उत्तराखंड

कई बीमार‍ियों में रामबाण यारसा गंबू की 1 किलो की कीमत 20 लाख से ज्‍यादा, जानें क्‍या है अब इसको लेकर च‍िंता?

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बर्फबारी कम होन से हिमालयन वियाग्रा के पैदावार पर भारी संकट

बर्फबारी कम होन से हिमालयन वियाग्रा के पैदावार पर भारी संकट

Uttarakhand News: यारसागंबू को दुनिया में सबसे अधिक शक्तिवर्धक के रूप में जाना जाता है और इसे हिमालयन वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है. यही नहीं कई असाध्य रोगों के लिए यह रामबाण भी है लेकिन इस साल मौसम की मार का असर इसके उत्‍पादन पर पड़ना भी तय है.

पहाड़ों में बारिश और बर्फबारी काफी कम होने से चौतरफा नुकसान की आशंका तो बनी ही है, लेकिन बदले मौसम की सबसे ज्यादा मार हिमालयन वियाग्रा यानी यारसा गंबू के उत्पादन पर पड़ना तय है. यारसा गंबू का उत्पादन कम होने से बॉर्डर के हजारों परिवारों की रोजी-रोटी पर भी संकट गहरा गया है.

बीते सालों के मुकाबले इस बार पहाड़ों में बारिश और बर्फबारी आधी ही हुई है, जिसका सीधा असर पर्यावरण और पैदावार पर पड़ना तय है. उच्च हिमालयी इलाकों में पैदा होने वाले यारसा गंबू का उत्पादन तापमान पर निर्भर करता है. बेशकीमती यारसा गंबू के लिए जहां भारी बर्फबारी जरूरी है, वहीं इसके बनने के लिए माइनस चार से माइनस 15 डिग्री का तापमान जरूरी है. रिसर्च में भी यह पाया गया है कि जिस साल बर्फबारी कम हुई है, इसके उत्पादन में भी कमी आई है. जानकारों की माने तो पहले यारसा गंबू की पैदावार 3 हजार मीटर की ऊंचाई से शुरू हो जाती थी, लेकिन अब ये 35 सौ मीटर से ऊपर पैदा हो रहा है.

यारसागंबू एक्सपर्ट डॉ. सचिन बोहरा ने कहा है क‍ि यारसा गंबू की इंटरनेशनल मार्केट में भारी डिमांड है, यही वजह है कि इसकी 1 किलो की कीमत 20 लाख से अधिक है. उत्तराखंड में पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के ऊंचाई वाले इलाकों में इसकी सबसे अधिक पैदावार होती है. बॉर्डर इलाकों में पैदा होने वाले यारसागंबू, 20 हजार से अधिक परिवारों की आय का इकलौता जरिया है. ऐसे में जब इस साल मौसम का मिजाज पूरी तरह बदला है. इससे जुड़े ग्रामीणों की चिंताएं भी बढ़ने लगी हैं. धारचूला विधायक ने तो सरकार ने संभावित नुकसान की भरपाई के लिए आर्थिक मदद की गुहार भी लगाई है.

धारचूला विधायक हरीश धामी ने कहा है क‍ि 2013 के बाद यारसा गंबू का उत्पादन कम होती बर्फबारी के साथ लगातार गिरा है. ऐसे में इस साल जब ऊंचे इलाके भी सफेद चादर से महरूम हैं तो इसके उत्पादन में रिकॉर्ड कमी आना तय है. ग्लोबल वार्मिंग ने पहाड़ के मौसक चक्र को खासा प्रभावित किया है, जिसका असर ग्लेशियर से लेकर ऊंचे इलाकों की बेशकीमती प्राकृतिक संपदा पर भी पड़ रहा है.






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