उत्तराखंड

उत्तराखंड में बीजेपी को आखिर क्यों करनी पड़ी त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई? जानिए Inside Story

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उत्तराखंड में जारी सियासी संकट के बीच त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया.

उत्तराखंड में जारी सियासी संकट के बीच त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया.

त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) के पद से हटने के पीछे सबसे प्रमुख वजह पार्टी विधायकों और नेताओं के एक वर्ग में नाराजगी बताई जा रही है. असल में पार्टी में पनपी इस नाराजगी के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं.

नई दिल्ली. उत्तराखंड में जारी राजनीतिक उठापटक के बीच आखिरकार मंगलवार को राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) ने इस्तीफा दे दिया. बीजेपी टॉप लीडरशिप में कई बड़े नेताओं के समर्थन के बावजूद रावत को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. उनके पद से हटने के पीछे सबसे प्रमुख वजह पार्टी विधायकों और नेताओं के एक वर्ग में नाराजगी बताई जा रही है. असल में पार्टी में पनपी इस नाराजगी के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं.

पार्टी सूत्रों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रावत के खिलाफ नाराजगी की वजह से ही सीएम पद के कई दावेदार खड़े हो गए. एक वरिष्ठ बीजेपी नेता के मुताबिक-टॉप लीडरशिप में विकास कार्यों की धीमी रफ्तार को लेकर भी नाराजगी थी. इसके अलावा बीते समय में पार्टी में गुटबाजी भी तेज हुई. साथ ही प्रशासन के स्तर पर ढीलेपन ने स्थितियां और बिगाड़ीं. कई चीजों के मेल ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि को नुकसान पहुंचाया.

रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड में बीजेपी के हालात कई अन्य राज्यों के लिए भी खतरे की घंटी हैं. जानकारों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व द्वारा सीएम पद के लिए चुने गए कई नेताओं को लेकर भी आगे दबाव बनाया जा सकता है. राज्य बीजेपी की इकाइयों में ऐसे नेताओं के खिलाफ विद्रोह के सुर उठ सकते हैं.देवेंद्र फडणवीस और मनोहर लाल खट्टर को भी लेकर रहा है दबाव
महाराष्ट्र में सीएम रहते हुए देवेंद्र फडणवीस पर राज्य बीजेपी में काफी दबाव था. इसके अलावा मनोहर लाल खट्टर को लेकर भी हरियाणा बीजेपी में नाराजगी बताई जाती है. फडणवीस और खट्टर दोनों को ही बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने चुना है.

मंदिरों पर लिए गए निर्णय की वजह से ज्यादा नाराजगी
त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात करें तो उनके कई निर्णयों को लेकर पार्टी के भीतर नाराजगी थी लेकिन एक निर्णय ने सबसे ज्यादा विवाद पैदा किया. ये निर्णय था चारधाम देवस्थानम मैनेजमेंट बिल. इस बिल को लेकर बीजेपी नेताओं के अलावा आरएसएस और विहिप में भी नाराजगी थी. इन सभी का मानना था कि राज्य सरकार को मंदिरों के नियंत्रण से दूर रहना चाहिए. जबकि त्रिवेंद्र सिंह रावत का मानना था कि सरकारी नियंत्रण के जरिए मंदिरों के प्रबंधन की और बेहतर व्यवस्था की जा सकती है.

तीसरी कमिश्नरी बनाए जाने का निर्णय पड़ा भारी!
एक अन्य निर्णय उत्तराखंड में तीसरी कमिश्नरी बनाए जाने को लेकर भी लिया गया. उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से दो कमिश्नरी कुमाऊं और गढ़वाल हैं. रावत सरकार ने एक तीसरी कमिश्नरी गैरसैंण बनाने का फैसला भी किया. इसे लेकर पहले की दो कमिश्नरी के लोगों में गुस्सा था. कहा गया कि इस निर्णय को लेकर टॉप लीडरशिप में भी नाराजगी थी.

दोस्त बिल्कुल नहीं, दुश्मन बहुत ज्यादा
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि रावत के बीजेपी में दोस्त बिल्कुल न के बराबर हैं. पार्टी के दिग्गज नेताओं में रावत को समर्थन देने वाले नेता तकरीबन नहीं हैं. महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के नजदीकी नेताओं में शुमार किए जाने वाले रावत को ‘दुश्मनी’ की कीमत भी चुकानी पड़ी.






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