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बीआरओ ने कुलागाड़ में 24 टन क्षमता का 170 मीटर लंबा बैली ब्रिज बनाया है. ब्रिज का सामान जुटाने के बाद कार्यदासी संस्था ने युद्धस्तर पर काम करते हुए सामरिक नजरिए अहम पुल को सिर्फ पांच दिन में बना दिया. एसडीएम धारचूला अनिल कुमार शुक्ला ने बताया कि ब्रिज स्थापित करना किसी चुनौती से कम नही था. लगातार हो रही बारिश के कारण काफी दिक्कतें उठानी पड़ीं. यही नही अन्य स्थानों पर पुल टूटने के कारण ब्रिज के लिए जरूरी सामान की भी कमी पड़ गई थी. कई जगहों से सामान जुटाकर ब्रिज को बनाया गया.
पुल के बनने के बाद चीन और नेपाल सीमा पर बसे करीब 60 गांव के लोगों को राहत मिली है. यही नहीं, बॉर्डर की सुरक्षा में तैनात सेना, आईटीबीपी और एसएसबी के जवानों को भी फायदा मिला है. पुल टूटने के बाद सुरक्षाबलों के लिए जरूरी सामान भी बॉर्डर पर नहीं पहुंच पा रहा था. आरसीसी पुल के बहने के बाद उत्तराखंड सरकार ने इस इलाके में फंसे लोगों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर भेजा था. लेकिन हेलीकॉप्टर से सिर्फ बीमार लोगों को ही निकाला गया.
दो पड़ोसी देशों की सीमा से सटे इस इलाके में कुलागाड़ का पुल सबसे अहम है. इस पुल की मदद से दारमा, ब्यास और चौदास घाटियां जुड़ती हैं. चीन को जोड़ने वाले लिपुलेख दर्रे को जाने के लिए भी इसी पुल से होकर गुजरना पड़ता है. साथ ही कैलाश-मानसरोवर के दर्शन के लिए जाने वाली तीर्थ यात्रियों का सफर भी इसी पुल के जरिए होता है.
बैली ब्रिज बनने के बाद स्थानीय निवासी नरेन्द्र धामी ने बीआरओ का आभार जताया और बताया कि 12 दिन तक इस सीमावर्ती इलाके में रहने वाले लोगों को काफी दिक्कतें पेश आई.
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