उत्तराखंड की कुर्सी पर बैठना इतना आसान भी नहीं, तीरथ सिंह रावत की राह में होंगे ये 10 बड़े कांटे
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1-उपचुनाव
तीरथ सिंह रावत के सामने पहली सबसे बड़ी चुनौती उप चुनाव जीतना है. उन्हें चुनाव लड़कर विधानसभा का सदस्य बनना होगा. तभी वो मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं. तीरथ गढ़वाल क्षेत्र से किसी विधायक का इस्तीफा लेकर विधायक बन सकते हैं या विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन से खाली हुई सल्ट सीट से भी चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली होने वाली संसदीय सीट पौड़ी गढ़वाल से पार्टी प्रत्याशी को जिताना भी किसी चुनौती से कम नहीं.
2- पार्टी को संगठित रखना
त्रिवेंद्र सिंह रावत को जिस तरह से अचानक बीजेपी ने सीएम पद से हटाने का फैसला लिया उससे पार्टी के भीतर खेमेबंदी बढ़ना तय है. ऐसे में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस खेमेबंदी पर लगाम लगाना तीरथ सिंह रावत के सामने बड़ी चुनौती होगी.
3-2022 में बीजेपी की सत्ता में वापसी
साल 2017 में बीजेपी 57 विधायकों के साथ उत्तराखंड में सत्ता में आई थी, जिसे रिपीट करना 2022 में तीरथ सिंह रावत के लिए एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि एंटी इनकंबेंसी का फैक्टर पार्टी पर भारी पड़ सकता है.
4-कम वक्त बनेगा चुनौती
तीरथ सिंह रावत के पास काम करने के लिए महज एक साल का वक्त है. उसमें भी नए सीएम कोई भी निर्णय महज 8 से 10 महीने ही तक ही ले सकते हैं, क्योंकि इसके बाद चुनाव अधिसूचना लागू हो जाएगी. ऐसे में कम समय में डिलीवर करना तीरथ सिंह के सामने बड़ी चुनौती है.
5-ब्यूरोक्रेसी पर लगाम
त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के दौरान विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं ने ये आरोप लगाया कि ब्यूरोक्रेसी उनकी बातों को नहीं सुनती. यहां तक की पार्टी कार्यकर्ताओं के सही काम भी नहीं हो पाते. कई मंत्रियों की बैठकों में तक सचिव नहीं पहुंचते थे. ऐसे में ऐसी बेलगाम ब्योक्रेसी पर लगाम लगाना बड़ी चुनौती होगी.
6-त्रिवेंद्र रावत की नाकामयाबियों का देना होगा जवाब
नए सीएम तीरथ सिंह को आने वाले दिनों में पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व वाली सरकार की नाकामयाबियों का भी जवाब जनता को देना होगा, जो तीरथ के सामने बड़ी चुनौती होगी.
8-सख्त निर्णय
सीएम तीरथ सिंह रावत को कई सख्त निर्णय भी लेने पड़ सकते हैं. चाहे वो पार्टी संगठन का मामला हो या फिर सरकार में ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाने की बात हो.
9-सिस्टम को समझना बड़ी चुनौती
तीरथ सिंह रावत के सामने कम प्रशासनिक अनुभव बड़ी चुनौती है. तीरथ ने बीजेपी पार्टी संगठन की राजनीति तो जमकर की है लेकिन उन्हें प्रशासनिक अनुभव बेहद कम है, क्योंकि अंतिम बार वो साल 2000 में अंतरिम सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री रहे. इसलिए सरकारी सिस्टम को समझना और निटपटा एक बड़ी चुनौती होगी।.
10-मैदानी इलाकों में किसान आंदोलन की आंच से निपटना चुनौती
तीरथ सिंह रावत के सामने किसान आंदोलन के असर से निपटना चुनौती है, क्योंकि इस आंदोलन का असर हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर में दिख रहा है. ऐसे में 2022 के चुनाव में इस आंदोलन के असर को कम करना आसान नहीं होगा.
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