सल्ट उपचुनाव: BJP के स्टार प्रचारकों की सूची से क्यों गायब हुआ त्रिवेंद्र रावत का नाम? पढ़ें इनसाइड स्टोरी
[ad_1]
क्या सही में ये सिर्फ भूल चूक थी या फिर पार्टी की अंदरूनी सियासत. पूर्व सीएम त्रिवेंद सिंह रावत जब बतौर सीएम अपने चार साला जश्न मनाने के लिए 18 मार्च की तैयारियों में जुटे हुए थे, ठीक इससे आठ दिन पहले उन्हें सीएम पद से विदाई देकर सांसद तीरथ सिंह रावत को राज्य की कमान सौंप दी गई.
त्रिवेंद्र की बयानबाजी से पार्टी नाराज!
निवर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जब मीडिया ने जानना चाहा कि उन्हें क्यों हटाया गया, तो उनका कहना था कि इसका जवाब पार्टी हाईकमान से पूछिए. भले ही त्रिवेंद्र रावत ने खुलकर पार्टी हाईकमान के फैसले का विरोध न किया हो, लेकिन सियासी जानकार त्रिवेंद्र रावत के इस बयान को उनकी नाराजगी से जोड़कर देख रहे थे. पार्टी हाईकमान पर इसे त्रिवेंद्र का एक बड़ा कमेंट माना जा रहा था.इधर, दस मार्च को सरकार की कमान संभालते ही सीएम तीरथ सिंह रावत ने सबसे पहला जो फैसला लिया, वो था महा कुंभ के द्वारा बिना रोक-टोक के सभी श्रदालुओं के लिए खोलने का. उन्होंने घोषणा करते हुए कहा था कि हरिद्वार महाकुंभ में किसी भी श्रदालु को कोविड नेगेटिव रिपोर्ट लाने की जरूरत नहीं है. ये बयान कुंभ को लेकर निवर्तमान सीएम त्रिवेंद्र रावत की रणनीति के ठीक उलट था. त्रिवेंद्र रावत ने कहा था कि कुंभ को कोरोना संक्रमण के मददेनजर वुहान नहीं बनने दिया जाएगा. यही नहीं तीरथ ने इसके बाद गैरसैण कमीशनरी के त्रिवेंद्र रावत के फैसले को पलटने के भी संकेत दिए. तीरथ रावत ने कहा कि इस फैसले का विरोध हो रहा है, इसलिए वे इस पर विचार करेंगे. त्रिवेंद्र रावत के बड़े और विवादास्पद फैसलों में एक देवस्थानम बोर्ड को लेकर भी तीरथ सिंह रावत का रुख नरम है. वो पंडा पुरोहितों को आश्वस्त कर चुके हैं कि वो उनके साथ मिल-बैठकर फैसला लेंगे. देवस्थानम बोर्ड पर विचार करेंगे.
पिछले ही हप्ते त्रिवेंद्र रावत के अपनी विधानसभा डोईवाला में दिए गए बयान ने पार्टी के भीतर हलचल मचा दी. त्रिवेंद्र ने डोईवाला में जनसभा में खुद को अभिमन्यु बताते हुए कहा कि उनके साथ छल हुआ है. त्रिवेंद्र ने कहा कि उनको क्यों हटाया गया, खुद वे आज तक नहीं समझ पाए. उनके इस बयान ने पार्टी के अंदर सियासी घमासान को जैंसे स्वर दे दिए. प्रदेश के नेता इस पर कोई जवाब नहीं दे पाए तो माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व भी इससे असहज हुआ.
ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची से त्रिवेंद रावत का नाम गायब होना कोई भूल नहीं है, बल्कि हाईकमान की नाराजगी है. यही कारण है कि सूची जारी होने के डेढ़ घंटे बाद प्रदेश मीडिया प्रभारी ने भले ही इसे भूल चूक बताया हो, लेकिन प्रदेश बीजेपी के किसी भी बड़े नेता का कोई बयान नहीं आया तो दूसरी ओर बीजेपी के केंद्रीय कार्यालय की ओर से भी इसमें कोई भूल-सुधार नहीं किया गया.
कुमाऊं में त्रिवेंद्र से भारी नाराजगी
वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट का कहना है कि त्रिवेंद्र रावत का नाम लिस्ट से गायब होना स्वाभाविक है. बीजेपी ने त्रिवेंद्र रावत को जिस तरह हटाया, वो सामान्य परिस्थिति नहीं थी, वो असामान्य परिस्थिति थी. त्रिवेंद्र रावत के गैरसैण को कमीशनरी घोषित करने के अंतिम फैसले को लेकर कुमाऊं में भारी नाराजगी है. लिस्ट से नाम गायब को इसी नाराजगी से जोड़कर देखा जाना चाहिए क्योंकि जब किसी निर्णय पर सीएम को पद से हटाया जा सकता है, तो जाहिर से बात है कि त्रिवेंद्र को सल्ट में उतारने का दांव उलटा भी पड़ सकता है. योगेश भट्ट का कहना है कि प्रदेश स्तर पर मीडिया प्रभारी का स्पष्टीकरण महज डेमैज कंट्रोल करने भर मात्र है. भूल सुधार करना होगा, तो रार्ष्टीय नेतृत्व करता, राष्ट्रीय नेतृत्व के फैसले पर प्रदेश मीडिया प्रभारी कैसे स्पष्टीकरण दे सकता है.
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ने अब जाकर ये स्वीकार कर लिया है कि चार वर्ष इस राज्य की जनता के साथ उन्होंने धोखा किया. त्रिवेंद्र रावत के नाम से भाजपा इतनी डरी हुई है कि उपचुनाव में भी वो त्रिवेंद्र रावत का नाम नहीं लेना चाहती क्योंकि बीजेपी को डर है कि कहीं लोगों के चार साल के जख्म ताजा न हो जाएं. धस्माना का कहना है कि बीजेपी अपनी चार साल के फेल्योर का सारा दोष त्रिवेंद्र रावत के सिर मढ़ना चाहती है इसलिए उनको स्टार कैंपनर्स की सूची में नहीं डाला गया.
[ad_2]
Source link