सेक्स रेशो : एक और आंकड़ा, अब ‘फिसड्डी’ से ‘बेस्ट राज्य’ बना उत्तराखंड, कैसे?
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सीआरएस के इस आंकड़े से विवाद में नया मोड़ तो आया ही है, उत्तराखंड सरकार ने फ़ौरन इसे अपने दावे के प्रमाण के तौर पर प्रचारित करने की रणनीति भी अपनाई. टीओआई की एक रिपोर्ट की मानें तो उत्तराखंड की महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने कहा, ‘मुझे नीति आयोग की रिपोर्ट को लेकर संशय थे. अब, सीआरएस डेटा ने साबित कर दिया है कि सेक्स रेशो के मामले में उत्तराखंड सबसे बेहतरीन राज्यों में है.’
CRS ने उत्तराखंड में सेक्स रेशो काफी बेहतर होने की बात कही.
आखिर कैसे हो सकता है इतना फर्क?
नीति आयोग, उत्तराखंड सरकार और अब सीआरएस डेटा से तीन नंबर मिलने के बाद सवाल यही है कि नंबरों में इतना फर्क कैसे पैदा हो गया? यहां दो बातें ध्यान देने की हैं. एक तो किस प्रक्रिया से नंबर जुटाए जाते हैं और दूसरी यह कि कैसे नंबरों का औसत निकाला जाता है. नीति आयोग का एसडीजी इंडेक्स केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय से तैयार किया जाता है, जो संबंधित मंत्रालयों से मिले ताज़ा डेटा पर आधारित होता है. वहीं, उत्तराखंड सरकार सेक्स रेशो के मामले में आशा और एएनएम वर्करों के सर्वे को आधार मानकर आंकड़े तैयार करती है.
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डेटा का विश्लेषण क्या कह रहा है?
अब तीसरी बात है, सीआरएस डेटा की, तो यह एएनएम और आशा वर्करों के सर्वे पर नहीं बल्कि शिशुओं के जन्म के पंजीकरण पर आधारित होता है. अब यहां ध्यान देने की बात यह है कि उत्तराखंड में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सेक्स रेशो को लेकर बड़ी खाई देखी जा चुकी है. 2015-16 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे में बताया गया था कि उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में शिशु सेक्स रेशो 858 था, तो ग्रामीण क्षेत्रों में 948.
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इसी तर्ज़ पर सीआरएस ने ताज़ा डेटा का विश्लेषण करते हुए कहा है कि इस बार भी ग्रामीण इलाकों में रेशो 990 देखा गया, जबकि शहरी इलाकों में 929. बहरहाल, अब इस आंकड़ेबाज़ी में नीति आयोग की तरफ से जवाब बाकी है. न्यूज़ 18 ने सेक्स रेशो के मामले में लगातार अपडेट करते हुए आपको बताया था कि उत्तराखंड सरकार ने अपनी आपत्तियों को लेकर नीति आयोग से लिखित में बातचीत की थी.
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