उत्तराखंड

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद पर राजनीतिक अस्थिरता कायम, 20 साल में बने 9 मुख्यमंत्री

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Uttarakhand Politics: लंबे संघर्ष के बाद बीस साल पहले उत्तराखंड का निर्माण हुआ था. तब से लेकर अब तक पांच सरकारें सूबे में रही हैं. लेकिन नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. त्रिवेंद्र सिंह रावत चार साल भी पूरा नहीं कर पाए और इस्तीफा देना पड़ा.

Uttarakhand Politics: लंबे संघर्ष के बाद बीस साल पहले उत्तराखंड का निर्माण हुआ था. तब से लेकर अब तक पांच सरकारें सूबे में रही हैं. लेकिन नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. त्रिवेंद्र सिंह रावत चार साल भी पूरा नहीं कर पाए और इस्तीफा देना पड़ा.

Uttarakhand Politics: लंबे संघर्ष के बाद बीस साल पहले उत्तराखंड का निर्माण हुआ था. तब से लेकर अब तक पांच सरकारें सूबे में रही हैं. लेकिन नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. त्रिवेंद्र सिंह रावत चार साल भी पूरा नहीं कर पाए और इस्तीफा देना पड़ा.

नई दिल्ली. पहाड़ का छोटा सा राज्य उत्तराखंड. जैसी पहाड़ की भूमि अस्थिर रहती है, वैसी ही राजनीतिक अस्थिरता वहां की सरकार में बनी रहती है. महज बीस साल पहले उत्तराखंड का लंबी संघर्ष के बाद निर्माण हुआ था. तब से लेकर अब तक पांच सरकारें सूबे में रही हैं. लेकिन सिर्फ एक मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ही अपना कार्यकाल पूरा कर सके. वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत 70 में से 57 विधायकों की मजबूत सरकार के मुखिया बने थे, लेकिन वो भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

उत्तराखंड में पहली सरकार अंतरिम थी. नवंबर 2000 में ततत्कालीन उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड को अलग किया गया था. तब उत्तराखंड के क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों को लेकर सरकार बनी थी. बीजेपी का उस समय बहुमत था और नित्यानंद स्वामी पहले मुख्यमंत्री बने. शुरुआत में ही अस्थिरता शुरू हो गई और एक साल से भी कम समय में उन्हें कुर्सी से हटना पड़ा और भगत सिंह कोश्यारी दूसरे मुख्यमंत्री बने. हालांकि तीन चार महीने बाद ही हुए चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और जीतने के बाद कांग्रेस ने मामूली बहुमत से सरकार बनाई. 70 में से महज 36 विधायकों के साथ नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने और कमजोर सरकार के बावजूद उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

अगले चुनाव में बीजेपी ने राज्य में 35 सीट जीतकर निर्दलियों की मदद से सरकार बनाई और बीसी खंडूरी मुख्यमंत्री बने. लेकिन दो ही साल बाद उन्हें हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को कमान सौंपी गई. लेकिन वो भी करीब दो ही साल गद्दी पर रह सके और चुनाव से ठीक पहले खंडूरी को एक बार फिर मुख्यमंत्री बना दिया गया. फिर चुनाव हुआ और कोई भी पार्टी बहुमत का आंकड़ा छू ना सकी. कांग्रेस ने छोटे दलों की मदद से सरकार बनाई और विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने. सरकार भले ही बदल गई, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी रहा. ऐसे में हरीश रावत को मौका दिया गया, लेकिन केंद्र में बीजेपी के मजबूत होने के साथ साथ उनकी सरकार के करीब दस विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया.

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2017 का विधानसभा चुनाव आते आते कांग्रेस बेहद कमजोर हो चुकी थी. इसका परिणाम चुनाव नतीजों में भी देखने को मिला. बीजेपी ने अब तक की सबसे बड़ी जीत राज्य में हासिल की, जब उसके 57 विधायक जीत कर सदन में पहुंचे. लगा कि इस बार बहुत मजबूत सरकार आई है, तो मजबूती से चलेगी भी. लेकिन पुरानी कहावत है कि चरित्र बदलना आसान नहीं होता. राजनीतिक अस्थिरता का चरित्र बना रहा और चार साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपना पद छोड़ना पड़ा.





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