एमपी, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड समेत देश के अन्य राज्यों के जंगलों में आग से पर्यावरण को लेकर चिंताएं बढ़ीं.
Fire in Forests: मध्य प्रदेश हो या छ्त्तीसगढ़, झारखंड या उत्तराखंड, कोई राज्य अछूता नहीं रह गया है, जहां के जंगलों में आग न लगी हो. आग लगने की घटनाएं एक या दो दर्जन नहीं, बल्कि सैकड़ों, हजारों की संख्या में हो रही हैं. यह पूरे देश के वन विभाग के लिए अलर्ट मोड पर रहने का वक्त है.
भोपाल. यह पूरे देश के वन विभाग के लिए अलर्ट मोड पर रहने का वक्त है, क्योंकि गर्मियों का मौसम शुरू होते ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं तेज हो गई है. मध्य प्रदेश हो या छ्त्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा हो या उत्तराखंड, कोई राज्य इससे अछूता नहीं रह गया है. आग लगने की घटनाएं एक या दो दर्जन नहीं, बल्कि सैकड़ों, हजारों की संख्या में हो रही हैं. पिछले तीन दिन से मध्य प्रदेश के सबसे ज्यादा बाघों वाले बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट के 7 वन क्षेत्र आग से धधक रहे हैं. जंगल में एक नहीं, बल्कि कई जगहों पर आग लगी हुई है. इस आग से पेड़ पौधों के जलने से पर्यावरण, वन्यप्राणियों को भारी नुकसान की आशंका है.
वन विभाग का अमला टैंकरों से आग बुझाने की कोशिशों में लगा है. हालात कितने गंभीर है कि इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बांधवगढ़ में मंगलवार को बड़ी संख्या में हिरण, चीतल जैसे वन्य प्राणी अपनी जान बचाने भागते हुए देखे गए हैं. बांधवगढ़ में पर्यटन फिलहाल रोक दिया गया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आपात बैठक बुलाकर जंगलों की आग की समीक्षा के साथ ही अफसरों को खास हिदायत दी है कि वन्य प्राणियों की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होना चाहिए. बुधवार को मुख्यमंत्री के साथ अफसरों की बैठक करीब एक घंटे तक चली थी, जिसमें यह बात सामने आई थी कि आग बुझाने के तमाम प्रयास फेल होने के बाद पार्क में पर्यटन रोक दिया गया है. बता दें कि एक हफ्ते पहले पन्ना टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट भी आग से झुलस चुका है. देवास के जंगलों की अलग-अलग बीटों में आग लगने की कई खबरें सामने आ रही हैं.
बांधवगढ़ में दो साल पहले भी लगी थी भयावह आग
बता दें कि दो साल पहले भी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट एरिया के वनक्षेत्रों में ऐसी ही भयावह आग लगी थी. गर्मियों में जंगलों में आग लगने की घटनाओं को आम माना जाता है, लेकिन इस बार आग ने कुछ ज्यादा ही विकराल रूप धारण कर लिया. यह आग बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट के खितोली, मगधी और ताला जोन में लगी है. इसके अलावा रेगुलर फॉरेस्ट एरिया में भी कई जगह आग लगी है.
बांधवगढ़ में दो साल पहले भी लगी थी भयावह आग
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भारी नुकसान की आशंका, खतरे में वन्यप्राणी
इस बार जंगल की आग से भारी नुकसान की आशंका व्यक्त की जा रही है. बताया जा रहा है कि आग में जंगल के कीमती पेड़ तो जल ही गए हैं, साथ ही वन्यप्राणियों, पशु-पक्षियों को भी भारी नुकसान हुआ है. मुख्यमंत्री के साथ आपात बैठक में वन विभाग के अफसरों ने नुकसान का आकलन करने और वन्यप्राणियों को नुकसान नहीं होने का दावा किया. लेकिन बताते हैं कि जिस तरह की आग लगी है, उससे वन्यप्राणियों का सुरक्षित रह पाना बहुत ही मुश्किल है. क्योंकि प्रभावित इलाकों के लोगों ने धुएं और आग से बचने के लिए हिरन, चीतल, सूअर जैसे वन्य प्राणियों को भागते और पक्षियों को पलायन करते देखा है.
