तो 145 साल तक कुमाऊ कमिश्नरी से चलता रहा राजकाज!
[ad_1]
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैण को कमीशनरी का एक और तोहफा दिया है.
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने राज्य की गर्मियों की राजधानी गैरसैण के नाम पर नई कमिश्नरी बनाने की घोषणा की है. इसके साथ ही उत्तराखंड में अब तीन कमिश्नरी होंगी.
कभी देहरादून था कुमाऊ कमिश्नरी में
उत्तर प्रदेश के हिमालयी जिले (आज के उत्तराखंड) में कमिश्नरी का इतिहास दिलचस्प है. कुमाऊ में ब्रिटिश प्रशासन पर लिखी ए.के.मित्तल की किताब में जिक्र है कि 1815 में लड़ाई हारने के बाद गोरखाओं ने राजपाट ब्रिटिश के हवाले कर दिया. इसके बाद सारा क्षेत्र कुमाऊ कमिश्नरी का हिस्सा बना जिसमें देहरादून जिला भी शामिल था. हालांकि तीन साल बाद देहरादून जिला, मेरठ कमिश्नरी में चला गया.
उत्तराखंड के जिलों का इतिहासइलाहबाद हाईकोर्ट से जुड़े अधिवक्ता एनडी पंत ने एक रिसर्च पेपर में लिखा है कि कुमाऊ जिले के आलावा 1838 में ब्रिटिश गढ़वाल जिला बना और इसे कुमाऊ कमिश्नरी में शामिल किया गया. कुछ ही समय बाद तराई जिला गठित हुआ. करीब 50 साल बाद 1891 में नैनीताल जिला बना और साथ ही जिलों के नाम में भी बदलाव हुआ. अब कुमाऊ कमिश्नरी के अंतर्गत तीन जिले नैनीताल, अल्मोड़ा और ब्रिटिश गढ़वाल थे और यह व्यवस्था तब तक बनी रही जब तक ब्रिटिश शासन रहा. गौर करने वाली बात यह है कि कुमाऊ कमिश्नरी का हेड क्वार्टर 1857 तक अल्मोड़ा में रहा और फिर नैनीताल शिफ्ट कर दिया गया.
कब बनी गढ़वाल कमिश्नरी
रेवेन्यू पुलिस सिस्टम पर किताब लिखने वाले पत्रकार प्रयाग पांडे बताते हैं कि आज़ादी के बाद उत्तरकाशी, चमोली एवं पिथौरागढ़ जिले अस्तित्व में आये और 1960 में इनके अलग उत्तराखंड कमिश्नरी बनी. इसके आठ साल बाद गढ़वाल कमिश्नरी वजूद में आई और पौड़ी बना कमिश्नरी का मुख्यालय. उत्तराखंड में कमिश्नरियों का इतिहास बताता है साल 1815 से 1960 यानि 145 सालों तक उत्तराखंड में सिर्फ कुमाऊ कमिश्नरी से प्रशासनिक कामकाज चलता रहा.
[ad_2]
Source link