महाकुंभ में जाएं तो गौर से देखें साधु-संत और सन्यासियों का माथा, जान जाएंगे उनके बारे में सबकुछ
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महाकुंभ् में माथे पर तिलक देखकर साधु-संतों को पहचान सकते हैं कि वे किस संप्रदाय से हैं.
Mahakumbh 2021: आपने अक्सर देखा होगा कि साधु-संत लोगों के बारे में बिना जाने ही सही-सही बाते बता देते हैं लेकिन क्या आपको मालूम है कि सिर्फ एक चीज से आप भी सन्यासियों के बारे में सब कुछ जान सकते हैं.
इन सन्यासियों के माथे को देखकर आप जान सकते हैं कि वे किस देवी या देवता की उपासना करते हैं, किस मत या संप्रदाय (Sampradaya) से ताल्लुक रखते हैं. वे नर्म स्वभाव के हैं या जटिल स्वभाव के साधु-सन्यासी हैं. इसके साथ ही वे कहां और किस पद्धति से देवी-देवताओं की उपासना करते हैं.
महाकुंभ संबंधी विषयों के जानकार वृंदावन (Vrindavan) के संत स्वामी राम प्रपन्न दास ने न्यूज 18 हिंदी से बातचीत में महात्माओं के इस पहचान चिह्न को लेकर बात की है. स्वामी राम का कहना है कि जब भी आप कुंभ में जाएं और किसी महात्मा को देखें तो उसके ललाट को जरूर देखें. उसके माथे पर लगा तिलक उसके बारे में पूरी जानकारी दे देगा. यही वजह है कि साधु-संत हमेशा अपना पहचान चिह्न यानि तिलक लगाकर रखते हैं.
शैव मत का तिलक
यह शैव मत का तिलक है. शैव मत को मानने वाले साधु-संत इस तिलक को माथे पर लगाते हैं.
राम प्रपन्न कहते हैं कि शैव मत के लोग त्रिपुंड लगाते हैं. इसमें तीन आड़ी रेखाएं माथे पर होती हैं. ये माथे पर बांए से दाएं रेखाएं होती हैं. भगवान शिव भी त्रिपुंड ही लगाते हैं. इस तिलक को लगाने वाले सभी भगवान शिव की आराधना करते हैं.
शैव मत के कुल सात अखाड़े हैं जिनके साधु-संत महाकुंभ में शामिल होते हैं. शैव मत के जूना अखाड़ा में ही किन्नर अखाड़ा और महिलाओं का माई अखाड़ा भी है. ये सब भी माथे पर त्रिपुंड लगाते हैं.
वैष्णव मत के संप्रदाय और उनके तिलक
ये सभी वैष्णव मत के संप्रदायों के तिलक हैं.
. ब्रह्म संप्रदाय या माधवाचार्य संप्रदाय
इस संप्रदाय के साधु-संत तीन तरह के तिलक लगाते हैं. पहला यू आकार का और उसके अंदर बिंदी, दूसरा वी आकार का उसके अंदर खड़ी रेखा और उसके नीचे बिंदी, तीसरा यू आकार का और उसके अंदर खड़ी रेखा और बिंदी. ये सभी राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी की पूजा अर्चना करते हैं.
बता दें कि इस संप्रदाय को ब्रह्माजी ने शुरू किया. उनके बाद प्रभु माधवाचार्य आए और इसका नाम माध्व संप्रदाय हो गया. इसी में चैतन्य महाप्रभु और उनके बाद प्रभुपाद जी हुए, जिन्होंने इस्कॉन और अक्षय पात्र की स्थापना की.
2. रुद्र विष्णुस्वामी या वल्लभ संप्रदाय
सभी संप्रदायों के साधु-संत अपनी पहचान स्वरूप अलग-अलग तिलक लगाते हैं.
इस संप्रदाय के संत सिर्फ एक ही तरह का तिलक लगाते हैं. यह यू आकार का होता है और इसके अंदर नीचे की ओर सफेद रंग की बिंदी होती है. ये सभी कृष्ण को मानते हैं उन्ही की आराधना करते हैं.
बता दें कि सबसे पहले रुद्र यानि शिव भगवान ने इसकी स्थापना की. इसी कम में विष्णुस्वामी आए और इसे विष्णुस्वामी संप्रदाय कहा गया, इनके बाद वल्लभाचार्य जी आए और इसे वल्लभ संप्रदाय के नाम से जाना गया. इसे पुष्टिमार्ग भी कहते हैं. इसका मुख्य पीठ श्रीनाथ जी नाथद्वारा में है.
3. श्री संप्रदाय, रामानुज या रामानंदी संप्रदाय
इसमें भी साधु संत दो तरह का तिलक लगाते हैं. पहला पीली धरती के साथ सफेद और लाल रंग का लगभग त्रिशुल के जैसा और दूसरा त्रिशुल के आकार का सफेद और लाल रंग का तिलक. इस संप्रदाय के लोग मां लक्ष्मी, राधा कृष्ण और राम सीता की पूजा करते हैं. भगवान अलग होने के बावजूद इनका रहन सहन और तिलक एक जैसा होता है. बता दें कि इसकी स्थापना लक्ष्मी जी ने की इसके बाद रामानुज भगवान आए और इनके बाद रामानंद आए, जिनसे रामानंदी संप्रदाय का उदय हुआ. साथ ही इन्होंने सीताराम की पूजा शुरू की.
ये रामानंदी संप्रदाय के तिलक हैं.
3. श्री संप्रदाय, रामानुज या रामानंदी संप्रदाय
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