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उत्तराखंड के पहाड़ों पर भी धधक रहे जंगल
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और अरुणाचल समेत कई राज्यों में नवंबर से जनवरी तक जंगल में आग लगने की 2984 घटनाएं हुईं, जिनमें सर्वाधिक 470 उत्तराखंड में दर्ज की गई हैं. कुमाऊं मंडल में बीते चार माह में आग लगने की 276 घटनाएं सामने आईं. आग की घटनाओं में 396 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया और 2603 लोग इन घटनाओं में प्रभावित हुए. वहीं गढ़वाल मंडल में बीते चार महीनों में आग लगने की 430 घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें 501 हेक्टेयर जंगल जले हैं. इस आग में 6350 पेड़ जले हैं. साल 2021 में अभी तक जंगल में लगी आग की वजह से चार लोगों की मौत हो चुकी है.
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छत्तीसगढ़ तो पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ चुका
छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग लगने की घटनाएं कितनी तेजी से बढ़ी हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल यानी 2020 में छत्तीसगढ़ में 4 हजार 713 घटनाएं हुईं थीं. उसकी तुलना इस साल के अभी गुजरे केवल तीन शुरुआती महीनों में 11 मार्च 2021 तक 4 हजार 507 जंगलों में आग लगने की घटनाएं हो चुकीं थीं. इस साल अग्निकांड की सबसे ज्यादा घटनाएं मार्च के महीने में ही हुईं हैं. केवल एक दिन 11 मार्च को छत्तीसगढ़ के जंगलों में 715 जगह आग लगी. ये घटनाएं बीजापुर और उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा हुईं. बीजापुर में 11 मार्च तक 446 और टाइगर रिजर्व में 509 जगहों पर आग लगी.
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ओडिशा ने सबको पीछे छोड़ा, झारखंड में भी आग
ओडिशा के जंगलों में आग लगने की घटनाओं के बारे में जानकर आप चौंक पड़ेंगे, क्योंकि राज्य में इस साल केवल 22 फरवरी से 1 मार्च के बीच जंगल में आग लगने की 5 हजार 291 घटनाएं हुईं. इसके अलावा झारखंड में भी मार्च की शुरुआत में ही हजारीबाग के पूर्वी प्रमंडल के बरही जवाहर घाट में एनएच किनारे जंगल में भयावह आग लगी थी. एक हिरण की मंगलवार को यहां मौत हो गई. गुमला जिले में मार्च में जंगलों में एक-दो दर्जन नहीं 70 से ज्यादा आग लग चुकी है. जंगलों में आग लगने से सिर्फ पेड़- पौधों को ही नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि पशु- पक्षी भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. पिछले महीने दलमा के जंगलों में लगी आग में झुलसने से चार हिरणों, 8 मोरों और दर्जन भर से ज्यादा खरगोशों की मौत हो गई. कई जंगली सूअर भी आग से मारे गए हैं.
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इन कारणों से जंगल में लगती है आग
जंगल, पहाड़ और उसकी तलहटी से सटे क्षेत्रों में आग लगने के अलग-अलग कारण हैं. इनमें कई जगहों पर जंगल से महुआ चुनने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा ही आग लगा दी जाती है. कहीं-कहीं लोग जंगली क्षेत्र से गुजरने के दौरान बीड़ी अथवा सिगरेट पीते हुए गुजरते हैं और जलती हालत में जंगल में फेंक देते हैं, जिससे आग लग जाती है. महिलाओं के घर के चूल्हे की राख जंगल में फेंकने से भी आग पकड़ लेती है. अक्सर महिलाएं ईंधन और चारा लेने जंगल जाती हैं और पेड़ों की ठूंठों में आग लगा देती हैं. उन्हें लगता है कि आग लगाने के बाद अच्छी घास उगेगी.
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खैर मनाएं, विदेशों जैसी नहीं ये आग
आप खैर मना सकते हैं कि विदेशों जैसी आग देश के जंगलों में नहीं लगती, वरना वास्तव में हमारी हैसियत फायर ब्रिगेड के जरिए या बाल्टियों में पानी भरकर बुझाने से ज्यादा नहीं है. बात सुनने में बुरी जरूर लगती है, लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि आग बुझाने के लिए आधुनिक संसाधनों की उपलब्धता के मामले में हम बहुत पिछड़े हुए हैं. जंगल हों या शहरों की इमारतें आग बुझाने के संसाधन जो हैं भी, वो भी चालू हालत में कम ही मिलते हैं. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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