चार धाम यात्रा पर बहस : उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा, ‘देश संविधान से चलता है, शास्त्रों से नहीं’
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चार धामों के मंदिरों से लाइवस्ट्रीमिंग के मामले में सरकार के पक्ष पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने बुधवार को एजी एसएन बाबुलकर से कहा कि धार्मिक बहस में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि इसमें कानूनी आधार नहीं है. चीफ जस्टिस ने कहा, ‘अगर आईटी एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान है, जिसके मुताबिक मंदिर से लाइवस्ट्रीमिंग की इजाजत नहीं दी सकती तो आप उसे ज़रूर पेश कर सकते हैं.’
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उत्तराखंड हाई कोर्ट ने चार धाम यात्रा मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई तय की.
‘हमने शास्त्र पढ़े हैं, ऐसा कहीं नहीं लिखा’
चीफ जस्टिस ने साफ कहा कि उन्होंने शास्त्र पढ़े हैं और कहीं नहीं लिखा है कि लाइवस्ट्रीमिंग नहीं की जा सकती. साथ ही कोर्ट ने साफ तौर पर कहा, ‘इस देश पर नियंत्रण करने और मार्गदर्शन करने वाली किताब भारत का संविधान है. हम इसके परे नहीं जा सकते… चूंकि प्राचीन समय में तकनीक संबंधी कोई ज्ञान नहीं था इसलिए ऐसी कोई संभावना नहीं है कि शास्त्रों में यह लिखा हो कि तकनीक के सहारे लाइवस्ट्रीमिंग नहीं की जा सकती.’
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क्या है पूरा मामला?
पिछले दिनों कोर्ट के निर्देश के बाद एजी ने दलील रखी कि लाइवस्ट्रीमिंग के संबंध में राज्य में मंदिरों का प्रबंधन देखने वाला देवस्थानम बोर्ड फैसला लेगा, लेकिन चार धाम के कुछ पुजारियों के मुताबिक शास्त्र अनुष्ठानों की लाइवस्ट्रीमिंग की अनुमति नहीं देते. इस तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने साफ तौर पर कहा, अगर बोर्ड लाइवस्ट्रीमिंग की इजाज़त नहीं देने का फैसला करता है तो उसे बताना होगा कि कौन से शास्त्र की किस लाइन में तकनीक की अनुमति न दिए जाने की बात कही गई है. एजी को निर्देश दिया गया कि बोर्ड का फैसला 28 जुलाई को अगली सुनवाई तक कोर्ट को बताया जाए.
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