपी लोगों की पहली पसंद है. लगभग 180 साल पुरानी इस कोठी में देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से लेकर विदेशी मेहमान भी ठहर चुके हैं.

पुलकित शुक्ला.

हरिद्वार. हरिद्वार में अपनी खास पहचान रखने वाली डैम कोठी का स्वरूप अब बदलने जा रहा है. कुंभ मेले के तहत हरिद्वार में कई छोटे-बड़े निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं. इन्हीं कार्यों में राज्य अतिथि गृह डैम कोठी का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. कुछ ही दिनों में डैम कोठी नए अपने नए रंग रूप में आएगी.
हरिद्वार में गंग नहर की दो धाराओं के बीच खड़ी डैम कोठी कोई साधारण इमारत नहीं है, बल्कि अपने साथ कई ऐतिहासिक घटनाओं को समेटे हुए है.

ब्रिटिश सरकार के दौर की यह डैम कोठी आज भी हरिद्वार पहुंचने वाले वीआइपीओ की पहली पसंद बनी हुई है. राज्य अतिथि गृह डैम कोठी के व्यवस्था अधिकारी जीपी बहुगुणा बताते हैं कि लगभग 180 साल पुरानी इस कोठी में देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से लेकर विदेशी मेहमान भी ठहर चुके हैं. इसके अलावा देश और प्रदेश के विशिष्ट अतिथि अक्सर यहां आकर ठहरते हैं. हरिद्वार में और भी कई अलीशान गेस्ट हाउस और होटल मौजूद है लेकिन डैम कोठी ही उनकी पहली पसंद है. उन्होंने बताया कि डैम कोठी ब्रिटिश सरकार के अधिकारी प्रोबे कोटले का आवास हुआ करता था. कोटले ने ही हरिद्वार से कानपुर तक जाने वाली गंग नहर का भी निर्माण कराया जो आज उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से की सिंचाई की जरूरत पूरी करती है.अपर मेला अधिकारी हरवीर सिंह ने बताया कि डैम कोठी हरिद्वार ही नहीं बल्कि प्रदेश की एक विरासत है जिसका संरक्षण जरूरी है. इसलिए कुंभ मेला निधि से लगभग 1 करोड़ 80 लाख की लागत से डैम कोठी का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है. जल्दी ही ऐतिहासिक पहचान रखने वाली डैम कोठी अपने नए स्वरूप में सामने आएगी. हरिद्वार की डैम कोठी प्रदेश के सबसे पुराने गेस्ट हाउसेस में से एक है. इस भवन का जिम्मा राज्य संपत्ति विभाग के पास है. जल्दी ही डैम कोठी नए रूप में सामने आएगी और हरिद्वार में फिर से नई पहचान के रूप में स्थापित होगी.






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