उत्तराखंड: एक और ऑलवेदर रोड की पोल खुली, आए-दिन दरक रहा 1100 करोड़ का हाईवे
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पिथौरागढ़. उत्तराखंड में इस मानसून सीज़न के पहले महीने में ही एक के बाद एक ऑलेवदर सड़कों की पोल खुल रही है. भले ही पिथौरागढ़-टनकपुर ऑलेवदर रोड बनाने में 1100 करोड़ की भारी-भरकम धनराशि खपा दी गई हो, लेकिन इसका फायदा लोगों को नहीं के बराबर मिल रहा है. हालात ये हैं कि बरसात की पहली बारिश में ही ऑलवेदर रोड की पोल खोल खुल गई. 150 किलोमीटर के इस हाईवे में 12 ऐसे डेंजर ज़ोन बने हैं, जो आए-दिन दरक रहे हैं. एक तरफ भूस्खलन के चलते लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ ही रही थी, दूसरी तरफ घटिया क्वालिटी की इन सड़कों के कारण भी अब लोग सिर पीट रहे हैं.
पहाड़ निवासियों को लगा था कि एनएच 125 के ऑलवेदर रोड में तब्दील होने के बाद उन्हें सुविधा मिलेगी, लेकिन स्थिति इसके ठीक उलट है. ऑलवेदर रोड में तब्दील होने के बाद ये हाईवे पहली बरसात भी नहीं झेल सका. हालात कुछ ऐसे हैं कि स्वाला से चुपकोट बैंड तक दर्जनों स्थानों पर भारी लैंडस्लाइड हुए. लगातार लैंडस्लाइड के चलते पिथौरागढ़-घाट एनएच हफ्ते भर बंद रहा. इस दौरान हज़ारों यात्रियों की जो फजीहत हुई, उसे शब्दों में बयां करना आसान नही है.
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विशेषज्ञों के मुताबिक हाईवे के दरकने की वजह पहाड़ों की बेतरतीब की गई कटिंग है.
हाईवे है या डेंजर ज़ोन?
एनएचएआई ने 150 किलोमीटर के इस हाईवे पर 51 डेंजर जोन चिन्हित किए थे, जबकि टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन यानी टीएचडीसी ने 14 ज़ोनों को खतरनाक चिन्हित किया. बताया जा रहा है कि इन 14 में से 2 ज़ोन सेटल हो गए हैं लेकिन अभी भी चुपकोट से स्वाला तक 12 ऐसे डेंजर ज़ोन हैं, जिनका ट्रीटमेंट निहायती ज़रूरी है. सीज़न की पहली बरसात ने ऑलवेदर रोड का पर्दाफाश जिस तरह किया, उससे ये साफ है कि जब तक डेंजर ज़ोन का ट्रीटमेंट नहीं होता, यह हाईवे लोगों के लिए आसान नहीं होगा. पिथौरागढ़ के डीएम आनंद स्वरूप का कहना है कि टीएचडीसी की सर्वे रिपोर्ट मिलने पर शासन को भेजी जाएगी और शासन से धनराशि मिलने के बाद ही ट्रीटमेंट शुरू हो पाएगा. डेंजर ज़ोन ट्रीटमेंट की प्रक्रिया अभी शुरू हो रही है, तो तय है कि इसमें खासा वक्त लगेगा.
आखिर क्यों दरक रहा है हाईवे?
जानकार हाईवे के लगातार दरकने की वजह पहाड़ियों की बेतरतीब कटिंग को मान रहे हैं. ज़िला आपदा प्रबंधन अधिकारी भूरेन्द्र सिंह महर का कहना है कि गलत कटिंग ही पहाड़ी के कटने की प्रमुख वजह है. 90 डिग्री पर पहाड़ी को काटा गया है, जिस कारण यह बारिश झेल नहीं पा रही. अब सवाल ये है कि बोल्डर्स से पटे और लगातार दरकते हाईवे में हज़ारों यात्रियों की जिंदगी कैसे और कब तक सुरक्षित रह सकेगी? गौरतलब है कि टिहरी में भी ऑलवेदर रोड के टूटने संबंधी खबरें हाल में थीं. बीते मंगलवार को ही न्यूज़18 ने आपको बताया था कि कैसे टिहरी में एनएच-94 पर टनल को जोड़ने वाली सड़क का एक बड़ा हिस्सा टूटने और पुश्तों में दरारें पड़ने से आसपास के मकानों के लिए भी खतरा पैदा हो गया. दावा था कि यह सड़क हर मौसम में लंबे समय तक कारगर होगी, लेकिन अब गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
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