अब हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को देना होगा Water Tax, हाईकोर्ट ने खारिज की कई कंपनियों की याचिकाएं– News18 Hindi
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क्या था मामला
आपको बता दें की राज्य बनने के बाद उत्तराखंड सरकार ने राज्य की नदियों में जल विद्युत परियोजनाएं लगाए जाने के लिए विभिन्न कंपनियों को आमंत्रित किया और उत्तराखण्ड ,उत्तर प्रदेश राज्यों व जल विद्युत कम्पनियों के मध्य करार हुआ. इसमें तय हुआ कि कुल उत्पादन के 12 फीसदी बिजली उत्तराखण्ड को निशुल्क दी जाएगी, जबकि शेष बिजली उत्तर प्रदेश को बेची जाएगी. लेकिन 2012 में उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड वाटर टैक्स ऑन इलैक्ट्रिसिटी जनरेशन एक्ट बनाकर जल विद्युत कम्पनियों पर वायर की क्षमतानुसार 2 से 10 पैंसा प्रति यूनिट वाटर टैक्स लगा दिया. इसे अलकनन्दा पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, टीएचडीसी,एनएचपीसी, स्वाति पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड,भिलंगना हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट,जय प्रकाश पावर वेंचर प्राइवेट लिमिटेड आदि ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने ये याचिकाएं खारिज करते हुए कहा गया है कि विधायिका को इस तरह का एक्ट बनाने का अधिकार है. यह टैक्स पानी के उपयोग पर नहीं बल्कि पानी से विद्युत उत्पादन पर है जो संवैधानिक दायरे के भीतर बनाया गया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता कम्पनियों के पक्ष में 26 अप्रैल 2016 को जारी अंतरिम रिलीफ ऑर्डर को भी निरस्त कर दिया जिसमें राज्य सरकार द्वारा इन कंपनियों को विद्युत उत्पादन जल कर की करोड़ों रुपये के बकाए की वसूली के लिए नोटिस दिया था.
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सरकार का खुला आय का साधन
दरअसल, चमोली के तपोवन में आई आपदा के बाद कई पर्यावरणविद् राज्य में जल विद्युत परियोनाओं के होने या ना होने पर सवाल उठा रहे हैं. लेकिन हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब वाटर टैक्स भी इन जल विद्युत परियोजनाओं से लिया जा सकेगा. जानकार मानते हैं कि इससे 3 से 4 सौ करोड़ की सालाना आय राज्य सरकार को होगी. हांलाकि एकलपीठ के फैसले को डबल बेंच में चुनौती देने की तैयारी चल रही है. जल विद्युत परियोजनाओं के अधिवक्ताओं में से एक संदीप कोठारी कहते हैं कि एकलपीठ ने जो निर्णय दिया है वो सरकार के हक में है लेकिन उनके पास अभी डबल बेंच में जाने का रास्ता बचा हुआ है जिसकी अपील की जाएगी.
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