कोविड-19 के नाम पर छीने गए बुनियादी अधिकार, हाई कोर्ट ने उत्तराखंड को लगाई फटकार
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रीजनल डेस्क. अगर कोई नियम संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, तो? यही सवाल तब खड़ा हुआ जब उत्तराखंड में एक अमानवीय तस्वीर सामने आई. छत की जगह एक पतला सा तिरपाल और बिस्तर की जगह मवेशियों का चारा… इन हालात में वन गुज्जरों के 20 परिवारों को करीब एक महीना गुज़ारना पड़ा क्योंकि कोविड-19 महामारी का हवाला देकर गोविंद वन्यजीव अभयारण्य में इन्हें प्रवेश देने से रोक दिया गया. इस मामले में मंगलवार को हाई कोर्ट ने सरकार और वन विभाग को असंवेदनशील बताते हुए फटकार लगाई. हाई कोर्ट ने सरकार और वन विभाग की आलोचना करते हुए कहा कि मानव अधिकारों का उल्लंघन किया गया है और फ़ौरन इस मामले में उचित कदम उठाते हुए इन परिवारों को आने जाने की आज़ादी दी जाए. एक रिपोर्ट की मानें तो बेंच ने उत्तरकाशी ज़िले के कलेक्टर मयूर दीक्षित और अभयारण्य डिप्टी डायरेक्टर कोमल सिंह को आदेश दिए कि प्रतिबंधित किए गए परिवारों के कोविड टेस्ट करवाए जाएं और निगेटिव रिपोर्ट होने पर उन्हें नागरिकों की तरह आज़ादी दी जाए. ये भी पढ़ें : उप्र से उत्तराखंड के पहाड़ों तक फैले ड्रग्स नेटवर्क को तबाह करने की तैयारी ये भी पढ़ें : CRPF कैंप के खिलाफ 40 गांवों के आदिवासी सड़कों पर, किस मुद्दे पर है बवाल?
कोर्ट ने किन शब्दों में की आलोचना?
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, ‘आप इंसान के साथ जानवर से भी बदतर सलूक नहीं कर सकते… वो जानवर नहीं हैं. आपकी और हमारी तरह ही वो भी इंसान हैं और उनके पास भी आपकी और हमारी तरह ही मौलिक अधिकार व मानवाधिकार हैं.’ इस तरह की टिप्पणियों के साथ ही कोर्ट ने फौरन इन परिवारों के हक बहाल करने के निर्देश दिए.
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