उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: BJP की चुनावी व्यूह रचना ने बढ़ाई विपक्ष की टेंशन
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देहरादून. सत्तारूढ़ बीजेपी उत्तराखंड (BJP Uttarakhand) में 2017 की अपनी ऐतिहासिक जीत को दोहराना चाहती है. इसके लिए उसकी चुनावी रणनीतियों में एक है बूथ का माइक्रो मैनजमेंट. जिस पर पार्टी रणनीतिकार बारीकी से फोकस कर रहे हैं. पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि इससे विपक्ष चुनाव में चारों खाने चित्त हो जाएगा. बीजेपी की चुनावी रणनीति का पन्ना प्रमुख अहम हिस्सा होता है. वोटर लिस्ट के एक पेज पर तीस वोटर्स का नाम होता है. बीजेपी इन तीस वोटर्स में शामिल अपने एक वर्कर्स को प्रमुख बनाती है, जिसे पन्ना प्रमुख कहा जाता है.
गुजरात, हिमाचल में इसके सफल प्रयोग के बाद पार्टी ने इसे अपने सांगठनिक ढांचे में ही शामिल कर लिया. पन्ना प्रमुख इन तीस वोटर्स से मेल मिलाप बढ़ाता, पार्टी की रीति-नीति की उनको जानकारी देता है और कोशिश होती है कि पन्ना प्रमुख इन तीस वोटर्स को इतना कन्वेंस कर ले कि जब चुनाव हों तो पार्टी का पक्ष में मतदान करें. लेकिन, उत्तराखंड में बीजेपी इस बार इससे भी माइक्रोलेवल पर जाकर एक नया प्रयोग कर रही है.
पांच लोगों की टोली
अब पन्ना प्रमुख के साथ पांच और लोगों की टोली होगी. यानि की पहले तीस वोटर्स पर बीजेपी का एक वर्कर होता था, अब हर पांच वोटर्स के पीछे बीजेपी का एक-एक वर्कर होगा.जो इन पांच लोगों को बीजेपी के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित करेगा. पार्टी ने प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार को इसके लिए प्रदेश संयोजक नियुक्त किया है. तीस अगस्त तक पन्ना प्रमुख और उनकी टोलियों का गठन करने का लक्ष्य रखा गया है.
चुनाव को लेकर बदलाव
कुछ इसी तरह बीजेपी शक्ति केंद्र की अपनी व्यूह रचना में भी चुनाव की दृष्टि से बदलाव कर रही है. चार से छह बूथ को मिलाकर पार्टी एक शक्ति केंद्र बनाती है. पूरे प्रदेश में ऐसे तेईस सौ शक्ति केंद्र बनाए गए हैं. शक्ति केंद्र का जिम्मा अभी तक संयोजक संभालता था, लेकिन अब संयोजक के साथ एक प्रभारी भी तैनात किया जा रहा है. ताकि बूथ पर चुनावी मैनजमेंट और बेहतर हो सके. उत्तराखंड में कुल 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी के पास सत्तावन सीटें हैं. पार्टी ने इस बार साठ सीटों के साथ सत्ता में वापसी का टारगेट रखा है. इस टारगेट को एचीव करने के लिए बीजेपी ने बूथ से भी नीचे पन्ना प्रमुख तक जाकर ये माइक्रोप्लान तैयार किया है. चुनाव की इस व्यूह रचना से बीजेपी को कितना फायदा होगा, कहा नहीं जा सकता, लेकिन ये कदम विपक्ष की टेंशन जरूर बड़ा सकता है.
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