कभी जूते, कभी जर्सी के लिए वंदना कटारिया ने किया संघर्ष, पढ़ें अर्श तक पहुंचने की कहानी
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हरिद्वार. अंतरराष्ट्रीय फलक पर देश का नाम रोशन करने वाली हरिद्वार की वंदना कटारिया तंग गलियों से संघर्ष करते हुए आज उस मुकाम पर हैं, जहां पहुंचना हर हॉकी खिलाड़ी का सपना होता है. ओलंपियन वंदना की मेहनत की कहानी संघर्ष से भरी है. हरिद्वार के रौशनबाद की रहने वाली वंदना कटारिया बचपन से ही राष्ट्रीय खेल हॉकी को लेकर जुनूनी रही हैं. कभी हॉकी स्टिक नहीं रही तो कभी जूते नहीं थे, मगर हॉकी को लेकर अपने लक्ष्य पर अडिग थींं. मां कहती हैं कि बेटी ने पिता का सपना पूरा कर दिया.
याद करते हुए बताती है कि दो माह पहले ही उनकी डेथ हुई और उस दौरान वो शरीक नहीं हो पाई थीं. लाखन कटारिया, वंदना के भाई बताते हैं कि बहने आपस मे खेलने के लड़ पड़ती थीं. जूते, जर्सी सब दिन तय करके खेलते जाते थे. बचपन से उन्हें हॉकी के प्रति गहरा लगाव था और ओलंपिक में उन्होनें शानदार प्रदर्शन किया है. वंदना की मां सोरेन कहती हैं कि वंदना के लौटकर आने पर स्वागत की तैयारी है. इस बार न सही लेकिन टीम अगली बार मेडल जरूर लाएगी. यही उम्मीद है. बहरहाल मेहनत का फलसफा ये है कि इस हमें मेडल भले ही न मिल पाया हो लेकिन यहां तक पहुंचना भी जीत से कम नहीं. भारत की बेटियों ने इतिहास रच दिया है.
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