उत्तराखंड

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य की जेलों में सुधार की मांगी विस्तृत रिपोर्ट, आईजी जेल को नोटिस जारी

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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जेलों की हालत पर रिपोर्ट मांगी है.

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जेलों की हालत पर रिपोर्ट मांगी है.

उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने राज्य में जेलों (Jail) की हालत में क्या सुधार हुए हैं इसको लेकर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. इसके लिए हाईकोर्ट ने आईजी (IG Jail) जेल को नोटिस जारी किया है.

नैनीताल. उत्तराखंड (Uttarakhand) की जेलों की हालत में सुधार को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने संज्ञान लिया है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने व्यवस्था में सुधार को लेकर आईजी जेल को नोटिस जारी किये हैं. कोर्ट ने 23 मार्च से पहले जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. चीफ जस्टिस ने कैदियों (Prisoners) के अधिकार को मानवी अधिकार देते हुए पूछा है कि उत्तराखंड में कैदियों की क्या स्थिति है और जेलों में कैदियों की संख्या कितनी ज्यादा है. साथ ही जेल के पास कितना स्टाफ है इसके बारे में भी बताएं.

कोर्ट ने पूछा कि सजा काटने वाले कैदियों को लिए ऐसी कौन सी योजना चलाई जा रही है, जिससे वो जेल से बाहर आकर अपना जीवन यापन समाज में कर सकें. इस पर कोर्ट ने विस्तृत रिपोर्ट फाइल करने को कहा है. दरअसल हाईकोर्ट राज्य की जेलों में सजा पूरी कर चुके कैदियों को रिहा करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है, लेकिन अब हाईकोर्ट ने इस याचिका का स्कोप और बड़ा कर दिया है.

क्या है राज्य में जेलों की स्थिति 
 दरअसल कई कैदी अपनी सजा पूरी कर चुके हैं और कई कैदियों का व्यवहार अच्छा है. मगर इसके बाद भी राज्य में कैदियों को रिहा करने के लिये नियम ना बने होने के चलते वो जेल में बंद हैं. हांलाकि अब बंदी अधिकार आंदोलन के संयोजक संतोष उपाध्याय ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कहा कि राज्य की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं. राज्य की 11 जिलों में 3420 कैदियों की क्षमता है, लेकिन यहां 5390 से ज्यादा कैदी हैं. याचिका में हल्द्वानी जेल का हवाला देते हुए कहा गया है कि 302 कैदियों की छमता वाली जेल में 1162 कैदी रखे गये हैं, जिससे उनको खाने पीन और रहने की समस्या आ रही है.

याचिका में क्या कहा गया है ?

याचिका में कहा गया है कि कई कैदी 70 साल की उम्र से ज्यादा हैं तो वहीं कई कैदी बीमार भी हैं, जिन्होंने 14 साल से 20 साल तक की सजा को भी पूरा कर लिया है, लेकिन राज्य में नियम नहीं होने के चलते वो जेल में ही बंद हैं. याचिका में कैदियों को रिहा करने की मांग के साथ राज्य में नियम बनाने की मांग की गई है. अब हाईकोर्ट ने इस याचिका का स्कोप लार्ज कर दिया है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ये भी कहा कि कैदियों के अपने मानवी अधिकार हैं, लिहाजा उनको सुविधाएं मिलनी चाहिए.
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छमता से ज्यादा हैं राज्य की जेलों में कैदी

हाईकोर्ट में एक 2019 की सूचना के अधिकार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि उत्तराखंड की जेलों में कैदियों की संख्या से ड़ेढ गुनी ज्यादा है. इसमें 60 प्रतिशत तो विचाराधीन कैदी हैं, जब्कि 40 प्रतिशत दोष सिद्ध कैदी हैं. राज्य की 11 जेलों में क्षमता 3420 है इनमें 5390 कैदी बंद हैं. इन जेलों में 2162 सजायाप्त कैदी व 3228 कैदी विचाराधीन हैं. हल्द्वानी जेल में कैदियों की 302 कैदियों की क्षमता के बाद 1162 कैदियों को रखा गया है तो देहरादून जेल में 580 कैदियों की क्षमता के बाद 1254 कैदियों को रखा गया है.

इसके साथ ही राज्य के अन्य जिलों के जेलों की हालत भी इससे जुदा नहीं है. हाईकोर्ट के अधिवक्ता डीएस मेहता का कहना है कि कैदियों के लिये धारा 432,433  जेल मैनुअल में धारा 195, 196, 197 में रूल्स होने चाहिए, लेकिन राज्य में नहीं हैं. कुछ दिन पहले नियम जरूर बने, लेकिन अन्य सुविधाओं पर सरकार अभी कोई काम नहीं कर सकी है, जिसके चलते कोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ी है. पिछले दिनों कोर्ट ने जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया अब कोर्ट इस इस याचिका का स्कोप लार्ज कर दिया है.






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