उत्तराखंड

संस्‍मरण: सिर्फ वृक्ष मित्र ही नहीं मनुष्‍य मित्र भी थे सुंदरलाल बहुगुणा, पत्‍नी विमला देवी ऐसे देती थीं साथ

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मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा और विमला बहुगुणा.

मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा और विमला बहुगुणा.

सुंदरलाल जितने जुझारू और क्रांतिकारी व्‍यक्ति रहे हैं उतने ही सरल, सौम्‍य और चिंतन-मनन करने वाले रहे हैं. संसार भर के मंचों पर बोलने वाले बहुगुणा बहुत ही विनम्र थे. प्रकृति के उपासक सुंदर लाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित किया. इसीलिए उन्हें वृक्षमित्र और हिमालय के रक्षक के रूप में जाना गया.

नई दिल्‍ली. उत्‍तराखंड या जहां कहीं भी जल-जंगल पहाड़ और प्रकृति पर कोई आंच आई तो सबसे पहले पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा याद आए. कई बार फोन पर ही उन्‍होंने अपनी बेशकीमती राय हम लोगों तक पहुंचाई. स्‍वभाव से बेहद सहज और सौम्‍य सुंदरलाल जब प्रकृति के संबंध में बातें करते थे तो लगता था जैसे अपने बच्‍चों के बारे में बता रहे हैं. इसी प्रकार जब पहाड़, पेड़ और जंगलों की दुर्दशा पर विचार रखते थे तो उनकी पीड़ा उनकी आवाज में स्‍पष्‍ट सुनाई देती थी. बेहद सहजता से बोलते हुए कई बार लगता था कि ये सिर्फ वृक्ष मित्र नहीं हैं बल्कि मनुष्‍य मित्र भी हैं. उनके यही संस्‍कार उनके परिवार में भी देखने को मिले. खासतौर पर उनकी पत्‍नी विमला देवी जो उनकी इस सहजता को और भी बढ़ाती रही हैं. सबसे ताजा संस्‍मरण अभी फरवरी का ही है. जब उत्‍तराखंड के चमोली और जोशीमठ में ग्‍लेशियर फटने की घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया था. उसी दौरान मैंने सुंदरलाल बहुगुणा जी के नंबर पर फोन लगाया कि शायद इस पर वे कुछ बोलें. हालांकि फोन उनकी पत्‍नी विमला देवी ने उठाया. सुंदरलाल जी से बात करने के निवेदन पर बड़े ही सौम्‍य अंदाज में उन्‍होंने कहा कि वे अब फोन पर सुन नहीं पाते हैं. बेटा उनसे तो बात नहीं हो पाएगी. मेरे ये कहने पर कि थोड़ा जरूरी बात करनी थी, वे बोलती हैं कि बताओ तुम्‍‍हें उनसे क्‍या कहना है, मैं बता दूंगी. जब मैंने कहा कि मुझे उन्‍हें बताना नहीं दरअसल उनसे ही कुछ पूछना है तो वे कहती हैं कि अच्‍छा. सुनो थोड़ा ठहरकर फोन करना, तुम मुझे बताती चलना, मैं उनसे बात करके तुम्‍हें बता दूंगी.उसके बाद मैं उन्‍हें फोन नहीं कर पाई, हालांकि इस अवस्‍था में विमला देवी जी की इस सौम्‍यता ने यह तो बता दिया कि उनके यहां किसी के लिए मना नहीं थी. यह पूरे परिवार का ही संस्‍कार था. वहीं वरिष्‍ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल बताते हैं कि सुंदरलाल जितने जुझारू और क्रांतिकारी व्‍यक्ति रहे हैं उतने ही सरल, सौम्‍य और चिंतन-मनन करने वाले रहे हैं. जब भी वे मिले हमेशा कहते थे कि ये प्रकृति मनुष्‍य के लिए है लेकिन मनुष्‍य इसे इस्‍तेमाल करना नहीं जानता. इसे नुकसाना पहुंचाकर मनुष्‍य अपने जीवन को ही नुकसान पहुंचा रहा है. उनकी चिंता प्रकृति के साथ-साथ मनुष्‍य के भावी जीवन को लेकर भी थी जो इसी प्रकृति पर टिका है. संसार भर के मंचों पर बोलने वाले बहुगुणा बहुत ही विनम्र थे. प्रकृति के उपासक सुंदर लाल बहुगुणा ने अपना पूरा  जीवन पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित किया. इसीलिए उन्हें वृक्षमित्र और हिमालय के रक्षक के रूप में जाना गया. चिपको आंदोलन की गूंज पूरी दुनिया में हुई. इन्‍होंने पत्र पत्रिकाओं में गंभीर लेख लिए. लंबी लंबी जन जागृति की पद यात्राएं की. दुनिया केभर में घूम घूम कर प्रकृति को बचाने का संदेश दिया. टिहरी बांध के निर्माण के खिलाफ उन्होंने लंबा संघर्ष किया. जेल यात्राएं की. जिंदगी की तमाम मुश्किलों को सहते हुए वह अपने कर्तव्य पर डटे रहे. उन्होंने अपना गांधीवादी जीवन अपनाया. पर्यावरण पर उनके विचारों को गंभीरता से सुना गया. उन्होंने जिन जिन मुद्दों पर आवाज उठाई उस पर गौर किया गया.
ऐसा था वृक्षमित्र का जीवन बता दें कि सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी में हुआ था. वह विलक्षण प्रतिभा के व्‍यक्ति थे. युवावस्था से ही सामाजिक क्षेत्र और जन सरोकारों के प्रति रुझान रहा. 18 साल की उम्र में उन्हें पढने के लिए लाहौर भेजा गया. वहां डीएवी कालेज में उन्होंने पढ़ाई की. महान क्रांतिकारी शहीद श्रीदेव सुमन उनके मित्रों थे जिनके कहने पर उन्होंने सामाजिक क्षेत्र से जुड़ने का निश्चय किया था. बहुगुणा छात्र जीवन में गांधीवादी विचारों की ओर प्रभावित हुए और सादा जीवन उच्च विचार के ध्येय वाक्य पर अपने जीवन को ढालने का प्रण किया. 1956 में 23 साल की उम्र में बिमला देवी के साथ विवाह होने के बाद उन्होंने अपनी जीवन की दिशा बदल ली. वह प्रकृति की सुरक्षा और सामाजिक हितों से जुड़े आंदोलनों में अपना योगदान देने लगे.  उन्होंने मंदिरों में हरिजनों को प्रवेश के अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया. सुंदर लाल बहुगुणा ने विवाह के बाद गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला. बाद में उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला. 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित कर दिया.





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