देहरादून: संघ प्रचारक से लेकर मुख्यमंत्री पद तक कुछ ऐसी रही त्रिवेंद्र सिंह रावत की यात्रा, पढ़ें पूरी खबर
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इसके छह साल बाद उन्हें देहरादून शहर के लिए संघ का प्रचारक नियुक्त किया गया और 14 साल तक संघ के साथ सक्रिय जुड़ाव के बाद उन्हें भाजपा का संगठन मंत्री बनाया गया.
त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) फिलहाल प्रदेश की डोइवाला विधानसभा सीट से विधायक हैं जहां 2017 में उन्होंने 24869 मतों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी को हराते हुए शानदार विजय हासिल की.
उन्होंने कहा कि केवल भाजपा जैसी पार्टी में ही एक साधारण कार्यकर्ता शीर्ष स्थान तक पहुंच सकता है . उन्होंने अपने उत्तराधिकारी को अपनी शुभकामनाएं भी दीं. इस्तीफा देने के बाद रावत उत्तराखंड के उन आधा दर्जन से अधिक मुख्यमंत्रियों की सूची में शामिल हो गए हैं जो पांच वर्ष का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. इनमें राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानदं स्वामी, भुवन चंद्र खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा और हरीश रावत भी शामिल हैं.
कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धियां रहीं
रावत फिलहाल प्रदेश की डोइवाला विधानसभा सीट से विधायक हैं जहां 2017 में उन्होंने 24869 मतों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी को हराते हुए शानदार विजय हासिल की. गैरसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने, महिलाओं को उनके पतियों की पैतृक संपत्ति में खातादार बनाने जैसी योजनाएं रावत के कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धियां रहीं.राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हो गए
हालांकि, रावत के अचानक हुई विदाई के पीछे के असली कारण के बारे में स्पष्ट रूप से अभी कुछ कहना संभव नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी विधायकों में बढ रहा असंतोष इसका कारण है. पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में कृषि मंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत का जन्म दिसंबर, 1960 में पौडी जिले के खैरासैंण गांव में एक फौजी परिवार में हुआ था. उनके पिता प्रताप सिंह रावत गढवाल राइफल्स में थे और उन्होंने अपने गांव में मिटटी और गारे से बने एक स्कूल में अपनी शुरूआती शिक्षा प्राप्त की थी. पढाई में मध्यम दर्जे के होने के बावजूद त्रिवेंद्र को शुरू से ही सामाजिक-राजनीतिक मामलों में बहुत रूचि थी और केवल 19 वर्ष की उम्र में ही संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हो गए.
मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में बहुत मददगार हुआ
इसके छह साल बाद उन्हें देहरादून शहर के लिए संघ का प्रचारक नियुक्त किया गया और 14 साल तक संघ के साथ सक्रिय जुड़ाव के बाद उन्हें भाजपा का संगठन मंत्री बनाया गया. उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन में भी उन्होंने बढ-चढ कर हिस्सा लिया और कई बार गिरफतार भी हुए. वर्ष 2002 में पहला विधानसभा चुनाव उन्होंने डोइवाला से जीता. इसके बाद 2007 और 2017 में भी उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता. उनके संगठनात्मक कौशल से प्रभावित होकर उन्हें 2013 में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी गयी जिसके एक साल बाद उन्हें उत्तर प्रदेश में पार्टी मामलों का सहप्रभारी बनाया गया. उनके कार्य से प्रभावित होकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का उन पर भरोसा बढ गया और यही उनके 2017 में प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में बहुत मददगार हुआ.
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