उत्तराखंड: जंगलों की आग के लिए इस पेड़ की पत्तियां हैं जिम्मेदार, पेट्रोल से भी ज्यादा होती हैं ज्वलनशील
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तय है कि अगर पिरूल का सही इस्तेमाल किया जाए तो, जंगलों में धधकी आग पर तो हमेशा के लिए काबू पाया ही जा सकेगा.
चीड़ की पत्तियों से बिजली उत्पादन भी किया जाता है. उत्तराखंड (Uttarakhand) में छोटे स्तर पर सही लेकिन कई संस्थाएं इससे बिजली पैदा कर रही हैं.
लेकिन धधकती आग के बदनाम पिरूल एक नहीं कई मायनों में खास भी है. चीड़ के पेड़ से जहां बेसकीमती लीसा निकलता है, वहीं इसका उपयोग कई मेडिसन में भी किया जाता है. यही नहीं पहाड़ों में इमारती लकड़ी के बतौर चीड़ का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है. पर्यावरण मामलों के जानकार मनू डफाली बताते हैं कि पिरूल को जितना खराब माना जाता है, उसका सही उपयोग होने पर वो उतना ही फायदेमंद भी है. लेकिन उत्तराखंड की सरकारों में अभी तक इस दिशा में कोई ठोस प्लानिंग नहीं की है.
इस्तेमाल के लिए नीति बनाई गई है
चीड़ की पत्तियों से बिजली उत्पादन भी किया जाता है. उत्तराखंड में छोटे स्तर पर सही लेकिन कई संस्थाएं इससे बिजली पैदा कर रही हैं. जबकि, विदेशों में तो इसका इस्तेमाल गार्डनिंग के साथ ही चाय बनाने के लिए भी होता है. पेंट, पेपर, पेपर बोर्ड और फ्यूल बनाने में भी इसका अहम रोल हैं. पिरूल के इस्तेमाल के लिए उत्तराखंड ने अलग पॉलिसी तो बनाई है, लेकिन उस पर अमल होता नहीं दिखाई देता. कुमाऊं के नोर्थ जोने के वन संरक्षक प्रवीन कुमार बताते हैं कि पिरूल के इस्तेमाल के लिए नीति बनाई गई है. लेकिन अभी तक इसका उतना उपयोग नही हो रहा है, जितनी उम्मीद थी. जरूरत है तो मजबूत इच्छा शक्ति की
तय है कि अगर पिरूल का सही इस्तेमाल किया जाए तो, जंगलों में धधकी आग पर तो हमेशा के लिए काबू पाया ही जा सकेगा, साथ ही युवाओं को रोजगार भी दिया जा सकता है. यही नहीं राज्य की इकोनॉमी को बढ़ाने में इसका बड़ा योगदान हो सकता है, बस जरूरत है तो मजबूत इच्छा शक्ति की.
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