उत्तराखंड आपदा: चमोली में प्रलय के बाद सुरंग के अंदर कैसे जिंदा रहे मजदूर, सुनाई आपबीती– News18 Hindi
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चमोली में ग्लेशियर टूटने के तुरंत बाद आई बाढ़ के कारण कई मजदूर करीब 7 घंटे तक तपोवन में स्थित सुरंग में फंसे रहे थे. उन्हें रविवार को शाम 5:45 बजे बचाया गया था. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने बताया कि इस दौरान वे लोग सुरंग के अंदर खुद को गर्म रखने के लिए एक्सरसाइज करते रहे, गर्म कपड़े एक-दूसरे को देते रहे. ये मजदूर खुद को आशावान और सकारात्मक रखने के लिए उर्दू के दोहे पढ़ रहे थे. इसके साथ ही वे रोमांटिक और दुख भरे गाने भी एक के बाद एक गा रहे थे.
सुरंग के अंदर मौजूद एक एस्केवेटर और उनके मोबाइल फोन में आ रहे नेटवर्क के कारण उनमें जीवित बच जाने की आशा जगी हुई थी. उन्हें इंडो तिब्बतन बॉर्डर पुलिस ने एक इमरजेंसी दरवाजे के जरिये घुसकर बचाया था. करीब 10 से 12 मजदूर, इंजीनियर, इलेक्ट्रीशियन और पत्थर तोड़ने वाले मजदूर रविवार को सुबह 8 बजे सुरंग के अंदर काम करने गए थे.
नेपाल से काम करने आए चित्र बहादुर के अनुसार, ‘सुबह करीब 10:45 बजे हमने देखा कि कुछ लोग सुरंग से भागकर आ रहे हैं और कह रहे हैं कि यहां से भागो. हम इस पर कुछ प्रतिक्रिया देते, इससे पहले ही सुरंग बाढ़ में बंद हो गई.’
इसके बाद सभी पानी में थे. वे सुरंग के मुहाने से करीब 350 मीटर दूर थे. उनमें से 9 मजदूरों ने सुरंग की दीवार से निकली लोहे की सरिया पकड़कर ऊंचाई की ओर जाने का प्रयास किया था. सुरंग की ऊंचाई 6 मीटर है. पानी का स्तर बढ़ रहा था तो वे ऊंचाई पर जाकर टिक गए. उनमें से दो लोग एक्सेवेटर के अंदर बैठे थे. पानी के बहाव ने उसे भी बहा दिया था. लेकिन उसके अंदर ये दोनों लोग पानी से बचे रहे. उन्होंने पानी में बह रहे सतीश कुमार नामक इलेक्ट्रीशियन को भी बचाया.
नेपाल के मजदूर किरन विश्वकर्मा ने बताया कि जब सुरंग बंद हो गई तो वहां अंधेरा था. वहां कोई भी कुछ भी नहीं देख पा रहा था. सबने पहले पानी में तैरकर सुरंग के मुहाने तक जाने और बाहर निकलने की सोची थी. लेकिन बाद में वहां मलबे के कारण ऐसा मुमकिन नहीं हो पाया.
एक्सेवेटर के ड्राइवर राकेश भट्ट ने बताया कि उन सभी ने बीच-बीच में 10-10 मिनट के लिए तीन-तीन लोगों के बैच को वाहन की छत पर बैठने का तय किया. इससे सभी को कुछ आराम मिल सके. वहीं बैठकर सभी बारी-बारी से खुद को गर्म रखने के लिए एक्सरसाइज कर रहे थे. जो लोग लोहे की रॉड पर चढ़े थे वे रस्सियां खींचकर खुद को गर्म रख रहे थे.
सभी ने दो समूह बनाए और जीवित बचने के लिए बाद में सुरंग के मुहाने की ओर बढ़ना शुरू किया. मलबा और पानी होने के कारण सभी सुरंग की दीवारों में मौजूद लोहे की रॉड को पकड़कर आगे बढ़ रहे थे. उन्हें 300 मीटर आगे आने में 2 घंटे से अधिक लग गए थे.
बाद में पानी सूखा और मुहाने पर मिट्टी व मलबा हटा. इसके बाद वहां दो इंच बड़ा छेद हो गया गया. इससे सभी को बाहर की रोशनी दिखने लगी थी. साथ ही ताजी हवा भी मिलने लगी थी. वेल्डर पवार ने बताया के सुरंग के अंदर उनके मोबाइल में नेटवर्क आ रहे थे. उन्होंने एनटीपीसी के अफसरों को फोन करके सबकी लोकशन बताई. इसके बाद उन्हें आईटीबीपी की ओर से बचाया गया.
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